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सरकार ने सिर्फ जम्मू के नेताओं की नजरबंदी क्यों खत्म की....

जम्मू कश्मीर में खंड विकास परिषदों अर्थात बीडीसी के चुनाव करवाने की राज्य चुनाव आयोग की घोषणा ने प्रशासन की जबरदस्त किरकिरी करवा दी

सरकार ने सिर्फ जम्मू के नेताओं की नजरबंदी क्यों खत्म की....
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--सुरेश एस डुग्गर--

जम्मू। जम्मू कश्मीर में खंड विकास परिषदों अर्थात बीडीसी के चुनाव करवाने की राज्य चुनाव आयोग की घोषणा ने प्रशासन की जबरदस्त किरकिरी करवा दी है। ऐसा इसलिए क्योंकि केंद्र शासित प्रदेश बनने से पहले होने जा रहे अंतिम चुनाव और राज्य में पहली बार हो रहे बीडीसी चुनावों में चुनाव आयोग पार्टी आधारित मतदान चाहता है। पर इसकी घोषणा करते हुए वह यह भूल गया कि राज्य की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के सभी नेता हिरासत में हैं और राज्य में 60 परसेंट पंचायतों की सीटें खाली पड़ी हैं जिन्होंने बीडीसी चुनावों में हिस्सा लेना है।

राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी ने 24 अक्तूबर को जम्मू कश्मीर व लद्दाख में बीडीसी चुनावों की घोषणा तो कर दी पर वे इसके प्रति कोई जवाब या आश्वासन नहीं दे पाए कि कश्मीर में इन चुनावों की निष्पक्षता बरकरार रहेगी।

ऐसी आशंका के पीछे के स्पष्ट कारण भी हैं। चुनाव आयोग की घोषणा के मुताबिक, राज्य में 310 बीडीसी के लिए मतदान पार्टी लाइन पर होंगें। पर कैसे, जबकि कश्मीर में लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के नेता 5 अगस्त से ही हिरासत में हैं। हालांकि जम्मू शहर में जो राजनीतिक नेता हिरासत में थे उनकी नजरबंदी हटा ली गई है। पर कश्मीर के नेताओं के प्रति फिलहाल चुप्पी साधी गई है।

अधिकारियों ने माना है कि बीडीसी चुनाव को देखते हुए जममू के नेताओं की नजरबंदी हटाई गई है, ताकि राजनीतिक गतिविधियां शुरू हो सकें। नेकां नेता व पूर्व विधायक देवेंद्र सिंह राणा, सुरजीत सिंह सलाथिया, जावेद राणा व सज्जाद किचलू, कांग्रेस के पूर्व विधायक रमण भल्ला व विकार रसूल तथा जम्मू कश्मीर पैंथर्स पार्टी के पूर्व विधायक हर्षदेव सिंह को नजरबंद किया गया था। इन्हें किसी कार्य से बाहर निकलने के लिए अनुमति लेनी होती थी। ये नेता 15 अगस्त के कार्यक्रमों में भी शरीक नहीं हो पाए थे।

साथ ही पार्टी कार्यालय भी जाने की इन्हें अनुमति नहीं थी। इन नेताओं के घरों के बाहर सादे वेश में पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई थी, जो इनकी हर गतिविधि पर लगातार नजर रखे हुए थे। बताते हैं कि सुरजीत सिंह सलाथिया को चार-पांच दिन पहले विजयपुर तक जाने की अनुमति दी गई थी।

इतना जरूर था कि इनकी नजरबंदी से रिहाई सशर्त है और इसे हटाने के साथ ही नेताओं को हिदायत दी गई है कि वे ऐसा कोई विवादित बयान न दें, जिससे किसी भी तरह से शांति व्यवस्था तथा सौहार्द्र का माहौल पर विपरीत असर पड़े।

सिर्फ राजनीतिज्ञों की नजरबंदी ही नहीं बल्कि राज्य में पंचायतों के रिक्त पड़े स्थान भी बीडीसी चुनावों की प्रक्रिया का मजाक उड़ा रहे हैं। जानकारी के अनुसार, कश्मीर में कुल 19578 पंच और सरपंचों के पद हैं पर इनमें से 61.55 परसेंट अर्थात 12052 खाली पड़े हुए हैं। खाली पड़े पदों में से अधिकतर पर आतंकी धमकियों के कारण चुनाव नहीं हो पाए थे और कई बाद में आतंकी धमकी के चलते खाली हो गए थे।

ऐसे में जबकि बीडीसी चुनावों में सिर्फ पंचों तथा सरंपचों द्वारा ही मतदान किया जाना है तो जब 60 परसेंट से ज्यादा पद रिक्त पड़े हों तो यह चुनावी प्रक्रिया कितनी निष्पक्ष होगी कहीं से कोई जवाब नहीं है। सिवाय इसके कि बीडीसी चुनाव अगर नहीं करवाए गए तो केंद्र से मिलने वाला अनुदान नहीं मिल पाएगा।


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