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भारत में क्यों बढ़े रह सकते हैं खाने-पीने की चीजों के दाम

भारत में महंगाई मापते हुए जिन चीजों के दाम देखे जाते हैं, उनमें लगभग आधी हिस्सेदारी खाने-पीने की चीजों की होती है. खाद्य पदार्थों में महंगाई की वजह से कुल महंगाई रिजर्व बैंक के चार प्रतिशत के लक्ष्य के ऊपर ही रह रही है. इस वजह से आरबीआई ब्याज दरों को नीचे नहीं ला रहा है. लेकिन आखिर खाद्य मुद्रास्फीति नीचे क्यों नहीं आ रही है.

भारत में क्यों बढ़े रह सकते हैं खाने-पीने की चीजों के दाम
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भारत में नवंबर 2023 से खाने-पीने की चीजों के दामों की महंगाई आठ प्रतिशत के आस-पास ही है. जानकारों का मानना है कि अभी भी इसके नीचे आने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं. लेकिन ऐसा क्यों है?

भारत में महंगाई मापते हुए जिन चीजों के दाम देखे जाते हैं, उनमें लगभग आधी हिस्सेदारी खाने-पीने की चीजों की होती है. खाद्य पदार्थों में महंगाई की वजह से कुल महंगाई रिजर्व बैंक के चार प्रतिशत के लक्ष्य के ऊपर ही रह रही है. इस वजह से आरबीआई ब्याज दरों को नीचे नहीं ला रहा है. लेकिन आखिर खाद्य मुद्रास्फीति नीचे क्यों नहीं आ रही है.

पिछले साल के सूखे और इस समय चल रही हीट वेव की वजह से दालों, सब्जियों और अनाज जैसी चीजों की सप्लाई कम हो गई है. सरकार ने निर्यात पर प्रतिबंध लगाए हैं और आयात पर कर कम किया है, लेकिन इन कदमों का भी कुछ खास असर नहीं हुआ है.

खाद्य मुद्रास्फीति की वजह

यूं तो सब्जियों की आपूर्ति गर्मियों में वैसे भी कम हो जाती है, लेकिन इस साल सामान्य से काफी ज्यादा कमी आई है. देश के लगभग आधे हिस्से में तापमान सामान्य के मुकाबले चार से नौ डिग्री सेल्सियस ऊपर है, जिसकी वजह से खेतों में से काटी जा चुकी सब्जियां जल्द खराब हो रही हैं.

गर्मी की वजह से प्याज, टमाटर, बैंगन और पालक जैसी सब्जियों को उगाने में भी दिक्कत आ रही है. किसान आमतौर पर जून से सितंबर तक होने वाली मॉनसून की बारिश के पहले सब्जियों के बीज तैयार करते हैं और बारिश के बाद उन्हें खेत में लगाते हैं.

इस साल हद से ज्यादा गर्मी और पानी की कमी के कारण पौध उगाने और रोपनी, दोनों में रुकावट आई है. इस वजह से सब्जियों की कमी और बढ़ गई है.

मॉनसून से क्यों मदद नहीं मिली

मॉनसून का इस साल भारत के दक्षिणी छोर से देश में आगमन जल्दी हो गया और फिर वह समय से पहले महाराष्ट्र भी पहुंच गया. लेकिन फिर उसकी आगे बढ़ने की गति धीमी हो गई, जिसका नतीजा यह हुआ कि इस समय बारिश सामान्य से 18 प्रतिशत कम हुई है.

कमजोर मॉनसून, हीट वेव का भी कारण बना और गर्मियों में बोई जाने वाली फसल की बुआई में भी देर हुई. यह बुआई पर्याप्त बारिश में ही गति पकड़ती है. हालांकि, जून की कमजोर बारिश के बावजूद मौसम विभाग ने बाकी के मॉनसून के लिए औसत से ज्यादा बारिश का पूर्वानुमान दिया है.

उम्मीद की जा रही है कि सब्जियों के दाम अगस्त के बाद नीचे आ सकते हैं, लेकिन वह भी तब अगर मॉनसून फिर गति पकड़े और तय समय पर पूरे देश में फैल जाए. लेकिन जुलाई और अगस्त में अगर बाढ़ आ गई या कई दिनों तक बारिश नहीं हुई, तो इससे उत्पादन का चक्र बिगड़ सकता है.

आने वाले दिनों में दूध, अनाज और दालों की कीमतों में कमी आने की संभावना नहीं लग रही है, क्योंकि इनकी सप्लाई अभी भी बढ़ी नहीं है. गेहूं की आपूर्ति काफी कम हो चुकी है और सरकार ने आयात की योजना के बारे में कोई घोषणा नहीं की है. इस वजह से गेहूं के दाम अभी और बढ़ सकते हैं.

चावल के दाम भी बढ़ सकते हैं क्योंकि 19 जून को ही चावल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को 5.4 प्रतिशत बढ़ा दिया गया.

पिछले साल सूखे की वजह से अरहर, उड़द और चने की दाल की सप्लाई पर काफी असर पड़ा था और जब तक इस बार फसलों की कटाई ना हो जाए, तब तक आपूर्ति में सुधार की उम्मीद नहीं है. चीनी के भी दाम बढ़े रहने की संभावना है क्योंकि कम बुआई की वजह से अगले सीजन का उत्पादन भी कम ही रहेगा.

सरकार के हस्तक्षेप से फर्क पड़ेगा?

निर्यात पर प्रतिबंध और आयात में ढील जैसे कदमों से कुछ खाद्य पदार्थों के दाम कम हो सकते हैं. हालांकि, सब्जियों की कीमतों में सरकार कुछ खास नहीं कर सकती है क्योंकि ये काफी जल्दी खराब हो जाते हैं और इन्हें आयात करना मुश्किल होता है.

सरकार ने कीमतों में कमी लाने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे चीनी, चावल, प्याज और गेहूं के निर्यात को सीमित करना. लेकिन ऐसे उपाय किसानों के बीच अलोकप्रिय रहे और इस वजह से लोकसभा चुनाव 2024 में ग्रामीण इलाकों में सत्ताधारी बीजेपी को नुकसान भी हुआ.

महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जहां किसानों की बड़ी आबादी का फैसलों पर असर रहेगा. केंद्र सरकार किसानों का समर्थन जीतना चाह रही है और चुनावों से पहले आक्रामक कदम उठाने की जगह कुछ फसलों के दाम बढ़ने दे सकती है


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