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घटते जंगल से आबादी क्षेत्रों में घुसने लगे है वन्य जीव

घटते जंगल व बढ़ती आबादी के बीच जिले में वन्य प्राणियों की संख्या लगातार सिमट रही है

घटते जंगल से आबादी क्षेत्रों में घुसने लगे है वन्य जीव
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जांजगीर। घटते जंगल व बढ़ती आबादी के बीच जिले में वन्य प्राणियों की संख्या लगातार सिमट रही है। थोड़े बहुत बचे जंगली जीव अब आबादी की ओर घुसने मजबूर है। सक्ती क्षेत्र में जहां आये दिन भालू घुस आने की घटना आम हो रही है, वहीं नवागढ़ क्षेत्र में जंगली सुअर का आतंक बढ़ने लगा है।

जिससे आये दिन ग्रामीण हमले का शिकार हो रहे है। वन विभाग लगातार पौध रोपण के जरिये जंगल विस्तारित करने की कवायद में जुटा है, मगर अतिक्रमण व रोपे गये पौधों की उचित देखभाल के अभाव में वन्य क्षेत्र का विस्तार नहीं हो पा रहा। ऐसे में वन्य जीवों का भय वन्य परिक्षेत्र को सुरक्षित रखने कारगर हो सकता है। जिसके लिए दशक भर पूर्व सक्ती क्षेत्र में जामवंत परियोजना को मूर्तरूप देने प्रस्ताव तैयार किया गया था, मगर इस परियोजना की फाईल भी ठण्डे बस्ते में धूल खा रही है।

जामवंत परियोजना की मंजूरी मिलने के बाद भालुओं के संरक्षण के साथ ही क्षेत्र के लोगों को भालुओं के आंतक से मुक्ति मिलेगी। सक्ती ब्लाक के वन क्षेत्र जोंगरा, मसनिया और जुड़गा से लगे जंगल में भालू रहते हैं। वनों के कटने और प्राकृतिक जल स्रोत सूख जाने से आए दिन ये भालू गांवों की ओर आ जाते हैं और लोगों के जानमाल को नुकसान पहुंचाते हैं। सक्ती जंगल से लगे नगरदा, जर्वे व सिवनी क्षेत्र में भी कई बार भालू घुस आते हैं।

इसी तरह की समस्याएं प्रदेश के अन्य वन क्षेत्रों में भी है। इसके चलते राज्य सरकार ने भालुओं की अधिकता वाले क्षेत्रों में जामवंत परियोजना शुरुआत करने की योजना बनाई थी। जिले में सक्ती ब्लाक के वन क्षेत्र में जामवंत परियोजना के तहत भालुओं का संरक्षण करने जोंगरा, जुड़गा और मसनिया से लगे जंगल में कांटेदार तार का घेरा कर वहां पौधरोपण कराने तथा भालुओं के लिए पानी उपलब्ध कराने जल स्रोतों को संरक्षित करने का प्रस्ताव वन विभाग ने तैयार किया था, मगर यह प्रस्ताव अब तक ठंडे बस्ते में है।

वहीं वन विभाग द्वारा जामवंत परियोजना को नए सिरे से प्रारंभ करने की कवायद की जा रही है। इसी तरह बलौदा वन परिक्षेत्र के अंतर्गत दल्हापहाड़ के आसपास थोड़े बहुत जंगल बचा है। मगर यहां विभागीय देखरेख के अभाव में पेड़ों की लगातार हो रही कटाई के चलते जंगली सुअर व अन्य प्राणी भटककर आबादी क्षेत्रों में आये दिन घुसने लगे है। जो फसलों को नुकसान पहुंचाने के अलावा आक्रामक होकर इंसानों पर हमला भी कर देते है। वन्य जीवों को सुरक्षित रखने बड़ी कार्ययोजना बनाये जाने की आवश्यकता है, ताकि इनके भय से लोग जंगल में पेड़ों की अवैध कटाई न कर सके। साथ ही वन्य जीव आबादी वाले क्षेत्रों के बजाय अपने दायरे में पर्याप्त भोजन व पानी पा सके।

भोजन व पानी की समस्या से भटककर घुस आते है भालू

आए दिन वन क्षेत्रों से भालुओं का पलायन ग्रामीण क्षेत्र में होते रहता है, कई बार भालू गांवों में डेरा डाल देते हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में दहशत का माहौल बन जाता है। कुछ माह पूर्व सक्ती नगर के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में घुस आये भालू ने विभाग को खूब छकाया था। जिसे बिलासपुर से आई टीम ने टिंकुलाईजर से काबू में किया था। इसी तरह जंगली सुअर का आतंक भी अक्सर धान की फसल पकने के दौरान सुनने को मिलता है, जो फसलों को नुकसान पहुंचाने के अलावा लोगों पर हमला कर शारीरिक क्षति पहुंचाने की भी घटना को अंजाम देते है। खासकर गर्मी के दिनों में वन के प्राकृतिक जल स्रोत सूख जाते हैं। ऐसे में पानी के लिए भालू गांव की ओर पलायन करते हैं। इसी तरह वनों की अंधाधुंध कटाई से भालुओं को पर्याप्त आहार नहीं मिल पाता। इसके कारण भी वे गांव की ओर चले आते हैं।

दशकों से फाईलों में सिमटी है जामवंत परियोजन

सक्ती क्षेत्र के जंगल में जामवंत परियोजना की शुरूवात तत्कालीन कलेक्टर सोनमणी बोरा के समय की गई थी, मगर फाईलों में बने इस परियोजना की सुध लंबे समय तक किसी ने नहीं ली। करीब पांच साल के बाद कलेक्टर ब्रजेश चंद्र मिश्र ने जामवंत परियोजना के लिए 50 लाख रुपए स्वीकृत करने की बात कही थी। उनके स्थानांतरण के बाद जामवंत परियोजना फिर ठंडे बस्ते में है। वन क्षेत्र के ग्रामीण इस ओर पहल किए जाने की आस में हैं, मगर परियोजना अधर में है। ग्रामीणों का कहना है कि जामवंत परियोजना के पूर्ण होने पर उन्हें भालुओं के आतंक से मुक्ति मिलेगी। प्रभावित गांव जोंगरा, रगजा, रेनखोल और मसनिया के ग्रामीणों में भालू को लेकर भय हमेशा बना रहता है।

वन्य जीव संरक्षण के लिए अभियान को मिले बढ़ावा

जिले में मात्र चार फीसदी क्षेत्रफल में वन हैं। इसमें भी वनों की सुरक्षा नहीं हो पा रही है। पेड़ों की कटाई होने से वन उजड़ रहे हैं। वन भूमि पर अवैध उत्खनन भी अब आम है। छीतापड़रिया की वन भूमि पर अवैध उत्खनन हो रहा है, वहीं बलौदा क्षेत्र के कटरा व छाता जंगल भी उजड़ने लगा है।

लोगों ने वन भूमि पर मकान भी बना लिया है। इसके चलते वन्य प्राणियों की संख्या भी घट रही है। ग्रामीण कई वन्य पशु हिरण, जंगली सुअर और खरगोश आदि का शिकार भी करते हैं। इससे भी वन्य प्राणियों में कमी आई है। वनों को संरक्षित करने के लिए लोगों में जागरूकता भी आवश्यक है। जब तक लोग इसके प्रति सचेत नहीं होंगे समस्या बरकरार रहेगी।


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