बजरंग दल को चुनाव में लाने वाला कांग्रेसी कौन?
इंग्लैंड में तो अभी लगा गॉड सेव दे किंग मगर हमारे यहां 9 साल से रोज लग रहा है

- शकील अख्तर
जीत का कोई विकल्प नहीं होता। कांग्रेस को यह बात समझ जाना चाहिए कि अभी नहीं तो कभी नहीं। विश्वासघाती इससे पहले कि आप पर आरोप लगाकर जाएं आपको पहले ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए। 2024 लोकसभा में अब समय नहीं है। आपको रैंक और फाइल दुरुस्त करना होगा।
इंग्लैंड में तो अभी लगा गॉड सेव दे किंग मगर हमारे यहां 9 साल से रोज लग रहा है। जनता तो कम लगा रही है मगर देश की सभी संवैधानिक संस्थाएं खासतौर से मीडिया पूरी ताकत से रोज सुबह अखबारों में और चौबीस घंटे टीवी पर यही कोरस गा रहा है।
बड़े-बड़े कांड हुए। चीन घुस आया, कोरोना में लाखों लोग बिना इलाज, आक्सीजन, एम्बुलेंस के मर गए। शव नहीं जला पाए। पुलों से नीचे फेंक दिए। अभी मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री रहे कैलाश जोशी, जिनकी सादगी और सज्जनता ऐसी थी कि उन्हें संत राजनेता कहा जाता था, उनके पुत्र दीपक जोशी ने कहा कि उनकी पत्नी को एबुलेंस नहीं मिली और वे मर गईं। दीपक खुद भाजपा से तीन बार के विधायक और पूर्व मंत्री रहे हैं। अगर उनकी पत्नी को सहायता नहीं मिली तो समझ लीजिए कि फिर किस को मिली होगी। आरोप तो उन्होंने और भी लगाए हैं जिनमें यह महत्वपूर्ण है कि सवाल उठाने पर उन्हें आतंकवादी कहा गया। आज जिससे भी कोई छोटा मोटा विरोध हो उन सबको आतंकवादी कह दिया जाता है। अपनी और अपने पिता कैलाश जोशी की पार्टी जिसके चुनाव चिन्ह के नाम पर उनका नाम नाम दीपक रखा गया ( भाजपा का पूर्व नाम जनसंघ था और उसका चुनाव चिन्ह दीपक था) में बहुत अपमानित होने के बाद अब वे कांग्रेस में आ गए हैं।
खैर तो उनके और कैलाश जोशी के अपमान की कहानी अलग है मगर फिलहाल कि इस सब के बावजूद हमारे यहां आएगा तो मोदी ही के नारे लगते रहे। मजदूर हजारों किलोमीटर अपने बच्चों, वृद्ध मां-बाप को लेकर पैदल चलता हुआ गांव गया। राहुल की पद यात्रा उनके दु:ख दर्द को देश के सामने लाने की ही एक कोशिश थी।
कन्याकुमारी से कश्मीर तक चार हजार किलोमीटर की पांच महीने तक चली यात्रा में लाखों लोगों ने हिस्सा लिया। मगर उस यात्रा की सही भावना कांग्रेस लोगों तक नहीं पहुंचा पाई। वह खुद ही भ्रमित रही कि यात्रा राजनीतिक है या नहीं?
अभी सोनिया गांधी ने कर्नाटक में अपनी चुनाव रैली में यात्रा के महत्व को प्रतिपादित किया। नहीं तो कोई कांग्रेसी नेता इसका नाम ही नहीं ले रहा था। यात्रा कर्नाटक में तीन हफ्ते रही थी। सारा माहौल बदल दिया। राहुल 500 से ज्यादा किलमीटर यहां चले थे। मगर कांग्रेसियों की समझ में इसका महत्व नहीं आया उन्होंने तो बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का वादा करने पर ज्यादा ताकत लगा दी।
अगर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को कर्नाटक के बाद भाजपा से सीधे मुकाबले में होने वाले तीन राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में अच्छा प्रदर्शन करना है तो उसे इसके लिए दोषी व्यक्ति को पकड़ना पड़ेगा। मालूम तो सबको है कि चुनाव घोषणा पत्र में यह शामिल किसने करवाया मगर इस बार उसे सज़ा भी देना होगी।
चुनाव पूरी तरह चालीस परसेंट कमीशन की भाजपा सरकार, भ्रष्टाचार, राहुल की पांच गारंटी, बेरोजगारी, महंगाई, राज्य के लोकल मिल्क ब्रांड नंदिनी को खत्म करने की साजिश पर चल रहा था। भाजपा के पास इसका कोई जवाब नहीं था। मगर किसी कांग्रेसी ने बजरंग दल के कर्नाटक में नॉन इशु को इशु बनाकर भाजपा को उसका मनचाहा मुद्दा दे दिया। आपरेशन दिल का होना था सब उसकी तैयारी में लगे थे। मगर एक ने घुटना पकड़कर कहा कि ये तकलीफ बड़ी है। पहले इसका आपरेशन करेंगे। हार्ट से सबका ध्यान नी रिप्लेसमेंट पर ले आया। कांग्रेस में यही हो रहा है। यहां कोई जिम्मेदारी फिक्स नहीं होती है। लोग बड़े-बड़े कांड करके न केवल बचकर निकल जाते हैं बल्कि नया पद और ओहदा भी पा लेते हैं।
तो यह कहानी दो तरफ चल रही है। एक सब कुछ हो जाने, होते रहने के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी को कोई परवाह नहीं। पिछला तो कुछ बताया मगर बहुत कुछ और भी है और जनता को मालूम भी है मगर उसे उन सब पर ध्यान केन्द्रित नहीं करने दिया जाता। आज भी जंतर मंतर पर महिला पहलवान बैठी रो रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनकी एफआईआर की बात मान ली, अब उनका केस बंद। यह वैसे ही है जैसे कोई आपके गंभीर पेशेंट को अस्पताल में भर्ती नहीं कर रहा हो। और आप किसी से कह सुनकर उसे भर्ती करवा दें। मगर फिर उसे कोई डाक्टर देखने नहीं आए। इलाज न हो। और कहा जाए कि आपकी भर्ती करवाने की मांग मान ली। अब आगे बात करने की जरूरत नहीं है!
मणिपुर का तो हम जिक्र ही नहीं कर रहे। इतना संवेदनशील मामला है कि सोचने में भी डर लगता है। कांग्रेस को गाली देना तो बहुत आसान है। मगर मणिपुर को कैसे भारत में मिलाया और उस सहित सारे उत्तर पूर्व को किस तरह स्थानीयता के सम्मान के साथ राष्ट्रीय धारा में बनाए रखा यह आज कितने लोगों को याद है। मणिपुर 1947 में भारत की आजादी के समय देश का हिस्सा नहीं था। बाद में 1949 में पंडित नेहरू ने इसका भारत में विलय करवाया। आज वहां भी विभाजन की आग लगा दी। नफरत ऐसी आग है जो एक जगह नहीं रहती है, वह तो फैलती है। हिन्दू-मुसलमान से बहुत आगे बढ़कर वह देश भर में क्षेत्रीय, जाति, भाषा आदिवासी, गैर आदिवासी, दलित, पिछड़े और अभी पहलवानों के आंदोलन को तोड़ने के लिए देखा कि किस तरह इसको जाट बनाम राजपूत बना दिया गया।
तो कहानी का दूसरा पार्ट यह है कि इतना सब कुछ हो रहा है मगर देश में कहीं चर्चा नहीं। मीडिया या तो जनता आम आदमी के दु:ख दर्द दिखाता नहीं या उसे झूठा बताने लगता है। ओलंपिक से पदक लाने वाले उस स्तर के पहलवानों की तुलना कामनवेल्थ और एशियाड से भी नीचे के स्तर के धावकों से करके जिला और राज्य स्तर के पदकों की संख्या गिन रहा है। साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंगी पूनिया विश्व स्तर के पहलवान हैं। उन्हीं की तरह व्यक्तिगत खेल में विश्व स्तर का एथलीट है नीरज चोपड़ा जिसने इन पहलवानों का समर्थन किया है।
मीडिया ने ऐसा झूठ फैलाया कि लोगों को लगने लगा कि पीटी उषा ओलंपिक से कोई पदक लाई है। वह ओलंपिक स्तर पर कहीं नहीं रही। मगर उनका सम्मान है। लेकिन टीवी वाले तो ओलंपिक पदक लाने वाले बजरंग पुनिया और साक्षी की तुलना ऐसे पीटी उषा से करने लगे जैसे वे मिल्का सिंह की तरह सेकेंड के हजारवें हिस्से से ओलंपिक में मेडल लाने ले रह गई हों। पहलवानों को नीचा दिखाने के लिए दूसरे खिलाड़ियों को महान बताया जा रहा है। देश तो यह मानता था सब अच्छा कर रहे हैं। तुलना का कोई मतलब ही नहीं है। मगर ब्रजभूषण सिंह को तो महान बताया नहीं जा सकता तो दूसरे खिलाड़ी जिनसे कोई झगड़ा ही नहीं है तो उनके स्कूल से लेकर आज तक के सर्टिफिकेट, मेडल गिनना शुरू कर दो।
खैर यह सब तब तक चलता रहेगा जब तक विपक्ष की समझ में यह नहीं आएगा कि चुनाव जीतना ही माहौल बदल सकता है। मीडिया सारी खबरें छुपा सकता है, तोड़-मरोड़कर पेश कर सकता है मगर चुनाव जीतना उसे दिखना पड़ेगा।
इसलिए कांग्रेस के लिए कर्नाटक महत्वपूर्ण है। कांग्रेस जो चुनावों को बहुत ही कैजुअल वे में लेती ही अब नहीं चलेगा। 2014 के बाद पहली बार पार्टी कर्नाटक में पूरी ताकत से चुनाव लड़ रही है। हालांकि यहां भी कांग्रेसियों ने ही पीठ पर छुरा भोंकने की बहुत कोशिश की मगर राज्य के दोनों बड़े नेताओं सिद्धारमैया, डी के शिवकुमार और सोनिया, राहुल, प्रियंका ने सब बहुत अच्छी तरह संभाल लिया।
जीत का कोई विकल्प नहीं होता। कांग्रेस को यह बात समझ जाना चाहिए कि अभी नहीं तो कभी नहीं। विश्वासघाती इससे पहले कि आप पर आरोप लगाकर जाएं आपको पहले ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए।
2024 लोकसभा में अब समय नहीं है। आपको रैंक और फाइल दुरुस्त करना होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


