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हिन्दी का अमृत महोत्सव कब?

आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और इस अमृत महोत्सव के माध्यम से अपने देश की स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष करने वाले जननायकों को याद कर रहे हैं

हिन्दी का अमृत महोत्सव कब?
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- डॉ रामेश्वर मिश्र

इस हिन्दी में दिलों को दिलों से जोड़ने का भाव है, हिन्दी जनमानस की बोली है, हिन्दी में भाषायी संकीर्णता को तोड़ने की शक्तिहै, हिन्दी में राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाने का कौशल है, राष्ट्र के माटी की सोंधी खुशबू है, स्वभाषा का गर्व है, स्वराज का आभास है। ऐसी हिन्दी का राजनैतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए क्षेत्रीय आधार पर विरोध करना एवं हिन्दी को राष्ट्रभाषा के अधिकार से अब तक वंचित रखना अन्यायपूर्ण है।

आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और इस अमृत महोत्सव के माध्यम से अपने देश की स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष करने वाले जननायकों को याद कर रहे हैं उनके याद में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन केन्द्र एवं राज्य सरकार मिल कर कर रहे हैं। इन सब कार्यों और आजादी की लड़ाई में एक महती भूमिका का निर्वहन करने वाली हिन्दी का अमृत महोत्सव कब मनाया जायेगा? यह प्रश्न विचारणीय है। हिन्दी को मजबूत करने और हिन्दी को उसका स्थान दिलाने के लिए संसदीय राजभाषा समिति की अध्यक्षता करते हुए माननीय गृह मंत्री अमित शाह जी ने देशवासियों से अपील की थी कि किसी बच्चे का उचित मानसिक विकास तभी सम्भव है जब वह मातृभाषा में पढ़ाई करता है। मातृभाषा से मतलब हिन्दी से नहीं है यह उस राज्य विशेष की भाषा है जैसे मेरे राज्य में गुजराती, फिर भी देश में एक भाषा होनी चाहिए, यदि कोई दूसरी भाषा सीखना चाहे तो वह हिन्दी होनी चाहिए। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि वक्त आ गया है कि राजभाषा हिन्दी को देश की एकता का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया जाय। इसके साथ ही साथ बताया कि हिन्दी की स्वीकार्यता स्थानीय भाषाओं के लिए नहीं बल्कि अंग्रेजी के विकल्प के रूप में होनी चाहिए। जब तक अन्य भाषाओं से शब्दों को लेकर हिन्दी को सर्वग्राही नहीं बनाया जायेगा तब तक इसका प्रचार प्रसार नहीं हो पायेगा। यह पहली बार है जब हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के साथ-साथ हिन्दी शब्दकोष को बढ़ाने के लिए अन्य भाषाओं के शब्दों को जोड़ने की अपील की गई है।

आजादी की लड़ाई में संचार के माध्यम के रूप में बापू ने हिन्दी को ही चुना, इसके लिए उन्होंने अपने देशवासियों को समय-समय पर हिन्दी की महत्ता बताई। बापू की हिन्दी सहज, सरल, स्नेहयुक्त और अपनेपन से प्रभावित थी। गांधीयुग और बापू द्वारा राजनैतिक सक्रिय भागीदारी से पहले भी बापू ने हिन्दी की प्रशंसा करते हुए 1906 में अपनी पत्रिका इंडियन ओपिनियन में इस प्रकार लिखा है कि 'हिन्दी', मीठी, नम्र, ओजस्वी भाषा है।

राष्ट्रभाषा की आवश्यकता का एहसास करते हुए बापू ने कहा था कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। भारतवर्ष के इस गूंगेपन को दूर के लिए भारत के अधिकतम राज्यों में बोली और समझी जाने वाली हिन्दी भाषा को उपयुक्त पाकर बापू ने उसे सम्पूर्ण भारत की राष्ट्रभाषा के रूप प्रतिष्ठित और स्थापित किया। बापू ने कहा था कि हिन्दी उस भाषा का नाम है जिसे हिन्दू और मुसलमान कुदरती तौर पर बगैर प्रयत्न के बोलते हैं। हिन्दुस्तानी और उर्दू में कोई फर्क नहीं है, देवनागरी में लिखे जाने पर वह हिन्दी और अरबी में लिखे जाने पर उर्दू कही जाती है। हमारी राष्ट्रभाषा में वे सब प्रकार के शब्द आने चाहिए जो जनता में प्रचलित हो।

हिन्दी के विकास तथा राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी के बहुसंख्यक द्वारा प्रयुक्त जुबान से बापू परिचित थे जिसके सन्दर्भ में 20 अक्टूबर 1917 को गुजरात के द्वितीय शिक्षा सम्मेलन में अपने भाषण में राष्ट्रभाषा के कुछ विशेष लक्षण बताए थे जिसके अनुसार वह भाषा सरकारी नौकरों के लिए आसान होनी चाहिए, उस भाषा के माध्यम से भारत का आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनैतिक एकीकरण होना चाहिए, उस भाषा को भारत के ज्यादातर लोग बोलते हों तथा वह भाषा राष्ट्र के लिए आसान होनी चाहिए। उस भाषा का विचार करते समय क्षणिक एवं स्थायी स्थिति पर जोर न दिया जाय। उक्त लक्षणों को बताने के बाद बापू ने कहा कि सौभाग्य से हिन्दी भाषा में ये सारे लक्षण मौजूद हैं।

हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा हो, यह बात बोली तो बहुत दिनों से जा रही थी किन्तु अब तक किसी नेता ने इस विचार को धरातल पर परिणित करने का प्रयास नहीं किया, आज यह हिन्दी भाषा की आवश्यकता का ही फल है कि लोग इस भाषा से जुड़ने लगे हैं और हिन्दी भाषा को सीखने के लिए लोग अमीरी-गरीबी, पढ़े-अनपढ़, युवा-बूढ़े का अन्तर भूलकर एक स्थान पर हिन्दी सीखने के लिए बैठने लगे हैं और सब हिन्दी सीखना और सिखाना अपना पुनीत कार्य समझ रहे हैं।

10 जनवरी को जब पूरे विश्व में 'हिन्दी दिवस' मनाया गया, जिसकी शुरुआत 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी। उस विश्व हिन्दी सम्मेलन में भारत के साथ मारीशस, यूनाइटेड किंगडम, त्रिनिदाद, टोबैगो एवं संयुक्त राज अमेरिका ने हिस्सा लिया था। तब से 10 जनवरी को भारत में विश्व हिन्दी दिवस सुचारू रूप से मनाया जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप आज विश्व के 175 विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा पढ़ाई जा रही है, विश्व के 91 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पीठ की स्थापना की गई है। आज पूरे विश्व में 80 करोड़ से ज्यादा लोगों के द्वारा हिन्दी बोली जाती है, अमेरिका में हिन्दी बोलने वालों की संख्या 6 लाख अड़तालीस हजार है, मारीशस में 7 लाख, अफ्रीकी देशों में लगभग 9 लाख, साथ ही नेपाल में 8 लाख लोगों द्वारा हिन्दी बोली जाती है। भारत के अतिरिक्त फिजी की राजभाषा हिन्दी है, यूनेस्को की 7 भाषाओं में हिन्दी सम्मिलित है। आज विश्व के 80 करोड़ लोगों के द्वारा हिन्दी को संयुक्त राष्ट्रसंघ की आधिकारिक भाषा बनाने पर जोर दिया जा रहा है, परन्तु भारत में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का सम्मान कब मिलेगा, यह प्रश्न विचारणीय है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा का सम्मान मिल सके इसलिए दक्षिण-उत्तर, पूरब-पश्चिम सबको अपने निहित क्षेत्रवाद, भाषावाद से ऊपर उठकर हिन्दी को विश्व में गौरव दिलाना ही हम सब भारतवंशियों का कर्तव्य है। आज हम विश्व हिन्दी दिवस पर यह संकल्प ले कि राष्ट्रभाषा हिन्दी के लिए अपना अधिक से अधिक कार्य हिन्दी भाषा के माध्यम से करेंगे, यही हिन्दी का अमृत महोत्सव होगा।

इस हिन्दी में दिलों को दिलों से जोड़ने का भाव है, हिन्दी जनमानस की बोली है, हिन्दी में भाषायी संकीर्णता को तोड़ने की शक्तिहै, हिन्दी में राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाने का कौशल है, राष्ट्र के माटी की सोंधी खुशबू है, स्वभाषा का गर्व है, स्वराज का आभास है। ऐसी हिन्दी का राजनैतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए क्षेत्रीय आधार पर विरोध करना एवं हिन्दी को राष्ट्रभाषा के अधिकार से अब तक वंचित रखना अन्यायपूर्ण है।


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