हमारे मन की भावना दिखाती है शब्द जब बन जाता है आईना
पुस्तक की सबसे पहली कविता 'शब्द आईना है' में कवि लिखते हैं, शब्द एक आईना की तरह ही है जो कि हमें बताता है कि इंसान की औकात क्या है

- नृपेन्द्र अभिषेक नृप
अपनी कविताओं के माध्यम से साहित्य की दुनिया में अलग पहचान बनाने वाले राजस्थान के प्रसिद्ध कवि डॉ. नवीन दवे मनावत का प्रथम कविता संग्रह 'शब्द जब बन जाता है आईना' में शब्दों को बहुत ही सुंदर रूप में सजाया ह। इसमें कवि द्वारा भावनाओं के प्रत्येक रूप को कागज पर उतार दिया गया है। इनकी कविताओं में इंसान के हर पहलुओं पर उद्दारीत भावनाएं नजर आ रही है जो कि पुस्तक में चार-चाँद लगा रहा है।
पुस्तक की सबसे पहली कविता 'शब्द आईना है' में कवि लिखते हैं, शब्द एक आईना की तरह ही है जो कि हमें बताता है कि इंसान की औकात क्या है। शब्द ही इंसान को गिराता है और यही शब्द जो गिरे हुए को उठाता भी है।
कविता 'कागज़' में वर्तमान युग में जब सोशल साइट पर प्रेम का प्रवाह और प्रपोजल हो रहा है। उसकी बात करते हुए कवि लिखते हैं कि प्रेम का एक ऐसा रूप था जब कागजों पर चिठ्ठी में लिख कर दिया जाता था, उसका एक अलग ही महत्व होता था। आज जब व्हाट्सएप पर प्रपोज किया जाता है या बात किया जाता है तो वह बात नहीं होती जो प्रेम पत्र में होती थीं इन दोनों के बीच के अंतर को बहुत ही सरल शब्दों में बताया गया है। प्रेम दर्शन की अभिव्यक्ति है।
कवि अपने कविता 'गांव रहने दो' में गांव के खूबसूरती को लिखते हैं । वह बताते हैं कि कैसे गांवो में कोयलों की मधुर ध्वनि और गायों के आवाजों में ग्रामीणों की सुबह होती है। अक्सर कहा जाता है कि भारत गांवो में बसता है उसी बात का जिक्र करते हुए कवि लिखते है कि हमें भारत के गांवो में बसने पर गर्व है क्योंकि विश्वपटल पर भारत गांवो की खूबसूरती के लिए ही जाना जाता है।
कविता 'आंसू' में कवि कहते हैं कि देखा गया है कि हम अक्सर गिरते हुए आंसुओं के पीछे के दर्द को नहीं पहचान पाते है और न ही महसूस कर पाते है। हम भले ही उनकी पीड़ाओं पर कविता लिख देते है लेकिन क्या कभी उस पीड़ा की पराकाष्ठा को पहचान पाते है? इंसान की पीड़ा को जो आंसुओं के रास्ते प्रवाहित होती है, उसे इस कविता में सुंदर शब्दों में पिरोया गया है।
'प्रेम समर्पण है' शीर्षक कविता में प्रेम को समझाते हुए लिखते है कि प्रेम बंधन नहीं है बल्कि समर्पण है और अक्सर प्रेम बंधनो से मुक्त होना चाहता है। प्रेम अपना अस्तित्व तलाशने का प्रयास करता है । आज के दौर में प्रेम को हवस समझ लिया जाता है और प्रेम के वास्तविक रूप को गौण कर दिया गया है।
एक कविता 'आत्महत्या' में इंसान के जीवन के अंत करने की परिस्थितियों को कवि ने बड़े ही मार्मिक शब्दों में लिखा है। वह कहते हैं कि वह परिस्थिति कैसी रही होगी जब पहली बार किसी व्यक्ति ने अपने जीवन को खुद से खत्म किया होगा? उन्होंने सभी परिस्थितियों को बखूबी लिखा है। आज आधुनिक दौर में जब आत्महत्या के केसों में लगातार वृद्धि हो रही है, उस समय इस कविता की महत्ता बढ़ जाती है। कवि आगे लिखते हैं कि आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं होता है बल्कि यह किसी इंसान की कायरता को दिखाता है।
आज हर तरफ द्वन्द्व है, घुटन में जी रहा है आदमी, गुमराह होकर अविश्वास को विश्वास मानकर संवेदनहीन होता जा रहा है। स्वयं को असहाय मान कर मृगतृष्णा में जमा हो गया है। डॉ. मनावत की कविताओं में यही पीड़ा अभिव्यक्त हुई है। इस काव्य संग्रह की कविताएं परिवेश से सीधा संवाद करती हैं शब्दों से अनेकानेक प्रश्न करती हैं। प्रकृति से खिलवाड़ करने वालों को फटकारती हैं। नारी शक्ति को मजबूत स्वर में तोलती हैं। प्रेम को कागज़ पर उकेरती हैं और टोकती हैं संस्कारविहीन सोशल मीडिया को।
इन पुस्तक में लगभग अस्सी कविता है और हर कविता अपने आप में हर मुद्दों के रेखांकित करता हुआ दिखता प्रतीत हो रहा है। सभी कविताएँ लोगों के दिलों की आवाज मालूम पड़ती है, इसलिए यह पुस्तक पाठकों को अपनी ओर खींच लाती है। यह पुस्तक सभी के दिलों पर राज करते हुए दिख रही है। सभी कविताएं आपको किसी न किसी उद्देश्य को लेकर आतुर रहेंगी। पूरा विश्वास है डॉ. मनावत की कविताएं आपके लिए उद्देश्यपरक होंगी।


