देना होगा जिंदा होने का सबूत
गुलामी से लेकर युद्ध, अकाल से लेकर आपातकाल तक कई तरह के संकट देश ने भुगते हैं, लेकिन जनता की इच्छाशक्ति और कुशल राजनैतिक नेतृत्व के कारण देश इन संकटों का सामना करते हुए आगे बढ़ा।

— सर्वमित्रा सुरजन
इस देश में माहौल ऐसा बनाया दिया गया है कि लोग ज्यादा कुछ करने की स्थिति में ही नहीं हैं। ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि भारत इतने निराशाजनक दौर से कभी नहीं गुजरा था। गुलामी से लेकर युद्ध, अकाल से लेकर आपातकाल तक कई तरह के संकट देश ने भुगते हैं, लेकिन जनता की इच्छाशक्ति और कुशल राजनैतिक नेतृत्व के कारण देश इन संकटों का सामना करते हुए आगे बढ़ा।
11 अप्रैल से 14 अप्रैल तक तीन दिन का टीका उत्सव भी नरेन्द्र मोदी के कहने पर देश ने मना लिया। लेकिन इन तीन दिनों में कोरोना को लेकर ऐसी खबरें और तस्वीरें सामने आई हैं, जिन्हें पहले या तो दिखाया ही नहीं जाता था, या इस अस्वीकरण के साथ दिखाया जाता था कि ये तस्वीरें विचलित कर सकती हैं।
लेकिन वो उन दिनों की बात है, जब अच्छे दिनों का कोई ढिंढोरा नहीं पीटा जाता था, जब लोग किसी राजनैतिक दल के समर्थक या विरोधी होते थे, भक्त नहीं होते थे, जब देश में जनप्रतिनिधि अंधविश्वास दूर करने को भी अपनी जिम्मेदारी मानते थे, जब लोगों में संवेदना बाकी थी।
अब तो देश में मोदीराज के साथ अच्छे दिन क्या आए, समाज से संवेदना, करुणा, दया, नैतिकता जैसे गुण ही गायब हो गए। और ऐसा क्यों न हो। आखिर जनता अपने नायकों के पदचिन्हों पर ही तो चलती है।
जब देश देख रहा है कि करोड़ों लोग बीमारी के मुहाने पर खड़े हैं, रोजाना सैकड़ों मौतें हो रही हैं, अस्पतालों के बाहर लंबी कतारें लगी हैं, श्मशानों में जगह कम पड़ रही है, शव जलाने के लिए लकड़ियां खत्म हो रही हैं, शवदाहगृहों की चिमनियां शव जला-जला कर पिघलने लगी हैं, उस वक्त भी प्रधानमंत्री को भाजपा के लिए वोट मांगने से फुर्सत नहीं है, तो लोग फिर क्यों ऐसी तस्वीरें देखकर विचलित होंगे।
और जो लोग परेशान हो भी रहे हैं, वे सोशल मीडिया पर दो-चार पोस्ट डालने, या आस-पास वालों से अपनी परेशानी कहने के अलावा क्या कर सकते हैं। इस देश में माहौल ऐसा बनाया दिया गया है कि लोग ज्यादा कुछ करने की स्थिति में ही नहीं हैं।
ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि भारत इतने निराशाजनक दौर से कभी नहीं गुजरा था। गुलामी से लेकर युद्ध, अकाल से लेकर आपातकाल तक कई तरह के संकट देश ने भुगते हैं, लेकिन जनता की इच्छाशक्ति और कुशल राजनैतिक नेतृत्व के कारण देश इन संकटों का सामना करते हुए आगे बढ़ा। भगवान पर आस्था के साथ जनता को अपने प्रतिनिधियों की नीयत पर भी भरोसा रहा।
इस भारत ने 1964-65 के दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के आह्वान पर सप्ताह में एक दिन उपवास रखकर अनाज के संकट का सामना किया। शास्त्री जी जानते थे कि अमेरिका की शर्तों पर उससे अनाज लिया तो देश का स्वाभिमान चूर-चूर होगा।
इसलिए उन्होंने देशवासियों से एक दिन के उपवास का आग्रह किया और इस आग्रह से पहले खुद अपने परिवार समेत उपवास रखकर देखा कि इंसान एक दिन की भूख बर्दाश्त कर लेता है। लेकिन अब इसी भारत में कोरोना के गहन संकट में दवाओं की जमाखोरी, कालाबाजारी और कुछ खास लोगों को मुफ्त वितरण जैसे काम सत्तारूढ़ पार्टी के एक पदाधिकारी की ओर से हो रहे हैं और प्रधानमंत्री मोदी सोचते हैं कि वे आपात बैठकें बुलाकर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
गौरतलब है कि पिछले सप्ताह खबर आई कि गुजरात के सूरत में भाजपा कोरोना संक्रमण के इलाज में उपयोगी रेमडेसिविर इंजेक्शन का वितरण कर रही है। इससे पहले गुजरात भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल ने कहा था कि भाजपा सूरत में रेमडेसिविर के पांच ह•ाार इंजेक्शंस बांटेगी। श्री पाटिल ने ये घोषणा ऐसे समय में की जब देश में रेमडेसिविर इंजेक्शन की कमी को लेकर बवाल मचा हुआ है।
वैसे रेमडेसिविर की अनुशंसा एम्स ने की है, लेकिन उसको कुछ विशेष परिस्थितियों में ही अपनाने को कहा गया है। विज्ञान अभी भी कोविड-19 के उपचार में इस दवा की तरफदारी नहीं कर रहा है और इसकी प्रभावकारिता भी बहुत सीमित है। सरकार द्वारा इस इंजेक्शन के लिए जो दिशानिर्देश जारी किये हैं उसके मुताबिक जिनको 5 लीटर से ज्यादा ऑक्सीजन दिया जा रहा है उन मरीज को ये इंजेक्शन दिया जा सकता है। हालांकि ठीक होने की गारंटी तब भी नहीं है।
ड्रग कंट्रोलर जनरल (इंडिया) ने इस दवा के सीमित आपातकालीन उपयोग की अनुमति ही दी है। फिर भी इस दवा को जिस तरह जीवनरक्षक प्रचारित कर इसकी मांग को लेकर हौव्वा खड़ा किया जा रहा है, वह देखना भयावह है। कई जगहों पर इस दवा की कमी बताई जा रही है, लेकिन लोग भावी सुरक्षा के लिए इसे खरीद लेना चाहते हैं। गुजरात भाजपा ने इस आपदा को भी अपने लिए अवसर की तरह देखा और इसके मुफ्त वितरण की घोषणा कर दी।
जबकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जून 2020 में प्रतिबंधित उपयोग के लिए रेमडेसिविर को मंजूरी दी थी, जैसे कि इसे केवल प्रेस्क्रिप्शन पर एक इंजेक्शन के रूप में बेचा जा सकता है और केवल अस्पतालों और फार्मेंसियों को इसे रखने की अनुमति है, जिसे अनाज या कपड़ों की तरह नहीं बांटा जा सकता।
गुजरात भाजपा अध्यक्ष ने पांच हजार इंजेक्शन मुफ्त बांटने की जो घोषणा की, वो न केवल नैतिक दृष्टि से बल्कि कानूनन भी गलत है। जिस दवा की कमी बाजार में बतलाई जा रही है, उसका इस तरह भंडारण सीधे तौर पर जमाखोरी है। सवाल ये है कि जब लोगों को इस दवा को खरीदने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है, तब सीआर पाटिल के पास एक साथ इतने इंजेक्शन कैसे आए।
क्या भाजपा ने खुद को दवा विक्रेता के तौर पर पंजीकृत कराया है, क्योंकि दवाई देने का काम हिंदुस्तान के कानून के मुताबिक लाइसेंस मिलने के बाद ही किया जा सकता है। गुजरात में दवा की बिक्री की दुकान का लाइसेंस स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत काम कर रहे फूड और ड्रग्स विभाग द्वारा दिया जाता है।
किसी भी व्यक्ति को दवा बेचने के लिए ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत लाइसेंस लेना पड़ता है। लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति को रजिस्टर्ड $फार्मासिस्ट होना चाहिए या लाइसेंस लेने के इच्छुक व्यक्ति को मैट्रिक पास किया होना चाहिए और ड्रग्स क्षेत्र में चार साल का अनुभव होना चाहिए या फिर इस व्यक्ति ने मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी की डिग्री हासिल की हो और ड्रग के कामकाज में साल भर का अनुभव होना चाहिए।
क्या भाजपा कार्यालय से रेमेडेसिवर का वितरण कर रहे महानुभावों के पास ये योग्यताएं हैं। भाजपा का कहना है कि लोगों की सेवा के लिए ये इंजेक्शन बांटे जा रहे हैं और इसका इंतजाम पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अपने संसाधनों से किया है।
भाजपा से ये पूछा जाना चाहिए कि अगर लोगों की वाकई सेवा करनी है, तो सरकारी अस्पतालों में ये इंजेक्शन क्यों नहीं पहुंचाए गए, जहां डाक्टर जरूरतमंद मरीजों को खुद इंजेक्शन दे देते। या गुजरात भाजपा नरेन्द्र मोदी के पदचिन्हों पर चल रही है कि हर काम खुद ही करना है, चाहे नोटबंदी की घोषणा हो या सैनिकों से वार्ता या विद्यार्थियों से चर्चा।
बहरहाल सीआर पाटिल पर इन पंक्तियों के लिखे जाने तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने तो इस मामले में उन्हीं से पूछिए वाला जवाब दिया है। अब जनता को वाकई सत्ताधीशों से सवाल पूछने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। हर बार मनमानी करके, कानून हाथ में लेकर वे निकलते रहे, तो देश बड़े से मुर्दाघर में तब्दील हो जाएगा। अगर हम जिंदा हैं, तो अपने जिंदा होने का सबूत देना ही चाहिए।


