शिवाजी की मूर्ति ढहने पर मोदी क्यों मांग रहे हैं माफी?
महाराष्ट्र्र उन चार राज्यों में शामिल है जिनमें इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं

- डॉ. दीपक पाचपोर
महाराष्ट्र्र उन चार राज्यों में शामिल है जिनमें इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। हरियाणा व जम्मू-कश्मीर में तो प्रक्रिया प्रारम्भ भी हो गयी है जबकि महाराष्ट्र एवं झारखंड की तारीखों का ऐलान कभी सम्भव है। पहले सभी में एक साथ होने के अनुमान व्यक्त किये गये थे लेकिन जब भाजपा को महसूस हुआ कि किसी भी राज्य में उसकी स्थिति मजबूत नहीं कहीं जा सकती।
बिहार में इसी बरसात में एक के बाद एक दर्जन भर से ज्यादा पुल ढह गये, परन्तु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने माफी नहीं मांगी;
कई राष्ट्रीय महामार्ग उखड़ या धंसक गये, परन्तु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने माफी नहीं मांगी; कई ट्रेनें दुर्घटनाग्रस्त हुईं जिनमें कई लोग मारे गये तथा बड़ी संख्या में घायल हुए, फिर भी मोदीजीने माफी नहीं मांगी;
कठुआ, उन्नाव, हाथरस से लेकर मणिपुर में महिलाओं के साथ सिलसिलेवार यौन शोषण हुआ, परन्तु बेटी बचाने का दावा करने और उनके साथ कुछ होने पर कथित रूप से व्यथित होने वाले प्रधानमंत्री ने माफी नहीं मांगी;
एक-दो नहीं बल्कि पिछले सात वर्षों में राष्ट्रीय स्तर की 7 से ज्यादा प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के पेपर लीक हो गये, परन्तु पीएम ने माफी नहीं मांगी;
कई एयरपोर्ट, संसद भवन तथा राममंदिर की छत तक टपकने लगी या उनमें पानी भर गया, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने माफी नहीं मांगी जबकि ये एयरपोर्ट उन्होंने ही अपने कारोबारी मित्रों को सौंपे हैं, संसद भवन उनकी सीधी देख-रेख में बना है तथा राममंदिर तो उनकी आस्था (जैसा कि वे कहते आये हैं) का सबसे बड़ा प्रतीक है;
इतना ही नहीं, कई धार्मिक स्थलों में उनके द्वारा (राजनीतिक रणनीति के तहत ही सही) करोड़ों रुपये खर्च कर स्थापित की गयी मूर्तियां हल्की आंधी में ही उड़ गयीं, फिर भी उन्होंने क्षमा याचना नहीं की;
पिछले कुछ समय में, खासकर उनके ही कार्यकाल में अनेक मूर्तियां तोड़ी गयीं या अपमानित की गयीं। इनमें महात्मा गांधी थे, नेहरू थे, अंबेडकर भी थे; या वे सारे थे जिनकी विचारधारा से मोदी, उनकी भारतीय जनता पार्टी एवं उनके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार मेल नहीं खाते। यहां तक कि उन्होंने खुद ही संसद भवन में महात्मा गांधी और संविधान निर्माता बाबासाहेब अंबेडकर की मूर्तियों को कोने में छिपाकर रख दिया ताकि वहां से होकर आते-जाते वे महापुरुष उनकी नज़रों के सामने ही न आयें; और न ही अन्य लोगों को इन महापुरुषों की मूर्तियां सहसा दिखें। इस कृत्य के लिये भी उन्होंने न किसी के आगे हाथ जोड़े और न ही किसी के सामने मस्तक झुकाकर उनके मानने वालों से माफी चाही;
फेहरिस्त लम्बी है। पिछले दस वर्षों में मोदी के शासनकाल में ऐसा अनेक कुछ हुआ है जिसके लिये खुद मोदी की माफी तो बनती है। सारी ऐसी बातों का उल्लेख न भी करें तो नोटबन्दी को ही ख्याल में ले आयें। उन्होंने इसके कई फायदे बताते हुए यह भी कहा था कि उन्हें ये लाभ दिखाने के लिये केवल 100 दिन चाहिये। फिर वे जनता जिस चौराहे पर कहे, आ जायेंगे।
....फिर ऐसा क्या हुआ कि मुम्बई में लगी शिवाजी महाराज की एक मूर्ति क्या गिरी, 'एक अकेला सब पर भारी' वाले मोदी घुटनों पर आ गये? पश्चाताप, ग्लानि एवं अपराध भाव की सारी हदें पार करते हुए मोदी को बारम्बार क्यों मस्तक नवाकर और हाथ जोड़-जोड़कर माफी मांगनी पड़ी? इतना ही नहीं, उन्होंने शिवाजी को अपना आराध्य बतलाते हुए कहा कि जो भी शिवाजी को अपना आराध्य मानते हैं, उन सबसे वे क्षमा चाहते हैं। आखिर उन्होंने तो मूर्ति नहीं गिराई, न ही उनके समर्थकों ने यह काम किया है (जिसमें वे निष्णात हैं)। देश में कोई भी बेजा बात होती है तो उनके कार्यकर्ता और ट्रोल आर्मी के सिपाही कहते हैं कि यह काम मोदी ने तो नहीं किया है जो उसकी जिम्मेदारी लें या माफी मांगें। अब क्या हुआ है?
वैसे इस क्षमायाचना को लेकर कई लोग कह रहे हैं कि इसका तरीका गलत है क्योंकि उनकी माफी में अहंकार झलकता है। अहंकार से कहीं अधिक इसके पीछे उनकी राजनीतिक रणनीति दिखलाई पड़ती है। यह अलग बात है कि उसमें न तो नफ़ासत, न ही ऐसी बारीकी कि उस पर भरोसा किया जाये। साफ है कि शिवाजी की मूर्ति गिरने का उन्हें दुख जतलाना उनकी सियासी मजबूरी है क्योंकि महाराष्ट्र में चुनाव नज़दीक हैं और वहां भाजपा तथा उसके गठबन्धन (नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस- एनडीए) की हालत पतली है। शिवाजी के ईर्द-गिर्द उस राज्य की राजनीति घूमती है। साठ के दशक में गठित शिवसेना इन्हीं शिवाजी महाराज के नाम पर बनी और वही मराठी अस्मिता की प्रतीक है। चुनाव आयोग ने चाहे अलग हुए धड़े यानी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना को असली माना तथा उसके हाथों में धनुष-बाण का चुनाव चिन्ह थमा दिया हो, लेकिन जनता की नज़रों में असली शिवसेना उद्धव ठाकरे धड़े वाली ही है। महाराष्ट्र्र उन चार राज्यों में शामिल है जिनमें इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। हरियाणा व जम्मू-कश्मीर में तो प्रक्रिया प्रारम्भ भी हो गयी है जबकि महाराष्ट्र एवं झारखंड की तारीखों का ऐलान कभी सम्भव है। पहले सभी में एक साथ होने के अनुमान व्यक्त किये गये थे लेकिन जब भाजपा को महसूस हुआ कि किसी भी राज्य में उसकी स्थिति मजबूत नहीं कहीं जा सकती, तो उसने सरकार की कठपुतली कहे जाने वाले निर्वाचन आयोग के जरिये महाराष्ट्र्र व झारखंड के चुनाव आगे बढ़ा दिये।
महाराष्ट्र में भाजपा का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है। पहला तो यही कि यह चुनाव एनडीए के बिखराव तथा प्रतिपक्षी गठबन्धन इंडिया की मजबूती के बीच हो रहा है। यहां उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में चल रही सरकार को ऑपरेशन लोटस के जरिये गिराने वाली भाजपा जनता की नज़रों से गिरी हुई है। उसके दोनों सहयोगी- एकनाथ शिंदे गुट वाली शिवसेना और अजित पवार गुट वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ भाजपा के सम्बन्ध अविश्वास व तनातनी के हैं। सीएम का चेहरा विवाद का विषय है। इतना ही नहीं, गये लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जो बढ़त मिली है, उससे भी भाजपा परेशान है। यही सबब है मोदी के झुक-झुककर माफी मांगने का।
वैसे तो पिछले कुछ समय से देश का काफी कुछ ढहा है। लोकतांत्रिक मूल्य ढहे हैं, मर्यादाएं ढही हैं, आदर्श ढहे हैं। संसदीय परम्पराएं, लोकतांत्रिक संस्थाएं सब कुछ ढही हैं, सरकार की प्रतिष्ठा और नागरिकों की गरिमा भी ढही है। तो भी माफी न मांगने वाले मोदीजी से उम्मीद करना बेकार है कि वे सच्चे मन से माफी मांग रहे होंगे। हालांकि यह अपने आप में हैरत की बात है कि वे माफी तो मांग रहे हैं परन्तु इस बात की जिम्मेदारी नहीं ले रहे हैं या किसी को कुसूरवार नहीं ठहरा रहे हैं जिसके चलते यह मूर्ति ढही है। यह मामला तो भ्रष्टाचार का है जिसके जिम्मेदार व्यक्ति का नाम सामने आना चाहिये और उसे सज़ा होनी चाहिये। इस मूर्ति के गिरने से मोदी का यह दावा भी हवा में उड़ गया है जिसमें वे कहते रहे हैं कि कोई भी भ्रष्टाचारी उनके पास इसलिये नहीं आ सकता क्योंकि वह उनका ताप सह नहीं पायेगा। महाराष्ट्र में उनके गठबन्धन की ही सरकार है और इस मूर्ति का निर्माण भी इसी सरकार ने कराया है- किसी नेहरू या कांग्रेस सरकार ने नहीं। शिवाजी की प्रतिमा का गिरना बतलाता है कि मोदीजी का यह कहना भी कोरी गप है जिसमें उनका दावा था कि सारे निर्माण स्पेस टेक्नालॉजी से बन रहे हैं और निर्माण होने के दौरान ही वे ड्रोन के जरिये काम की गुणवत्ता का निरीक्षण कर लेते हैं। ऐसे में कोई अचानक शिवाजी को आराध्य कहने लगे, माफी मांगने लगे तो उसकी मंशा एकदम स्पष्ट हो जाती है। मूर्ति के गिरने का दुख नहीं, बल्कि सिर पर आ चुके महाराष्ट्र के चुनाव के हाथ से निकल जाने का डर है।
(लेखक देशबन्धु के राजनीतिक सम्पादक हैं)


