मतदान के दूसरे चरण में किसे बढ़त?
पहले चरण में संयुक्त प्रतिपक्ष इंडिया द्वारा बढ़त लेते हुए दिखने के बाद अब इस बात की उत्सुकता बढ़ गई है कि 18वीं लोकसभा के लिये शुक्रवार को होने जा रहे मतदान के दूसरे चरण में कौन आगे निकल जायेगा

पहले चरण में संयुक्त प्रतिपक्ष इंडिया द्वारा बढ़त लेते हुए दिखने के बाद अब इस बात की उत्सुकता बढ़ गई है कि 18वीं लोकसभा के लिये शुक्रवार को होने जा रहे मतदान के दूसरे चरण में कौन आगे निकल जायेगा। यह भी सवाल है कि भारतीय जनता पार्टी एवं उसके गठबन्धन यानी नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) को नुकसान भरपाई करने का मौका मिलेगा या इंडिया इसके बाद ऐसी बढ़त बना लेगा कि भाजपा-एनडीए को उसकी बराबरी कर पाना मुश्किल हो जायेगा? राजनीतिक पर्यवेक्षकों तथा विश्लेषकों का मानना है कि अगर इंडिया ने इस राउंड में एनडीए को पहले जैसी टक्कर दी तो भाजपा का 370 व 400 सीटों के पार जाने का नारा तो हवा में उड़ ही जायेगा, उसे बहुमत (272 का आंकड़ा) के भी लाले पड़ जायेंगे। अनुमान कुछ ऐसे ही बतलाये जा रहे हैं।
एक सप्ताह पहले यानी 19 नवम्बर को 21 राज्यों की 102 सीटों के लिये मतदान हुआ था। अब 13 राज्यों की 88 सीटों के लिये मतदान होने जा रहा है। इस चक्र का महत्व सिर्फ इस लिहाज से नहीं है कि इसमें राहुल गांधी (वायनाड-केरल), अरूण गोविल (मेरठ-उत्तर प्रदेश), शशि थरूर (तिरुअनंतपुरम-केरल), कर्नाटक के पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी (कर्नाटक-मांड्या) आदि की प्रतिष्ठा दांव पर है या इस राउंड में 16 फीसदी सीटों के लिये लोग मतदान करेंगे, बल्कि वह इसलिये है कि अब लगभग सभी एक स्वर में कह रहे हैं कि इसमें भी इंडिया को बढ़त मिलने की पूरी सम्भावना है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने तो झारखंड की राजधानी रांची में इंडिया की हुई विशाल रैली में दावा किया था कि पहले चरण में विपक्षी गठबन्धन को 80 से 90 सीटें मिल रही हैं। यह सभा वहां के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार कर जेल में डाले जाने के खिलाफ 21 अप्रैल को आयोजित की गई थी। वैसे लोग यह दावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अपनी प्रचार सभाओं में इस्तेमाल की जा रही भाषा से भी कर रहे हैं जिसके स्तर में अभूतपूर्व गिरावट दर्ज हुई है।
प्रथम चरण के मतदान के बाद ही मोदी ने अनेक ऐसी बातें कही हैं जिनसे न सिर्फ उनके पद की गरिमा और भी गिरी है वरन वह समाज के लिये ही खतरनाक साबित हो सकती है। उन्होंने राजस्थान के बांसवाड़ा में प्रचार रैली को सम्बोधित करते हुए 18 वर्ष पहले दिये तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के उस बयान को तोड़-मरोड़कर उद्धृत किया जिसमें उन्होंने कहा था कि 'देश के संसाधनों पर पहला अधिकार भारत के वंचितों, आदिवासियों, पिछड़ों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों आदि का है।' इस बयान को बड़े ही घृणित तरीके से प्रस्तुत करते हुए मोदी ने कहा कि 'अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो मंगलसूत्र छीनकर अधिक बच्चे वालों के बीच बांट दिये जायेंगे।' उनका इशारा मुस्लिमों की तरफ था। अगले दिन इसी नैरेटिव को आगे बढ़ाते हुए मोदी ने उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में यह कह दिया कि 'कांग्रेस की नज़र आपकी सम्पत्ति पर है।' बुधवार को छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में भी उन्होंने इसी आशय का भाषण दिया- बावजूद इसके कि उनके खिलाफ़ कांग्रेस ने निर्वाचन आयोग से शिकायत की है।
एनडीए के सहयोगी अकाली दल ने भी इस पर आपत्ति जताई है। वैसे तो इस मामले पर उन्हें माकूल जवाब कांग्रेस के कई लोगों की ओर से मिल गया, साथ ही मनमोहन सिंह का असली बयान क्या है, यह भी सामने आ गया है। लोग जान गये हैं कि डॉ. सिंह ने 'मुस्लिम' शब्द का इस्तेमाल ही नहीं किया था। वैसे तो कांग्रेस का न्याय पत्र (घोषणापत्र) जब जारी हुआ था, उसके दूसरे दिन ही मोदी ने इस पर 'मुस्लिम लीग की छाप' बतलाई थी। हालांकि यह कोई समझ नहीं पाया कि इसमें ऐसा क्या है जिससे मुस्लिम लीग का असर दिखे।
ऐसे ही, कांग्रेस को बदनाम करने के उद्देश्य से उन्होंने देश में संचार क्रांति लाने वाले सैम पित्रोदा के उस बयान को भी तोड़-मरोड़कर पेश किया जिसमें पित्रोदा ने विरासत टैक्स पर बात की थी। इसका सन्दर्भ व अवसर एकदम अलग था लेकिन मोदी उसका भी कांग्रेस के खिलाफ इस्तेमाल करने से नहीं चूके। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस विरासत टैक्स के नाम से जनता की सम्पत्ति लूट लेगी। स्वयं पित्रोदा ने इसका खंडन किया व अपने बयान को सही रूप में व्याख्यायित कर मोदी के छल को बेनकाब किया है। कांग्रेस ने इसकी भी शिकायत की है। मोदी के लिये वैसे इससे बड़ा संकट कोई हो नहीं सकता क्योंकि उनके सारे दांव उल्टे पड़ रहे हैं और कांग्रेस व विपक्ष उनकी गलतबयानी व असत्य का लगातार पर्दाफाश कर रहा है। इसका असर न सिर्फ मोदी बल्कि सभी भाजपा नेताओं की सभाओं में लोगों की घटती संख्या के रूप में दिख रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस नेताओं एवं इंडिया गठबन्धन की सभाओं में खचाखच भीड़ है।
मोदी व भाजपा की दिक्कतों को इस मायनों में दोहरा होता हुआ कहा जा सकता है कि एक ओर तो कांग्रेस का न्याय पत्र जनता में लगातार लोकप्रिय हो रहा है, तो वहीं इंडिया गठबन्धन टूट तो नहीं ही रहा है, सतत मजबूत हो रहा है। बेशक कहीं-कहीं उसके सामने सीटों के बंटवारे को लेकर अवरोध आ रहे हैं तथा कई कांग्रेसी नेताओं ने ऐसे कठिन दौर में पार्टी भी छोड़ी है लेकिन उसका भाजपा या एनडीए को फायदा होता नहीं दिख रहा है। हां, इंडिया-कांग्रेस का कारवां जारी है! इन सभी तथ्यों को ही मोदी की बौखलाहट का कारण माना जा रहा है; और इंडिया की बढ़त का आधार भी।


