क्या इस बार राजस्थान के झालावाड़ में बीजेपी की होगी हार ?
राजस्थान के झालावाड़ लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस पिछले तीन दशक से अंगद का पांव बने मां बेटे का कोई तोड़ नहीं निकाल पाई

झालावाड़। राजस्थान के झालावाड़ लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस पिछले तीन दशक से अंगद का पांव बने मां बेटे का कोई तोड़ नहीं निकाल पाई है।
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने 1989 में कांग्रेस के शिवनारायण को हराकर अपने पांव जमाये थे, जो 1999 के चुनाव तक हिल नहीं पाये। उनके विधानसभा में जाने के बाद पार्टी ने वर्ष 2004 में उनके पुत्र दुष्यंत सिंह को चुनाव मैदान में उतारा, जो अब तक अपराजेय है1 कांग्रेस बारबार उम्मीदवार बदलने के बावजूद उनका तोड़ नहीं निकाल पाई।
झालावाड़ में 1962 में पहलीबार कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी तथा 1984 में भी जीत का मौका मिला लेकिन उसके बाद कोई दमदार उम्मीदवार नहीं मिला जो भाजपा को हरा सके। कांग्रेस ने भाजपा उम्मीदवारों को हराने के लिये जातिगत रणनीति भी अपनाई लेकिन कोई फायदा नहीं मिला। वर्ष 1989 में वसुंधरा के सामने शिवनारायण तथा 1991 एवं 1996 में मानसिंह कांग्रेस के टिकट पर आये लेकिन टिक नहीं पाये। वर्ष 1998 में वसुंधरा ने भरत सिंह को हराया तथा 1999 में डा0 अबरार अहमद आये लेकिन वह भी जीत नहीं पाये। हालांकि कांग्रेस ने उन्हें बाद में राज्यसभा का सदस्य बनाकर केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री के पद से भी सुशोभित किया था।
इसी तरह जब वसुंधरा राजे को प्रदेश की राजनीति में लाया गया तो 2004 में उनकी जगह पुत्र दुष्यंत को चुनाव लड़ाया गया, जिनके सामने संजय गुर्जर पराजित हुए। वर्ष 2009 में गहलोत सरकार में मंत्री प्रमोद जैन भाया की पत्नी उर्मिला जैन तथा 2014 में प्रमोद जैन ने दुष्यंत का सामना किया, लेकिन हार पर संतोष करना पड़ा।
इस बार दुष्यंत के सामने कांग्रेस ने नये चेहरे प्रमोद शर्मा को खड़ा किया है। इस क्षेत्र में इनकी मां वसुंधरा राजे की गहरी पकड़ होने के कारण भाजपा के लिये सुरक्षित सीट रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस संसदीय क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों में छह पर जीत हासिल की थी, जिनमें झालरापाटन से वसुंधरा राजे भी शामिल हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा का भले ही अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा, लेकिन झालावाड़ संसदीय क्षेत्र में भाजपा की मजबूती ने कांग्रेस को चिंता में डाल दिया तथा हर बार की तरह इस बार भी नया चेहरा मैदान में उतारा है। कांग्रेस के उम्मीदवार को लेकर पार्टी में भी कोई एकराय नहीं है। यह कहा जा रहा है कि नेताओं की मिली भगत के कारण दुष्यंत के सामने कमजोर उम्मीदवार उतारा गया है। कांग्रेस के उम्मीदवार शर्मा भाजपा के सदस्य रहे हैं, उन्होंने श्रीमती राजे से नाराजगी के चलते उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा था।
श्रीमती राजे के सामने उनके घोर विरोधी मानवेंद्र सिंह को बाड़मेर से झालावाड़ लाकर विधानसभा चुनाव लड़ाया था तथा दुष्यंत के सामने भी पूर्व मुख्यमंत्री के विरोधी को चुनाव मैदान में उतारने से यह भी संदेश जा रहा है कि जो भी राजे की खिलाफत करेगा उसे कांग्रेस महत्वपूर्ण दर्जा देगी।
कांग्रेस श्रीमती राजे के खिलाफ पनपे राज्यव्यापी असंतोष के भरोसे चुनाव मैदान में हैं जबकि भाजपा मोदी लहर के साथ श्रीमती राजे की मतदाताओं पर गहरी पकड़ के कारण जीत का भरोसा रख रही है।


