Top
Begin typing your search above and press return to search.

प्रधान न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति से पहले हो पाएगा अयोध्या पर फैसला?

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई की जा रही है

प्रधान न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति से पहले हो पाएगा अयोध्या पर फैसला?
X

नई दिल्ली। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई की जा रही है। तेजी से हो रही सुनवाई के बाद सात दशक पुराने अयोध्या विवाद के सुलझने की एक उम्मीद जरूर दिख रही है। मगर लोगों के मन में यह सवाल भी जरूर है कि क्या 17 नवंबर को गोगोई की सेवानिवृत्ति से पहले इस पर कोई अंतिम फैसला आएगा? न्यायालय द्वारा नियुक्त मध्यस्थता पैनल के माध्यम से हिंदुओं और मुसलमानों के विभिन्न दलों के बीच आम सहमति नहीं बन सकी। इसके बाद न्यायमूर्ति गोगोई ने इस मामले में सप्ताह के सभी कार्य दिवसों पर सुनवाई करने का फैसला किया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 2010 में अयोध्या में 2.77 एकड़ जमीन को तीन पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच समान रूप से विभाजित करने संबंधी फैसला देने के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।

अयोध्या मामले में भगवान के जन्मस्थान को सह-याचिकाकर्ता के रूप में भी शामिल किया गया है। साथ ही इसने विवादित स्थल के 2.77 एकड़ से अधिक स्थान पर दावा किया है, जहां विवादित ढांचे को ढहाया गया था।

मामले से जुड़े एक वकील ने कहा, "जब से चीफ जस्टिस ने इस मामले को अपने हाथों में लिया है, तब से उनके रिटायर होने से पहले ही इस पर फैसला आने की उम्मीद है। अगर वह अपने कार्यकाल के दौरान फैसला नहीं ले पाते हैं तो फिर मामले को किसी अन्य पीठ द्वारा नए सिरे से सुना जाना चाहिए। ऐसा आमतौर पर कभी नहीं होता।"

पीठ पहले ही छह दिन की सुनवाई कर चुकी है और अब तक निर्मोही अखाड़ा ने अपना तर्क पूरा कर लिया है। अब रामलला विराजमान (विवादित जगह पर पीठासीन भगवान) के वकील का पक्ष सुना जा रहा है।

अयोध्या मामले में सुनवाई के छठे दिन रामलला विराजमान के वकील ने दावा किया कि इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त पुरातात्विक साक्ष्य हैं कि मस्जिद पहले से स्थापित मंदिर के खंडहर पर बनी थी। इसलिए शरिया कानून भी इस संरचना को मस्जिद के रूप में मान्यता नहीं दे सकता।

भगवान रामलला विराजमान का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील सी.एस. वैद्यनाथन ने अदालत को बताया कि वह विदेशी आगंतुकों द्वारा लिखे गए विभिन्न यात्रा वृत्तांतों और रेखाचित्रों को आधार बनाकर दावा करते हैं कि यह जगह हिंदुओं की रही है।

इस दौरान उन्होंने 18वीं शताब्दी के ब्रिटिश नागिरक जोसेफ टाइफेंथेलरव मॉन्टगोमेरी मार्टिन के साथ ही अंग्रेज व्यापारी विलियम फिंच जैसे लोगों के यात्रा वृत्तांत के उदाहरण पेश किए, जिनमें भगवान राम के लिए एक निश्चित स्थान के प्रति लोगों के मन में अथाह श्रद्धा बताई गई है।

उन्होंने कहा कि ये विदेशी झूठ बोलने के लिए मजबूर नहीं थे। वैद्यनाथन ने कहा, "अगर मस्जिद किसी मंदिर के खंडहर पर बनाई जाती है, तो वह वैध मस्जिद नहीं हो सकती।"

हिंदू पक्ष प्रमुख रूप से इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा तीन पक्षों के बीच भूमि को विभाजित करने के फैसले से सहमत नहीं हैं।

वैद्यनाथन ने कहा कि इस स्थल को संयुक्त तौर पर बांटना संभव नहीं है।

रामलला विराजमान के लिए पेश हुए एक अन्य वरिष्ठ वकील के. पाराशरन ने भी हिंदू धर्म व भगवान श्रीराम से संबंधित कई तर्क अदालत में पेश किए।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it