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मणिपुर में क्यों नहीं दिख रहा मोदी मैजिक

मणिपुर में एक महीने से अधिक वक्त से अशांति और हिंसक तनाव का माहौल बना हुआ है

मणिपुर में क्यों नहीं दिख रहा मोदी मैजिक
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मणिपुर में एक महीने से अधिक वक्त से अशांति और हिंसक तनाव का माहौल बना हुआ है। कहने को सुरक्षा बलों ने कानून व्यवस्था बनाए रखने की कमान संभाली हुई है और केंद्र सरकार भी हालात पर नजर रख रही है। लेकिन ये किस तरह की निगरानी है कि हिंसा की घटनाओं पर काबू ही नहीं पाया जा रहा। गृहमंत्री अमित शाह तीन दिन तक राज्य में रहकर आ गए, सभी समुदायों से मुलाकात की, अधिकारियों-नेताओं के साथ बैठकें कीं, लेकिन इसका कोई नतीजा निकलता नहीं दिख रहा।

मणिपुर में उच्च पदों पर बैठे लोग भी खुद को मणिपुरी या भारतीय समझने से पहले कुकी या मैतेई के तौर पर देख रहे हैं। इसका नतीजा ये है कि आपस में अविश्वास और संदेह की खाई गहराई हुई है। कुकी समुदाय के भाजपा विधायकों का भरोसा अपने ही मुख्यमंत्री पर नहीं दिख रहा। मुख्यमंत्री वीरेन सिंह अपनी निष्पक्षता जाहिर करने में असफल साबित हुए हैं। पुलिस प्रशासन में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच विश्वास की कमी देखी जा रही है और स्थिति ऐसी है कि मणिपुर पुलिस के महानिदेशक पद पर त्रिपुरा कैडर के अधिकारी को नियुक्त किया गया है।

नफरत और हिंसा वो बुरी शक्तियां हैं, जो किसी पर वार करने के लिए सात-आठ घर छोड़ने पर यकीन नहीं करतीं। वो अपनी चपेट में हरेक को ले लेती हैं, अपने जन्मदाता को भी। भाजपा ने अगर सांप्रदायिक, जातीय धु्रवीकरण के सहारे कुछ सालों में कुछ चुनाव जीत लिए तो इसका ये कतई मतलब नहीं है कि ये बुराइयां उसके लिए फायदेमंद साबित होंगी और बाकियों के लिए घातक। इनका नुकसान उसे भी कभी न कभी उठाना ही पड़ेगा। फिलहाल मणिपुर इसका ज्वलंत उदाहरण है। मणिपुर में जब हिंसा की चिंगारी सुलगना शुरु हुई थी, तब भाजपा और केंद्र सरकार दोनों कर्नाटक चुनाव में व्यस्त थे। नतीजा ये हुआ कि हालात हाथ से निकल गए। चुनावों से फुर्सत पाकर ही अमित शाह ने मणिपुर की सुध ली और माननीय प्रधानमंत्री तो अब भी इससे दूरी बनाए दिख रहे हैं। जातीय संघर्ष का मुद्दा ऐसा नाजुक है कि जरा सी चूक से राजनैतिक नुकसान हो सकता है, शायद इसलिए श्री मोदी कुछ कर ही नहीं रहे हैं।

भाजपा सरकार में यूं भी हर समस्या का सबसे आसान इलाज इंटरनेट बंद कर देना है, तो मणिपुर में भी यही किया जा रहा है। 10 जून तक इंटरनेट बंद करने का आदेश दिया जा चुका है। इस पर 6 जून को एक जनहित याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई है, जिसमें कहा गया है कि 24 दिनों से लगातार पूर्ण रूप से इंटरनेट शटडाउन का असर अर्थव्यवस्था, मानवीय और सामाजिक आवश्यकता तथा नागरिकों और याचिकाकर्ताओं एवं उनके परिजनों की मानसिक अवस्था पर भी पड़ रहा है। गौरतलब है कि इंटरनेट बंद होने से रोजमर्रा के काम, बच्चों की पढ़ाई, बैंकों का काम, कारोबार सभी में अड़चनें आ रही हैं। लगातार कर्फ्यू के साए में जी रहे नागरिकों के लिए यह दोहरी मार है। लेकिन केंद्र और राज्य सरकार कोई ऐसा कदम नहीं उठा पा रहे हैं, जिससे जनजीवन सामान्य हो।

राज्य में इस वक्त सेना और असम राइफल्स के करीब 10 हजार जवान तैनात हैं। हिंसा को काबू में लाने के लिए सेना तलाशी अभियान चला रही है। लोगों के पास से हथियार और गोला-बारूद बरामद किए जा रहे हैं। अब तक कुल 868 हथियार और 11,518 गोला-बारूद बरामद किये जा चुके हैं। मणिपुर में हथियार बनाने का कोई कारखाना तो है नहीं, जो लोगों के पास इतनी बड़ी मात्रा में हथियार आ जाएं।

जाहिर है हिंसा को जारी रखने के लिए कहीं न कहीं से हथियारों की आपूर्ति की जा रही है और इसका तंत्र एक दिन या एक महीने में बनना संभव नहीं है। हालात बता रहे हैं कि इस तरह की हिंसा को भड़काने की तैयारी काफी पहले से की जा रही होगी, बस मौका मिलने की देर थी। मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल करने की मांग ने यह मौका दे दिया।

सवाल ये है कि केंद्र सरकार मणिपुर में स्थिति की गंभीरता का आकलन पहले क्यों नहीं कर पाई। म्यांमार की सीमा से लगे मणिपुर में उग्रवाद की समस्या पहले से है, फिर क्यों खुफिया एजेंसियों ने इस बात की सतर्कता नहीं बरती कि स्थानीय लोगों तक हथियार न पहुंचे। जब सीमांत प्रदेश सुरक्षित नहीं हैं, तब किस तरह केंद्र सरकार सुरक्षित और मजबूत प्रशासन का दावा कर सकती है।

मणिपुर पूर्वोत्तर राज्य है, लेकिन यह भारत का ही अभिन्न हिस्सा है, इस बात को देश के अन्य राज्यों के लोगों को भी याद रखना होगा। घर का एक हिस्सा जख्मी होता रहे तो बाकियों तक भी उसका दर्द किसी न किसी रूप में पहुंचेगा ही। मणिपुर में इस वक्त जातीय अस्मिता के उन्माद में मानवता को तार-तार किया जा रहा है। कुछ दिनों पहले असम राइफल्स के शिविर पर हथियारबंद लोगों ने हमला किया और वहां घायल एक बच्चे को जब उसकी मां के साथ एंबुलेंस में ले जाया जा रहा था, तो उग्र भीड़ ने एंबुलेंस को घेर कर उसमें आग लगा दी।

युद्ध में सब कुछ जायज होने की बात प्रचलित होने के बावजूद घायलों, बीमारों पर वार न करने की नैतिकता का पालन होता है। यहां तो उस नैतिकता को भी तार-तार कर दिया गया। एंबुलेंस में आग लगाकर तीन निर्दोष जानें ले ली गईं। यह वहशीपन हर हाल में रुके इसके लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। प्रधानमंत्री मोदी जब भाजपा के लिए वोट मांगने मणिपुर जा सकते हैं, तो शांति की अपील लिए जाने में क्या हर्ज है। अगर वाकई मोदी मैजिक नाम की कोई चीज है, तो उसका इस्तेमाल मणिपुर में क्यों नहीं किया जा रहा।


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