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कश्मीर, उत्तराखंड के कई इलाकों में क्यों नहीं गिरी बर्फ

कश्मीर के गुलमर्ग और उत्तराखंड के औली समेत कई इलाकों में बाकी वर्षों के मुकाबले बहुत कम बर्फ गिरी है. सूखे मौसम की वजह से कई तरह की समस्याएं हो रही हैं. आखिर क्यों हो रहा है ऐसा.

कश्मीर, उत्तराखंड के कई इलाकों में क्यों नहीं गिरी बर्फ
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कश्मीर में इस साल सबसे कड़ाके की सर्दियों के समय में सूखा मौसम काफी लंबा खिंच गया है, जिसकी वजह से कई लोग बीमार पड़ रहे हैं और किसान आने वाले समय में पानी की कमी को लेकर चिंतित हैं.

लगभग महीने भर से दिन का तापमान सामान्य से काफी ऊपर है. मौसम विभाग के मुताबिक कभी-कभी तो यह सामान्य से छह डिग्री सेल्सियस ऊपर चला गया था. लेकिन रातें अभी भी ठंडी हैं.

क्यों नहीं गिरी बर्फ

अधिकारियों का कहना है कि इलाके में दिसंबर में 80 प्रतिशत कम बारिश हुई और जनवरी के पहले सप्ताह में तो बिल्कुल भी बारिश नहीं हुई. राज्य के अधिकांश मैदानी इलाकों में जरा भी बर्फ नहीं गिरी है.

पहाड़ी इलाकों में बर्फ गिरी तो है, लेकिन सामान्य से कम. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, गुलमर्ग में दिसंबर से अभी तक सिर्फ छह इंच बर्फ गिरी है, जबकि इस समय यहां आम तौर पर डेढ़ से दो फुट तक बर्फ गिरती है. मौसम विभाग के अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि सूखा मौसम कम-से-कम एक और हफ्ता जारी रह सकता है.

उत्तराखंड में भी ऐसे ही हालात हैं. विंटर स्पोर्ट्स के लिए लोकप्रिय औली में साल के इस समय तापमान अमूमन एक से तीन डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है, लेकिन इस साल तापमान आठ डिग्री सेल्सियस के आस-पास है.

विशेषज्ञ इन मौसमी बदलावों को जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग से जोड़ कर देख रहे हैं. उन्होंने चेतावनी दी है कि इन स्थितियों के कारण इलाके के जल संसाधनों और कृषि पर असर पड़ सकता है.

मौसम विभाग के कश्मीर कार्यालय के प्रमुख मुख्तार अहमद ने बताया, "हमने बीते कुछ सालों में देखा है कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से सर्दियों का मौसम छोटा हो गया है. यह इस जगह के लिए, बल्कि किसी भी जगह के लिए, अच्छा नहीं है क्योंकि इसका पनबिजली उत्पादन और पर्यटन से लेकर कृषि समेत कई क्षेत्रों पर बुरा असर पड़ता है."

तकलीफ में हैं स्थानीय लोग

अहमद ने यह भी बताया कि समय से बर्फ का गिरना इस इलाके में मौजूद हजारों ग्लेशियरों को रिचार्ज करने के लिए भी बेहद जरूरी है. ये ग्लेशियर कश्मीर की अर्थव्यवस्था के मुख्य स्तंभ कृषि और बागबानी को बनाए रखते हैं.

बीते कुछ सालों में विशेषज्ञों ने ऐसे इलाकों की पर्यावरण संबंधी नजाकत के बारे में चेतावनी दी है, जहां के लोग मोटे तौर पर पानी के ग्लेशियरों पर निर्भर हैं. अपनी खेती के लिए सर्दियों की बारिश पर निर्भर किसान परेशान हैं. पिछले कुछ सालों में कई किसानों ने पानी की कमी के कारण ज्यादा पानी की खपत वाले अपने धान के खेतों को बगीचों में तब्दील कर दिया है.

तापमान में इतने बदलाव की वजह से कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी पैदा हो रही हैं, खास कर सांस लेने में तकलीफ, जो कई लोगों को हो रही है. बार-बार बिजली चले जाने की वजह से इन चुनौतियों का भार और बढ़ गया है.

कभी-कभी 12 से 16 घंटों तक बिजली नहीं रहती है, जिस वजह से विशेष रूप से मरीजों की देखभाल में दिक्कत आ रही है. उद्योगों पर भी असर पड़ा है. पर्यटन विशेष रूप से प्रभावित हुआ है. औली और गुलमर्ग दोनों को ही विंटर स्पोर्ट्स के लिए जाना जाता है, लेकिन इस बार दोनों स्थानों पर बहुत कम बर्फ गिरी है.

12 जनवरी को कश्मीर के कई इलाकों में हजारों मुसलमानों ने खास नमाज अदा की और सूखे मौसम के अंत के लिए दुआ मांगी. श्रीनगर के जामा मस्जिद में बारिश और बर्फ की दुआ मांगने वाले कई लोगों की आंखें भर आईं. स्थानीय निवासी बशीर अहमद ने बताया, "हमें इस सूखे मौसम में परेशानी और बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है. सिर्फ अल्लाह ही हमें इस विपत्ति से निकाल सकता है."


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