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जर्मनी के विधानसभा चुनाव में विदेश नीति क्यों बना बड़ा मुद्दा?

पूर्वी जर्मनी में कई लोग यूक्रेन को जर्मनी से मिल रही मदद और अमेरिकी मिसाइलों की तैनाती को लेकर संशय में हैं. सैक्सनी, थुरिंजिया और ब्रांडनबुर्ग राज्यों के विधानसभा चुनावों में विदेश नीति से जुड़े ये मुद्दे छाये हैं

जर्मनी के विधानसभा चुनाव में विदेश नीति क्यों बना बड़ा मुद्दा?
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पूर्वी जर्मनी में कई लोग यूक्रेन को जर्मनी से मिल रही मदद और अमेरिकी मिसाइलों की तैनाती को लेकर संशय में हैं. सैक्सनी, थुरिंजिया और ब्रांडनबुर्ग राज्यों के विधानसभा चुनावों में विदेश नीति से जुड़े ये मुद्दे छाये हैं.

सितंबर में पूर्वी जर्मनी के सैक्सनी, थुरिंजिया और ब्रांडनबुर्ग राज्य में चुनाव होने वाले हैं. इन चुनावों में विदेश नीति से जुड़े मुद्दे छाये रहने की संभावना है. चुनाव प्रचार अभियान के दौरान रूस-यूक्रेन युद्ध पर जर्मनी का रुख, कीव को जर्मनी से हथियारों की आपूर्ति, बुंडेसवेयर (जर्मनी की सेना) को मजबूत बनाना और जर्मनी में नए अमेरिकी हथियारों की तैनाती से जुड़े सवालों के चर्चा में रहने की उम्मीद है.

यूं तो विदेश नीति संघीय, यानी केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन इस बार यह क्षेत्रीय चुनाव में भी अहम मुद्दा बन गई है. राज्य के नेताओं के यूं अचानक विदेश नीति पर अपना रुख जताने का एक कारण लोगों के बीच, खासतौर पर पूर्वी जर्मनी के निवासियों में फैला संशय है. लोग सोशल डेमोक्रैट्स (एसपीडी), ग्रीन्स और फ्री डेमोक्रैट्स (एफडीपी) की क्रेंद में सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार के यूक्रेन संबंधी नीति को संदेह से देख रहे हैं.

फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से जर्मनी ने यूक्रेन को हथियार, नगद भुगतान और मानवीय सहायता के रूप में लगभग 23 अरब यूरो की मदद मुहैया कराई है. अब तक सिर्फ अमेरिका ही है, जिसने यूक्रेन की जर्मनी से ज्यादा मदद की है. हाल ही में 'फोर्सा पोलिंग इंस्टिट्यूट' ने पाया कि पूर्वी जर्मनी में 34 फीसदी प्रतिभागियों का मानना है कि यूक्रेन का समर्थन करने के लिए जर्मनी बहुत ही ज्यादा चीजें कर रहा है.

एरफुर्ट यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के विशेषज्ञ आंद्रे ब्रोडोष बताते हैं कि संघीय राजनीतिक मुद्दों का इस्तेमाल चुनाव प्रचार में भावनाओं को भड़काने के लिए किया जा रहा है. उन्होंने जर्मन प्रसारक एमडीआर को दिए साक्षात्कार में कहा, "भले ही राज्य स्तर पर इस मुद्दे पर वास्तव में कुछ नहीं किया जा सकता, लेकिन पार्टियों के लिए मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए यह अहम साबित हो रहा है." ब्रोडोष कहते हैं कि मतदाताओं का समर्थन जुटाने के लिए युद्ध और शांति जैसे भावनात्मक मुद्दे निश्चित रूप से बड़े अवसर होते हैं.

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संघीय स्तर पर रूढ़िवादी क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन (सीडीयू) और क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) यूक्रेन में जर्मन सरकार की कार्रवाइयों का बड़े पैमाने पर समर्थन करती है. वहीं, हाल ही में पूर्वी जर्मनी में जनाधार बढ़ाने वाली दो पार्टियां, धुर-दक्षिणपंथी एएफडी (ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी) और पॉप्युलिस्ट पार्टी बीएसडब्ल्यू (सारा वागनक्नेष्ट अलायंस) यूक्रेन को हथियार देने का विरोध कर रही हैं और रूस के साथ बातचीत के पक्ष में हैं.

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इस साल की शुरुआत में बीएसडब्ल्यू का गठन करने वाली वाम दल की पूर्व नेता सारा वागनक्नेष्ट ने इस अवसर का भरपूर लाभ उठाया है. थुरिंजिया में बीएसडब्ल्यू को करीब 20 फीसदी वोट मिलने की संभावना है. चुनाव के बाद सरकार में पार्टी की अहम भूमिका हो सकती है.

जर्मनी के पब्लिक ब्रॉडकास्टर डॉयचलैंडफुंके को जुलाई में दिए एक साक्षात्कार में वागनक्नेष्ट ने कहा, "पूर्वी जर्मनी में चुनाव भी युद्ध और शांति पर एक जनमत संग्रह है." दूसरे शब्दों में कहें तो जो भी यूक्रेन के पक्ष में है, वह युद्ध के पक्ष में है. वागनक्नेष्ट के मुताबिक, उनके मतदाता उनसे यह सुनिश्चित करने की उम्मीद कर रहे हैं कि जर्मनी में युद्ध का खतरा न बढ़े.

यूक्रेन युद्ध पर वागनक्नेष्ट का मत काफी हद तक धुर-दक्षिणपंथी एएफडी से मेल खाता है. एएफडी को भी थुरिंजिया और सैक्सनी में 30 फीसदी से अधिक वोट मिल सकते हैं.

रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का जिक्र करते हुए एएफडी के सह-अध्यक्ष टीनो कोपाला ने जून में पब्लिक ब्रॉडकास्टर जेडडीएफ को दिए साक्षात्कार में कहा था कि रूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध हटा देना चाहिए. उनका तर्क था कि प्रतिबंध जारी रहने से जर्मनी की अर्थव्यवस्था को ही नुकसान पहुंचेगा. उन्होंने कहा, "जर्मनी को अपने हितों का ध्यान रखना होगा. हम ऊर्जा के लिए काफी ज्यादा कीमत चुका रहे हैं और महंगाई आसमान छू रही है. यह सब प्रतिबंधों की वजह से ही हुआ है. इसे रोकना चाहिए."

सैक्सनी राज्य के मुख्यमंत्री मिषाएल क्रेत्शमर (सीडीयू) ने संघीय बजट से जुड़ी खामियों और जरूरतों को देखते हुए यूक्रेन को हथियार सहायता कम करने की मांग की है और यूक्रेन युद्ध में कूटनीतिक कार्रवाई पर जोर दिया है. उन्होंने जर्मन मीडिया संस्थान आरएनडी से बातचीत में कहा, "मैं एक बार फिर कूटनीतिक प्रयासों को तेज करने की मांग कर रहा हूं. उदाहरण के लिए, हमें पुतिन पर दबाव डालने के लिए चीन और भारत के साथ गठबंधन करना चाहिए, ताकि वे युद्ध को रोकने के लिए सहमत हो जाएं." ब्रांडनबुर्ग राज्य के मुख्यमंत्री डीटमार वॉइड्के (एसपीडी) ने भी इसी तरह का विचार व्यक्त किया है.

अमेरिकी मिसाइलों की तैनाती

हाल ही में एक और ऐसी घटना हुई है, जिस वजह से यह बहस अब जोरों पर है. दरअसल, यूक्रेन पर रूसी हमले के जवाब में अब 2026 तक जर्मनी में मध्यम दूरी की नई अमेरिकी मिसाइलों को तैनात करने की योजना है. जुलाई के मध्य में अमेरिका में नाटो सम्मेलन के दौरान यह बात सार्वजनिक तौर पर सामने आयी. अगस्त की शुरुआत में जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की पार्टी एसपीडी ने मिसाइलों की तैनाती पर सहमति जताई.

जिस तरह से यह बता बताई गई, उससे अब थुरिंजिया के गृह मंत्री गेयॉर्ग मायर (एसपीडी) परेशान हैं. उन्होंने डॉयचलैंडफुंके रेडियो पर कहा, "इस फैसले से हमारे चुनावी अभियान पर काफी असर पड़ेगा." हालांकि, उन्हें इस तरह की तैनाती पर कोई खास आपत्ति नहीं है. वह कहते हैं, "राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामले मेरे लिए सबसे पहले आते हैं. जिस तरीके से इसे सार्वजनिक तौर पर जाहिर किया गया, उससे मुझे थोड़ी चिंता है."

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सैक्सनी के मुख्यमंत्री क्रेत्शमर ने भी मिसाइलों को तैनात करने का समर्थन किया है. जुलाई में आरटीएल और एनटीवी को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि वह यूरोप के लिए मिसाइल रक्षा कवच का समर्थन करते हैं. हालांकि, उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि हथियारों के मामले में जो होना चाहिए वह हो रहा है, लेकिन लोगों को सूचना जरूर दी जानी चाहिए और इसपर चर्चा की जानी चाहिए. यह चर्चा बड़े स्तर पर होनी चाहिए. उन्होंने बाद में इस मामले पर जनमत संग्रह का भी सुझाव दिया.

एएफडी संसदीय समूह के नेता और प्रमुख उम्मीदवार योर्ग उर्बन ने बताया, "क्रेत्शमर जानबूझकर रूस के साथ संघर्ष के खतरनाक रूप से बढ़ने और हथियारों की नई दौड़ का जोखिम उठा रहे हैं. जाहिर है कि उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि शीत युद्ध के दौरान जर्मनी कई बार परमाणु आपदा से बाल-बाल बचा था."

सारा वागनक्नेष्ट ने हाल ही में कई मौकों पर कहा है कि बीएसडब्ल्यू किसी भी राज्य सरकार में शामिल होने पर तब विचार करेगी, जब उसके सहयोगी जर्मनी में नए अमेरिकी हथियार तैनात करने की योजना को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर देंगे.

वहीं, सीडीयू के विदेश नीति प्रवक्ता रोडेरिष कीजेवेटर ने जर्मनी में अमेरिकी मिसाइलों पर पूरी बहस की आलोचना की. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "यह इस बात का भी उदाहरण है कि जर्मनी में सुरक्षा नीति पर बेतुकी बहस हो रही है. लोग राष्ट्रीय सुरक्षा के मूल सिद्धांतों को नहीं समझ रहे हैं और बिना सोचे-समझे प्रतिक्रिया दे रहे हैं. मेरी राय में मिसाइलों को तैनात करने के इस फैसले का चुनावों पर सीमित असर पड़ेगा."

सत्तारूढ़ एसपीडी, ग्रीन्स और एफडीपी के अलावा सीडीयू के वो नेता, जो पूर्वी जर्मनी में प्रचार कर रहे हैं निश्चित रूप से इस विचार से सहमत नहीं हैं. हकीकत यह है कि जर्मनी में नए अमेरिकी हथियारों की तैनाती और यूक्रेन के लिए लगातार समर्थन दे रही ये पार्टियां तेजी से अकेली पड़ती जा रही हैं


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