क्या पुनर्गठन कांग्रेस में उत्साह लाएगा?
कांग्रेस जनता की है। और अगर यह जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप काम नहीं कर पाएगी तो जनता फिऱ दूसरी कांग्रेस बना देगी

- शकील अख्तर
कांग्रेस जनता की है। और अगर यह जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप काम नहीं कर पाएगी तो जनता फिऱ दूसरी कांग्रेस बना देगी। समय बदल रहा है। कांग्रेस नहीं समझ रही। 2012 से बिल्कुल नहीं। भाजपा समझ गई थी। उसने उसी समय नरेन्द्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके तैयारियां शुरू कर दी थीं। मगर कांग्रेस तब से अब तक सचेत नहीं हुई है।
अब कोई कहता है या नहीं, हमें पता नहीं। मगर कुछ साल पहले तक 2014 हरवाने के समय तक कांग्रेस के एक नेता, बड़े पदाधिकारी कहते थे कि हमारी पार्टी है हम जो चाहें करें! हम हमेशा कहते थे नहीं ऐसा नहीं है। कांग्रेस किसी की पार्टी नहीं हो सकती। वह भारत की करोड़ों करोड़ जनता की इच्छाओं की आकांक्षाओं की पार्टी है। आजादी के आंदोलन से उपजी। देश के नवनिर्माण के सपनों की पार्टी। वह केवल आपकी या कांग्रेस के नेताओं की पार्टी नहीं हो सकती। इसके जितने कार्यकर्ता हैं देश भर में उससे कई गुना ज्यादा इसके सिम्पेथाइजर ( शुभचिंतक, हमदर्द) हैं। जिनकी सद्इच्छाओं से ही यह चल रही है।
अब जैसा कि हमने कहा कोई कहता है या नहीं हमें पता नहीं मगर किया वैसा ही जा रहा है। सवा साल बाद कांग्रेस के नए अध्यक्ष जो जाहिर है, अब पुराने भी हो गए, की नई टीम, जो भी जाहिर है नए के नाम पर कुछ नहीं की घोषणा पार्टी में कोई उत्साह नहीं फूंकती है। मेरी मर्जी जैसा पुनर्गठन है। और मर्जी किसकी, यह भी आज तक किसी की समझ में नहीं आया है। कांग्रेस में कौन फैसले लेता है यह इन्दिरा गांधी के बाद से किसी को नहीं मालूम।
कहा जाता है कि राहुल, प्रियंका फैसले लेते हैं। लेकिन अगर प्रियंका फैसला लेती हैं तो फिर खुद को वेटिंग फार पोस्टिंग ( पदस्थापना की प्रतीक्षा) क्यों रखतीं? यही कांग्रेस का रहस्य जाल है।
प्रियंका राहुल से पहले से राजनीति में सक्रिय हैं। राजीव गांधी के साथ टीन एज (किशोरावस्था) से अमेठी जाने लगी थीं। बॉब कट बाल थे। लंबी, दुबली पतली सब भैया जी कहने लगे। आज तक अमेठी रायबरेली के लोग भैया जी ही कहते हैं। 2004 में राहुल को लेकर वही अमेठी गई थीं। परिचय कराया था कि मेरे बड़े भाई हैं। अमेठी से चुनाव लड़ेंगे।
अमेठी रायबरेली का काम देखती रहीं। हमसे बातचीतमें कहा था बच्चे छोटे हैं। बड़े हो जाएं मैं राजनीति में आऊंगी। आईं। देर से आईं। 2019 में और बड़े खराब हो चुके प्रदेश से शुरूआत हुई। या करवाई गई। यह ऐसा ही था जैसे आस्ट्रेलिया की पिच पर नए बैट्समेन का डेब्यू ( पहला मैच ) करवा दें।
यूपी दिया भी तो आधा। अपनी सबसे संभावनाशील नेता के चार साल कांग्रेस ने बंजर जमीन में बरबाद कर दिए। यूपी को पिछले तीन दशक में केवल एक ही नेता ने फिर कांग्रेसमय किया था। वे थे दिग्विजय सिंह। 2019 के लोकसभा चुनाव में 22 सीटें जितवा कर लाए थे। दिग्विजय सिंह और प्रियंका गांधी कांग्रेस के ऐसे नेता हैं जो कभी पीछे नहीं हटते। लड़ते हैं। हिमाचल याद कीजिए। राहुल की यात्रा चल रही थी। गोदी मीडिया ने खबरें चलाना शुरू कर दीं कि प्रियंका नाराज हैं। यात्रा में नहीं जा रहीं। हमने बात की। प्रियंका के यहां से स्पष्ट किया गया कि चुनाव खत्म होने तक हिमाचल प्रदेश नहीं छोड़ेंगी। और फिर जिता कर ही यात्रा में शामिल हुईं।
ऐसे ही मध्यप्रदेश में दिग्विजय ने जिस तरह कमलनाथ द्वारा अपमान किए जाने के बाद भी चुपचाप काम किया वैसा भी कोई नहीं कर सकता। ज्योतिरादित्य सिंधिया तो इतनी बात पर पार्टी छोड़ कर चले गए थे। कमलनाथ ने केवल दिग्विजय के लिए ही नहीं बोला उनके बेटे जिनका किसी से कोई विवाद ही नहीं है। बहुत शालीन स्वभाव के, सब बड़ों को सम्मान देने वाले जयवर्धन सिंह के लिए भी कह दिया कि जाओ उनके कपड़े फाड़ो।
खैर तो कांग्रेस के इस फेरबदल में जिन दो नेताओं को फिलहाल कुछ भी जिम्मेदारी नहीं दी गई है। वे दोनों प्रियंका और दिग्विजय बहुत सामर्थ्यवान नेता हैं। और जिन बहुत सारे लोगों को दी गई है वे कई बार के आजमाए हुए सिर्फ गणेश परिक्रमा करने वाले नेता हैं।
राहुल गांधी ने एक बड़ा प्रयोग किया था। परिवार के बाहर के आदमी को अध्यक्ष बनाने का। लेकिन सिर्फ किसी को अध्यक्ष बनाना तो उद्देश्य नहीं हो सकता। मुख्य बात तो पार्टी को वापस सत्त् ाा में लाना ही है। अब 2024 के चुनाव में समय ही कितना है! जो यह नई टीम के नाम पर लाए हैं यह क्या कुछ कर सकते हैं?
यूपी जिसमें सबसे ज्यादा काम की जरूरत है वहां इंचार्ज अविनाश पांडे को बनाया गया है। अविनाश बहुत सारे राज्यों के इंचार्ज रह चुके हैं। शायद मुकुल वासनिक के बाद वे नंबर दो पर होंगे जो इतने अधिक राज्यों में भेजे जा चुके हैं। मगर क्या कांग्रेस के नेतृत्व ने कभी किसी राज्य के प्रदेश अध्यक्ष और दस दूसरे प्रमुख नेताओं से पूछा कि राज्य में इनके काम करने से कुछ फायदा मिला या नहीं? इंचार्ज की भूमिका कांग्रेस में बहुत मशीनी (मोनोटोमस) हो गई है। अब मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़ में कोई इन्चार्ज क्या दस वोट भी बढ़ा सकता है? हां विधानसभा चुनाव से पहले दोनों जगह अनुभवी गंभीर इंचार्ज की जरूरत थी। अब लोकसभा में इन जैसे साफ भाजपा कांग्रेस में बंटे राज्यों में इंचार्ज को कुछ खास करने को नहीं है।
मगर यह दिलचस्प है कि इस फेरबदल की लिस्ट में काम ही बस राज्यों के इन्चार्ज बनाने का हुआ है। जरूरत है प्रदेश अध्यक्षों से काम लेने की। इन्चार्ज का काम तो बस इतना है कि जब तक अध्यक्ष बिना गुटबाजी के काम कर रहा है उसका समर्थन करना और गुटबाजी दिखते ही हाईकमान को सूचित करना। अभी तीनों राज्य कांग्रेस खुद अपने कारणों से हारी है। जीती हुई हारी है। कोई प्रदेश अध्यक्ष, इन्चार्ज इतना दमदार नहीं था और दो राज्यों में तो मुख्यमंत्री भी थे कि हाथ से निकली जा रही जीत को पकड़ सकते।
लगता है अब पूरी उम्मीद इंडिया गठबंधन से ही है। कांग्रेस फिलहाल खुद को समेट कर रखने में लगी है। मगर यह भूल गई है कि जिन राज्यों में उसका सीधा मुकाबला भाजपा से है वहां तो उसे काम करने वाली टीम चाहिए ही। और जब कांग्रेस मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल, उत्तराखंड में लड़ती दिखेगी तब ही दूसरे राज्यों में जहां वह अपने विपक्षी सहयोगियों के बीच दूसरे और तीसरे नंबर की पार्टी है वहां उचित महत्व पाएगी।
प्रधानमंत्री मोदी माहौल के साथ लड़ते हैं। वे खुद बनाते हैं और मीडिया उसे आगे बढ़ाता है। कांग्रेस माहौल का मतलब समझती ही नहीं है। इतनी देर से यह लिस्ट निकली मगर चुपचाप पत्रकारों को व्हाट्सएप पर भेज दी। छोटी-छोटी बातों पर तो रोज प्रेस कान्फ्रेंस करती है। मगर जो अनाउसमेंट हमेशा प्रेस कान्फ्रेंस में एक-एक नाम सुनाकर होता था उसे शाम सात के बाद वैसे ही निकाल दिया।
मीडिया कितना ही होस्टाइल ( कांग्रेस विरोधी) सही। मगर एक बार तो इसे जोरदार तरीके से चलाता। हर पार्टी बताती है कि इससे यह हो जाएगा, वह हो जाएगा यह समीकरण है वह कहानी है। मगर यहां तो ऐसे अचानक खबर जैसे कोई शोक समाचार हो।
जैसा कि हमने शुरू किया था कांग्रेस जनता की है। और अगर यह जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप काम नहीं कर पाएगी तो जनता फिऱ दूसरी कांग्रेस बना देगी। समय बदल रहा है। कांग्रेस नहीं समझ रही। 2012 से बिल्कुल नहीं। भाजपा समझ गई थी। उसने उसी समय नरेन्द्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके तैयारियां शुरू कर दी थीं। मगर कांग्रेस तब से अब तक सचेत नहीं हुई है। कई स्तरों पर काम करने की जरूरत है। और एक स्पष्ट नेतृत्व के तहत। यहां रहस्यवाद बहुत महंगा पड़ा है। सबको मालूम होना चाहिए कि निर्णय कोई तीन या चार लोग मिलकर लेते हैं। और इन चार लोगों को नेताओं, कार्यकर्ताओं से मिलना भी चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


