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भारत की नई EV नीति टेस्ला और दूसरी ई-कार निर्माता कंपनियों को लुभा पाएगी?

टेस्ला की लंबे समय से भारतीय बाजार पर नजर है, लेकिन वह स्थानीय स्तर पर अपने उत्पादन में तब तक निवेश नहीं करना चाहती जब तक कि सरकार टैरिफ से संबंधित मुद्दों का समाधान नहीं करती

भारत की नई EV नीति टेस्ला और दूसरी ई-कार निर्माता कंपनियों को लुभा पाएगी?
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टेस्ला की लंबे समय से भारतीय बाजार पर नजर है, लेकिन वह स्थानीय स्तर पर अपने उत्पादन में तब तक निवेश नहीं करना चाहती जब तक कि सरकार टैरिफ से संबंधित मुद्दों का समाधान नहीं करती.

भारत सरकार ने इस महीने इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के लिए एकनई नीति को मंजूरी दे दी है, जिसमें उन वाहन निर्माता कंपनियों को ई-कारों पर आयात शुल्क में कमी की पेशकश की गई है जो भारत में विनिर्माण ईकाइयां स्थापित करने के लिए कम से कम 500 मिलियन डॉलर का निवेश करेंगी और तीन साल के भीतर उत्पादन शुरू कर देंगी.

शुरुआत में कार बनाने वाली इन कंपनियों को अपनी जरूरतों का कम से कम एक चौथाई हिस्सा स्थानीय स्तर पर ही प्राप्त करना होगा और पांच साल के भीतर स्थानीय घटकों की हिस्सेदारी दोगुनी करनी होगी.

जो कंपनियां इन शर्तों को पूरा करती हैं, उन्हें सीमा शुल्क में छूट दी जाएगी और इसका भुगतान करने के बाद इन कंपनियों को प्रति वर्ष 8 हजार इलेक्ट्रिक वाहन आयात करने की अनुमति दी जाएगी. कंपनियों को सीमा शुल्क का भुगतान वाहन की लागत का करीब 15 फीसद लिया जाएगा जबकि अभी सरकार ऐसे वाहनों पर 60 से 100 फीसदी तक टैरिफ लेती है.

इस कदम को देश में हरित परिवर्तन को तेजी से आगे बढ़ाने और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के सरकार के प्रयासों के एक हिस्से के रूप में देखा जा रहा है.

डीडब्ल्यू से बातचीत में एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, "हम भारत के ईवी परिदृश्य में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं और उद्योग जगत के लिए अवसरों को बढ़ाना चाहते हैं. साथ ही परिवहन के टिकाऊ समाधान की दिशा में भी देश को आगे ले जाना चाहते हैं.”

विदेशी EV निर्माताओं को लुभाना

अधिकारियों को उम्मीद है कि नीति में बदलाव से टेस्ला जैसे विदेशी EV निर्माता कंपियां भारत में अपने संयंत्र स्थापित करने के लिए आकर्षित होंगी.

टेस्ला की लंबे समय से भारतीय बाजार में आने वाले अवसरों पर नजर है, लेकिन वह तब तक स्थानीय उत्पादन में निवेश नहीं करना चाहती थी जब तक कि सरकार टैरिफ से संबंधित मुद्दों को हल नहीं कर लेती और कंपनी बाजार के रुख का आकलन नहीं कर लेती.

सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह नीति इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में वैश्विक निवेश को आकर्षित करने के मकसद से डिजाइन की गई है ताकि स्थानीय स्तर पर विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा मिले, खासकर इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण के क्षेत्र में.”

वियतनाम की वाहन निर्माता कंपनी विनफास्ट (VinFast) ने पहले ही इस साल भारत में इलेक्ट्रिक वाहन फैक्ट्री बनाने के लिए 2 अरब डॉलर तक खर्च करने की योजना की घोषणा कर रखी है.

वहीं, टाटा मोटर्स और महिंद्रा समूह जैसे स्थानीय कार निर्माता विदेशी कंपनियों को टैरिफ में छूट दिए जाने के खिलाफ थे. रॉयचौधरी कहती हैं, "अब उन्हें बढ़ती प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार रहना होगा क्योंकि इस कदम से भारतीय बाजार में अग्रणी कंपनियों के लिए निश्चित तौर पर प्रतिस्पर्धा बढ़नी चाहिए और उन घरेलू कंपनियों को भी प्रोत्साहन मिलना चाहिए जो अभी भी विद्युतीकरण को लेकर अनिश्चितता में हैं.”

क्षमताओं से भरा बड़ा बाजार

बिक्री के लिहाज से देखें तो भारत दुनिया का तीसरा सबसे ऑटो मार्केट है. साथ ही दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रहे इलेक्ट्रिक वाहन बाजारों में से भी एक है.

यहां करीब 23 लाख इलेक्ट्रिक वाहन हैं जिनमें 90 फीसदी से ज्यादा वाहन बहुत सस्ते हैं और उनमें भी कारों की बजाय मोटरबाइक्स, स्कूटर और रिक्शे हैं.

इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण और बिक्री को प्रोत्साहन देने के मकसद से मोदी सरकार ने 13 अरब डॉलर की एक परियोजना शुरू की है. यह उन कोशिशों का ही हिस्सा है जिनका मकसद भारत में एक प्रतिस्पर्धात्मक स्थानीय ऑटो इंडस्ट्री तैयार करना और रोजगार सृजन करना है.

यह उन कोशिशों का भी एक हिस्सा है जिनका मकसद साल 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो पर लाना है.

सरकार चाहती है कि साल 2030 तक करीब 70 फीसदी व्यावसायिक कारें और ट्रक और करीब 30 फीसदी निजी कारें इलेक्ट्रिक हों यानी बैटरी से चलने वाली हों.

वित्त मंत्रालय द्वारा प्रकाशित आर्थिक सर्वेक्षण 2023 के मुताबिक, भारत के इलेक्ट्रिक वाहनों के बाजार में 2022 से 2030 के बीच करीब 49 फीसीद की वृद्धि हो सकती है और 2023 तक हर साल करीब एक करोड़ इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री का अनुमान है.

इसके साथ ही इस इंडस्ट्री में अगले सात साल में करीब पांच करोड़ प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगारों के सृजन का अनुमान है.

माहौल बनाने की जरूरत है

ऐसा होने के लिए यह जरूरी है कि पूरी तरह से इलेक्ट्रिक वाहनों का ईकोसिस्टम बनाना होगा. ईकोसिस्टम बनाने के लिए कोशिश करनी होगी और उस पर आगे बढ़ना होगा जिसमें बेहतर प्रदर्शन और कम लागत के इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण के साथ-साथ चार्जिंग के पर्याप्त बुनियादी ढांचे का विकास भी शामिल है.

रॉयचौधरी कहती हैं, "विदेशी निवेश शुरुआत में महंगी कारों में होगा क्योंकि भारत में बाजार अभी भी छोटा है. लेकिन नई कंपनियां किफायती कार बाजार में भी उतरेंगी और इससे स्थानीय मॉडलों के लिए भी अवसर पैदा हो सकते हैं. हमें बाजार की मांग बढ़ाने के लिए अतिरिक्त रणनीतियों की आवश्यकता है.

सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) को उम्मीद है कि भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग और उसके सदस्य नई नीति को अपनाएंगे.

SIAM के पूर्व महानिदेशक दिलीप चेनॉय ने डीडब्ल्यू को बताया, "ईवी नीति उन कई नीतिगत पहलों में से एक है जिनकी सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में पेट्रोलियम पर निर्भरता कम करने और हरित गतिशीलता को बढ़ावा देने के लिए घोषणा की है. यह नीति निश्चित तौर पर उन निर्माताओं को प्रोत्साहित करने के लिए एक उत्प्रेरक का काम करेगी जो अपनी विकास योजनाएं इस तरह से तैयार कर रहे हैं कि बाद में अपने उत्पादों का निर्माण भारत में ही करें.”


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