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यूरोप के लिए क्यों ऐतिहासिक है 1 मई 2004 की तारीख

1 मई 2024 को यूरोपीय संघ (ईयू) में अब तक हुए सबसे बड़े विस्तार की 20वीं सालगिरह है

यूरोप के लिए क्यों ऐतिहासिक है 1 मई 2004 की तारीख
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1 मई 2024 को यूरोपीय संघ (ईयू) में अब तक हुए सबसे बड़े विस्तार की 20वीं सालगिरह है. ठीक दो दशक पहले 1 मई 2004 को ईयू में 10 नए सदस्य शामिल हुए और सदस्य देशों की संख्या 15 से बढ़कर 25 हो गई.

साल 2004 में हुए ईयू के चौथे विस्तार में सदस्यता पाने वाले नए देश थे: साइप्रस, चेक रिपब्लिक, एस्टोनिया, लिथुआनिया, लातविया, हंगरी, माल्टा, पोलैंड, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया. इन देशों की आबादी साथ जोड़ें, तो ईयू में करीब साढ़े सात करोड़ नए नागरिक जुड़े. नवंबर 1989 में बर्लिन की दीवार गिरने से शीत युद्ध के लंबे दशकों का विभाजन खत्म करने की दिशा में एक ऐतिहासिक मोड़ आया था. इसके 15 साल बाद 2004 में हुआ ईयू का विस्तार पूर्वी यूरोप के साथ मतभेद पाटने के क्रम में बड़ी उपलब्धि माना जाता है.

वर्षगांठ मनाने जर्मन राष्ट्रपति पहुंचे प्राग

इस ऐतिहासिक विस्तार की सालगिरह मनाने जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रांक-वाल्टर श्टाइनमायर चेक रिपब्लिक की राजधानी प्राग पहुंचे हैं. उन्होंने इस विस्तार को याद करते हुए इसे "यूरोप में खुशी का मौका" बताया. 29 अप्रैल को चेक रिपब्लिक के राष्ट्रपति पेत्र पवेल के साथ की गई एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में श्टाइनमायर ने कहा, "मेरा मानना है कि उस समय यूरोपीय संघ में हुआ विस्तार यूरोप में हुए महत्वपूर्ण और सफल बदलाव का एक बेहद प्रभावशाली उदाहरण है. यूरोप आखिरकार शीत युद्ध के कारण हुए अलगाव पर जीत हासिल कर पाया."

उन्होंने आगे कहा, "मुझे यकीन है कि ईयू की सदस्यता ने चेक रिपब्लिक को बदला है, साथ ही चेक रिपब्लिक भी ईयू में बदलाव लाया है." ईयू में आगे और विस्तार की संभावनाओं में जर्मनी के सामरिक हितों को रेखांकित करते हुए श्टाइनमायर ने कहा, "पश्चिमी बालकन देश, यूक्रेन, मोल्डोवा और जॉर्जिया के ईयू में शामिल होने की संभावनाओं का जर्मनी समर्थन करता है."

जर्मन विदेश मंत्री ने भी किया विस्तार का समर्थन

जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने भी नए आवेदक देशों को सदस्यता देने की प्रक्रिया तेज करने की अपील की है. 2004 के ईयू विस्तार की 20वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में बेयरबॉक ने कई यूरोपीय अखबारों के लिए एक लेख लिखा है. इसमें जर्मनी का मत रखते हुए उन्होंने लिखा, "बालकन और ईयू के पूर्वी इलाकों में राजनीतिक और भौगोलिक मामलों में अस्पष्टता बेहद खतरनाक है. हम इन संदेहास्पद स्थितियों का जोखिम नहीं उठा सकते क्योंकि ये पुतिन के लिए दखल देने और अस्थिर करने का आमंत्रण हैं." अल्बानिया, बोस्निया-हर्जेगोविना, कोसोवो, मोंटेनेग्रो, उत्तरी मैसिडोनिया और सर्बिया, ये सभी पश्चिमी बालकन देश हैं.

रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद बदली परिस्थितियों के संदर्भ में बेयरबॉक ने लिखा, "अगर यह बात पहले स्पष्ट नहीं थी, तो यूक्रेन पर रूस के हमले ने साफ कर दिया है कि ईयू में विस्तार करना भूराजनैतिक रूप से बेहद अहम है." जर्मनी ईयू में नए सदस्य देशों को शामिल किए जाने का समर्थक है.

नवंबर 2023 में एक यूरोपीय सम्मेलन के दौरान भी विदेश मंत्री बेयरबॉक ने ईयू में विस्तार को भूराजनैतिक दृष्टि से जरूरी बताया था. उन्होंने ईयू में सुधारों की वकालत करते हुए कहा था, "आकार में बढ़ने का मतलब यह नहीं कि अपने-आप ताकतवर भी हो जाएंगे. हम ऐसा तब ही कर पाएंगे, जब हम ऐसे सुधार करें जो ईयू के भीतर हमारी व्यवस्थाओं और बुनियादों को मजबूत करें." साथ ही, बेयरबॉक ने आगाह किया था कि विस्तार का मतलब साझा मूल्यों से समझौता करना नहीं है. उन्होंने रेखांकित किया कि लोकतंत्र और कानून-सम्मत शासन हमेशा ही ईयू के सबसे आधारभूत तत्वों का हिस्सा बना रहेगा.

क्यों खास था 2004 का विस्तार

2004 का विस्तार इस मायने में भी अहम है कि इसमें भूतपूर्व ईस्टर्न ब्लॉक के देश ईयू के साथ आए. शीत युद्ध के दौर में "ईस्टर्न ब्लॉक" का आशय सोवियत संघ, मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों से था. इनमें ऐसे देश भी थे, जहां 1980 और 1990 के दशक में बड़े स्तर पर हुए आंदोलनों और जनअभियानों ने सोवियत संघ से अलग होने और अधिनायकवादी सत्ता से बाहर निकलने की रूपरेखा तैयार की थी. इसे लिथुआनिया के उदाहरण से देखें, तो यहां राजधानी विलनियस में सोवियत से संबंध तोड़ने और आजाद होने के लिए बड़े स्तर पर जन प्रदर्शन हुए.

मार्च 1990 में लिथुआनिया की संसद ने आजादी का एलान किया, जिसे सोवियत संघ ने स्वीकार नहीं किया. सोवियत संघ से अलग होकर आजादी की राह पर बढ़ने में 1991 का शुरुआती महीना बेहद अहम रहा. जनवरी 1991 में सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव ने लिथुआनिया को अल्टीमेटम दिया कि वो सोवियत की सत्ता को स्वीकार करे, लेकिन लिथुआनिया की संसद ने इसे नामंजूर कर दिया.

हजारों की संख्या में लिथुआनिया के लोग संसद और मीडिया केंद्रों के प्रदर्शन करने लगे. सोवियत की सेना ने हिंसा और बल के सहारे विद्रोह कुचलने की कोशिश की. संसद को निशाना बनाने का प्रयास किया, लेकिन लिथुआनिया के "पार्लियामेंट डिफेंडर्स" ने सोवियत की सेना को चुनौती दी. सशस्त्र प्रतिकार की तैयारियों के अलावा हजारों की संख्या में निहत्थे आम नागरिक संसद के बचाव में कवच बनकर खड़े रहे. माना जाता है कि आम लोगों के इसी समवेत विरोध ने लिथुआनिया के आजाद होने की पटकथा लिखी. 1991 के ही आखिर में सोवियत संघ का भी विघटन हो गया.

कैसे होता है ईयू में विस्तार

मार्च 1957 में छह देशों- जर्मनी, फ्रांस, बेल्जियम, इटली, लक्जमबर्ग और नीदरलैंड्स ने मिलकर "यूरोपियन इकोनॉमिक कम्युनिटी" का गठन किया. इसी को आज हम यूरोपियन यूनियन के नाम से जानते हैं. गठन के बाद से अब तक ईयू में सात बार विस्तार हो चुका है. सबसे हालिया विस्तार जुलाई 2013 में हुआ था, जब क्रोएशिया को सदस्यता मिली. फिलहाल इसमें 27 सदस्य हैं.

ईयू का सदस्य बनने की प्रक्रिया में तीन अहम चरण हैं. पहला, उम्मीदवारी. जो देश सदस्य बनना चाहता है, उसे यूरोपीय परिषद में सदस्यता के लिए आवेदन देना होगा. फिर परिषद यूरोपीय आयोग से यह जांचने को कहेगा कि आवेदक देश सदस्यता की शर्तों को पूरा करने में सक्षम है कि नहीं.

आयोग की अनुशंसा पर परिषद आवेदन का स्टेटस तय करता है.

इसके बाद शामिल होने की आधिकारिक बातचीत शुरू होती है. सदस्यता से जुड़े फैसलों में सभी सदस्य देशों की सहमति जरूरी है. बातचीत के चरण में आवेदक देश ईयू के कानून लागू करने की दिशा में तैयारी करता है. इसे एक्विस कहते हैं. यूरोपीय आयोग निगरानी करता है कि आवेदक देश सुधार की प्रक्रिया में सही तरह आगे बढ़ रहा है या नहीं.

वार्ता का चरण पूरा होने पर आयोग अपनी राय बताता है कि आवेदक सदस्यता के लिए तैयार है या नहीं. अगर राय सकारात्मक हो, तो "एक्सेसन ट्रीटी" तैयार होती है, जिसमें ईयू की सदस्यता से जुड़े नियम और शर्तें विस्तार में दर्ज होती हैं. इसपर हस्ताक्षर कर कानूनी मोहर लगाने से पहले यूरोपीय आयोग, यूरोपीय परिषद और यूरोपीय संसद तीनों की मंजूरी अनिवार्य है.

हालांकि, पश्चिमी बालकन देशों को सदस्यता देने पर एक अलग प्रक्रिया है. इसे "स्टेबलाइजेशन एंड एसोसिएशन प्रॉसेस" (एसएपी) कहा जाता है. इसका मकसद पश्चिमी बालकन्स के सहयोगी देशों को राजनीतिक और आर्थिक तौर पर स्थिरता देना है, ताकि वो ईयू में शामिल होने के लिए तैयार हो पाएं. इसके तहत आर्थिक सहायता देना, ईयू बाजारों तक आसान पहुंच मुहैया कराना और क्षेत्रीय राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना शामिल है.

ईयू के साथ आने से कैसे फायदे?

ईयू में शामिल होने के लिए आवेदक देशों को अपनी व्यवस्था में सुधार और यूरोपीय संघ के साझा मूल्यों के मुताबिक एकरूपता लानी होती है. इनमें मुक्त बाजार, लोकतंत्र, निष्पक्ष चुनाव जैसी शर्तें शामिल हैं.

ईयू के मुताबिक, सदस्य देशों को होने वाले फायदों में राजनीतिक स्थिरता, नागरिकों को ईयू में कहीं भी रहने, पढ़ने और काम करने की आजादी, साझा बाजार के कारण व्यापार में वृद्धि, ज्यादा निवेश और समाज-पर्यावरण के स्तर पर बेहतर जीवनस्तर जैसे पक्ष शामिल हैं.


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