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बिहार में ‘रहस्यमय’ तरीके से लगातार हो रही मौत

बिहार में एक साथ कई जिलों में करीब तीन दर्जन से अधिक लोगों की ‘रहस्यमय’ तरीके से मौत हो गई.

बिहार में ‘रहस्यमय’ तरीके से लगातार हो रही मौत
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बिहार में होली के मौके पर और फिर उसके बाद भागलपुर, बांका, मधेपुरा, बक्सर, सिवान व शेखपुरा में 40 लोगों की मौत हो गई. इसके अलावा कई लोगों की आंखों की रोशनी चली गई है. गंभीर अवस्था में ऐसे लोग विभिन्न निजी तथा सरकारी अस्पतालों में इलाज करवा रहे हैं. चर्चा है किजहरीली शराब पीने से इन लोगों की मौत हुई है. ग्रामीण तथा उनके परिजन भी दबी जुबान से इसे स्वीकार करते हैं, लेकिन प्रशासनिक कार्रवाई के डर से वे साफ तौर पर कुछ नहीं कहते हैं. इनमें अधिकतर को पेट दर्द, सांस लेने में परेशानी, उल्टी व सिर में चक्कर आने की शिकायत थी. ज्यादातर लोगों की तबीयत बिगड़ी और अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई.

पहले तो पुलिस-प्रशासन मौत के कारण को लेकर कुछ भी कहने से बचता रहा. केवल इतना कहा जाता रहा कि जांच जारी है और अंतत: बिहार सरकार की ओर से दावा किया गया कि इन लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से नहीं, बल्कि बीमारी की वजह से हुई है. इसका आधार स्थानीय पुलिस-प्रशासन की रिपोर्ट है. इस आशय की भागलपुर तथा बांका के डीएम व एसएसपी की एक ज्वाइंट अंतरिम रिपोर्ट मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक को सौंपी गई है. इन मौतों को ‘रहस्यमय' इसलिए कह रहे हैं कि जहां लोग इन मौतों के पीछे की वजह जहरीली शराब का सेवन बता रहे हैं तो वहीं स्थानीय प्रशासन अपनी जांच रिपोर्ट में इसकी वजह बीमारी बता रहा है.

बगैर पोस्टमार्टम अंतिम संस्कार

बांका के डीएम तथा एसएसपी ने अपनी ज्वाइंट रिपोर्ट में कहा है कि जानकारी मिलते ही एसडीएम तथा एसडीपीओ द्वारा मामले की जांच कराई गई. जांच के क्रम में टीम सभी मृतकों के घर गई तथा एक-एक कर सभी के परिजनों का बयान लिया गया. सभी के परिवार वालों ने मौत की वजह बीमारी बताई. बिना पोस्टमार्टम कराए सभी का अंतिम संस्कार कर दिया गया. इस कारण जहरीली शराब से मौत की पुष्टि नहीं की जा सकती है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बांका जिले के अमरपुर गांव में दस एवं भागलपुर जिले में साहेबगंज प्रखंड में चार तथा मधेपुरा जिले के दिग्गी गांव में तीन लोगों की मौत हुई है. भागलपुर के डीएम व एसएसपी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दो लोगों, 25 वर्षीय मिथुन कुमार व 50 वर्षीय विनोद राय का परिवार की सहमति से पोस्टमार्टम कराया गया है. फोरेंसिक जांच के लिए इनके विसरा को रख लिया गया है.

वहीं 48 साल के संदीप कुमार की मृत्यु की वजह हार्ट अटैक बताया गया है जबकि 34 साल के नीलेश कुमार की मौत स्वाभाविक तौर पर होने की बात कही गई है. पुलिस मुख्यालय के एडीजी जेएस गंगवार के अनुसार, ‘‘भागलपुर व बांका जिला प्रशासन द्वारा जांच के बाद जो रिपोर्ट गृह विभाग को सौंपी गई है उसके अनुसार सभी मौत बीमारी की वजह से हुई है. वहीं, स्थानीय मेडिकल कालेज की रिपोर्ट के अनुसार मधेपुरा में तीन लोगों की मृत्यु का कारण भी बीमारी ही है.''

दबी जुबान कह रहे शराब ही वजह

सरकारी दावे से इतर कई मृतकों के स्वजन तो साफ तौर पर कहते हैं कि मौत की वजह बीमारी नहीं, जहरीली शराब ही है. भागलपुर निवासी मृतक विनोद राय के पुत्र चंदन का कहना था कि उसके पिता ने घर में ही देसी शराब पी थी. वहीं एक अन्य मृतक मिथुन कुमार के साथी अभिषेक का भी कहना था कि दोनों ने मिलकर विदेशी शराब का सेवन किया था. मिथुन की मौत हो गई और उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा.

बक्सर के ददुरा गांव में अमरेंद्र राम और हरेंद्र राम के परिजनों ने भी उनके शराब पीने की बात स्वीकार की है. वहीं, शेखपुरा के बरबीघा में शुभम राज नामक जिस कोचिंग संचालक की मौत हुई है, उसकी तबीयत रविवार को खराब हुई थी. निजी क्लीनिक में इलाज के बाद उसकी हालत और बिगड़ गई और रेफरल अस्पताल ले जाने के रास्ते में उसकी जान चली गई. बिना पोस्टमार्टम करवाए परिजनों ने शुभम का आनन-फानन में अंतिम संस्कार कर दिया. शुभम का दोस्त रितेश कुमार गंभीर रूप से बीमार है. चर्चा है कि होली के मौके पर दोनों ने शराब पी थी, जिसके बाद तबीयत बिगड़ने से शुभम की मौत हो गई.

जानकार बताते हैं कि ये हादसे अधिकतर दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में ही होते हैं. जहां अवैध तरीके से शराब बनाई जाती है, जिसमें मिथेनॉल होता है. यह धीमे जहर का काम करता है. इसका सेवन करने वालों की परेशानी अमूमन पेट दर्द, उल्टी, आंखों की रोशनी जाने व सिर चकराने से होती है और अंतत: जान भी चली जाती है. नालंदा के सिविल सर्जन डॉ. सुनील कुमार कहते हैं, ‘‘ शराब पीने के कारण पकड़े जाने के डर से लोग किसी अस्पताल में जाने से डरते हैं. कई मामलों में देखा गया है कि भर्ती किए जाने के समय ही उनकी मौत हो जाती है.'' स्थानीय तौर पर बनाई जाने वाली देसी शराब के लगातार सेवन से लिवर खराब हो जाता है जो समय के साथ मल्टी ऑर्गन फेल्योर में बदल जाता है और इसके वजह से जान चली जाती है.

ड्रोन व हेलीकॉप्टर से निगरानी भी बेअसर

अप्रैल, 2016 से बिहार में शराबबंदी लागू है. राज्य सरकार इसे लागू करने को हर संभव प्रयास कर रही है, किंतु आंकड़े बताते हैं कि स्थिति दिनोंदिन जटिल होती जा रही है. जब से मद्य निषेध कानून लागू किया गया है तब से अब तक करीब 21 लाख लीटर देसी-विदेशी शराब बरामद की जा चुकी है, जबकि इस कानून के उल्लंघन में करीब साढ़े चार लाख लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं. अब तो ड्रोन व हेलीकॉप्टर से निगरानी की जा रही है, किंतु शराब माफिया का सिंडिकेट टूटता नजर नहीं आ रहा है. उत्पाद आयुक्त बी कार्तिकेय धनजी के अनुसार इस साल 13 से 19 मार्च के बीच ही एक लाख लीटर से अधिक देसी-विदेशी शराब बरामद की गई और शराबबंदी के संदर्भ में 3058 अभियोग दर्ज किए गए.

अर्थशास्त्री एन. के. चौधरी कहते हैं, ‘‘प्रतिबंध की वजह से शराब का धंधा बड़ा ही लाभकारी बन गया है. यह एक सामानांतर उद्योग बन चुका है. बड़े रसूख वाले लोग हरियाणा, उत्तर प्रदेश, झारखंड व अन्य राज्यों से शराब की तस्करी में लिप्त हैं. शराब की डिलीवरी कर अधिक पैसे कमाने की ललक में युवा भी इस धंधे की गिरफ्त में आ रहे हैं.'' स्थिति को समझने के लिए जेडीयू विधायक गोपाल मंडल का बयान ही काफी है. उनका साफ कहना है कि शराब की उपलब्धता के लिए पुलिस जिम्मेदार है. पुलिस महकमे के लोग शराब माफिया से मिले हैं. साहेबगंज के लोग थानेदार को फोन कर रहे थे कि यहां शराब मिल रही है. लोकेशन भी बता रहे थे, लेकिन थाने ने कोई कार्रवाई नहीं की.

पत्रकार सुधीर कुमार मिश्रा कहते हैं, ‘‘शराबबंदी से सबसे ज्यादा सुकून महिलाओं को मिला था. इसके सहारे उन्हें अपनी जिंदगी में बदलाव आता दिख रहा था. लेकिन किसी न किसी रूप में शराब की उपलब्धता अब उनकी जिंदगी को फिर अंधेरे में धकेल रही है. आधी आबादी के पुरजोर समर्थन से सत्ता में आई नीतीश सरकार को गंभीरतापूर्वक इसकी समीक्षा करनी चाहिए, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो.'' अदालत भी समय-समय पर शराबबंदी को लेकर तल्ख टीका-टिप्पणी करती रही है.

ऐसा न हो कि समाज सुधार की दिशा में उठाया गया एक बेहतर कदम कहीं भ्रष्ट अधिकारियों-राजनेताओं व माफिया के सिंडिकेट की भेंट न चढ़ जाए. यह जानना ही होगा कि कहां और किससे चूक हो रही है. शायद इसलिए कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा कहते हैं, ‘‘हद है. पीडि़तों के परिजनों से प्रशासन के लोग कहते हैं कि कह दो कि पेट में दर्द है. क्या 12-13 आदमी को एक ही समय में और एक ही दिन एक साथ दर्द होता है. निश्चित तौर पर यह मामले को दबाने वाली बात है.''


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