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लोकतंत्र में श्राप का क्या काम?

भोपाल से भारतीय जनता पार्टी की लोकसभा सदस्य प्रज्ञा ठाकुर, फिर से श्राप देती नज़र आ रही हैं

लोकतंत्र में श्राप का क्या काम?
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भोपाल से भारतीय जनता पार्टी की लोकसभा सदस्य प्रज्ञा ठाकुर, फिर से श्राप देती नज़र आ रही हैं। इस बार वे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के पुत्र उदयनिधि पर बरस पड़ी हैं जिन्होंने हाल ही में सनातन धर्म को मलेरिया और कोरोना के वायरस जैसा बतलाते हुए कहा था कि ये जितनी जल्दी नष्ट हो जायें उतना ही अच्छा। मंगलवार को भोपाल की भेल (बीएचईएल) कंपनी के गेट पर वेतन वृद्धि की मांग पर कर रहे ठेका श्रमिकों का अनशन खत्म करवाने पहुंची थीं। अपने भाषण में उन्होंने जूनियर स्टालिन के बयान को अभद्र तो बताया ही, कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा मटन बनाये जाने पर उन्हें विधर्मी भी करार दिया। प्रज्ञा ने कहा कि, 'ये लोग (राहुल) कुछ भी कर सकते हैं- जनेऊ व तिलक लगा लेते हैं तो क्रॉस भी पहन सकते हैं। उनका गुस्सा यहीं तक नहीं ठहरा।' उन्होंने कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला को कहा कि 'वे कहां के तोपचंद हैं जो किसी को श्राप देंगे?' सुरजेवाला ने भाजपा के मतदाताओं को 'राक्षसी प्रवृत्ति का' बतलाया था। उदयनिधि के बयान के बाद द्रविड़ मुनेत्र कषगम के नेता ए राजा ने सनातन को कुष्ठ रोग व एड्स जैसा बतला दिया। एक्टर प्रकाश राज ने भी सनातन धर्म की तुलना डेंगू से कर दी थी।

इन सभी को एकमुश्त श्राप देते हुए प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि 'प्रकाश राज नायक नहीं, खलनायक हैं।' उनका कहना था कि 'जिसे यह नहीं पता कि वह कहां रहता है और किसके खिलाफ बोल रहा है, वह खलनाक ही हो सकता है।' आगे उन्होंने यह भी कहा कि 'जिसने सनातन धर्म को जैसा कहा, वह वैसा ही भोगे। जिसने इस धर्म को डेंगू कहा उसे डेंगू मिले, जिसने मलेरिया कहा उसे वही मिले और जिसने उसे कुष्ठ रोग कहा उसे भी वही प्राप्त हो।' उन्होंने इन सभी बयान देने वालों को उनके द्वारा उल्लेखित बीमारियां भरपूर मिलने की बात कही।

प्रज्ञा ठाकुर द्वारा इस प्रकार किसी को श्राप देने का मामला पहला नहीं है। मालेगांव बम विस्फोट कांड की आरोपी प्रज्ञा ने महाराष्ट्र पुलिस के विशेष जांच दल प्रमुख हेमन्त करकरे के बारे में 2019 में बयान दिया था कि उनकी (करकरे) मौत इसलिये हुई थी क्योंकि उन्होंने करकरे को श्राप दिया था। साध्वी के अनुसार पुलिस कस्टडी में जांच के दौरान करकरे ने उन्हें प्रताड़ित किया था। वे कहती हैं- 'मैंने करकरे को कहा था कि तेरा सर्वनाश होगा। मेरे श्राप के कुछ ही दिनों के बाद 2008 में करकरे आतंकवादियों के हाथों मुंबई हमले के दौरान मारे गये थे।' वैसे जब इस पर हंगामा हुआ तो उसका देश भर में विरोध हुआ था। अनेक वरिष्ठ सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी। इसके दबाव में उन्होंने अपना बयान यह कहकर वापस ले लिया कि 'इससे देश के दुश्मनों को फायदा हो रहा है इसलिये वे इसे वापस लेती हैं तथा माफी मांगती हैं।' उन्होंने करकरे को इसलिये 'शहीद' बतलाया कि 'आखिरकार उनकी हत्या तो आतंकवादियों द्वारा ही की गई है।' उन्होंने अपने बयान को 'खुद का दर्द' बतलाया। प्रज्ञा को मालेगांव विस्फोट के सिलसिले में गिरफ्तार किया था जिसमें 6 लोग मारे गये थे और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

जिस मोटर साइकल के जरिये यह विस्फोट हुआ था वह उन्हीं के नाम पर पंजीकृत थी इसलिये उन्हें भी गिरफ्तार किया गया था। 9 साल तक जेल में बिताने के बाद उन्हें स्वास्थ्यगत कारणों से जमानत दी गई थी। उन्होंने तब भाजपा की सदस्यता ले ली और 2019 में उन्हें भोपाल से लोकसभा का टिकट मिला था। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को हराया था क्योंकि मामला हिंदुत्व के नैरेटिव पर लड़ा गया था। उस चुनाव के दौरान बझ़फ़ीड न्यूज़ में उन पर लेख प्रकाशित हुआ था जिसका शीर्षक था- 'दी मोस्ट टॉक्सिक केंडिडेट इन दी वर्ल्ड्स बिगेस्ट इलेक्शन इज़ ए होली वूमेन हू वांट्स टू स्टार्ट ए रिलीजस वॉर विद मुस्लिम' (दुनिया के सबसे बड़े चुनाव का सर्वाधिक ज़हरीला प्रत्याशी एक पवित्र महिला है जो मुस्लिमों के खिलाफ जंग छेड़ना चाहती है)। इसके पीछे कारण यह था कि प्रज्ञा ने महात्मा गांधी के हत्यारे को 'देशभक्त' बताया था। इसका भी उल्लेख लेख में हुआ है। हालांकि इस पर शीर्ष नेतृत्व ने उनसे नाराज़गी जताई थी। 18 साल की उम्र में संन्यास धारण करने वाली प्रज्ञा ठाकुर को 38 वर्ष की उम्र में मालेगांव कांड में गिरफ्तार किया गया था। 46 साल की होने पर उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने टिकट दिया था।

प्रज्ञा ठाकुर का विवादों से स्थायी नाता रहा है। उन्होंने इसी साल फरवरी में वक्फ़ बोर्डों पर सवाल उठाया था कि 'जब मुस्लिमों का वक्फ़ बोर्ड बन सकता है तो सनातन बोर्ड क्यों नहीं बन सकता?' उन्होंने कहा था कि 'हिन्दू धर्म कानून पर चलता है लेकिन विडंबना है कि हिंदू मंदिरों के ट्रस्ट सरकार के हाथों में हैं। इन्हें मुक्त होना चाहिये और हिंदुओं का हिंदुओं के काम आना चाहिये। इनके धन का इस्तेमाल सनातन के विकास में होना चाहिये। इसके लिये सनातन बोर्ड बनना चाहिये जिससे हमारे मठ-मंदिर स्वतंत्र होंगे और इनमें भव्यता आयेगी।' उन्होंने वक्फ़ बोर्डों पर आरोप लगाया कि 'वे ज़मीनें रख लेते हैं। जिन ज़मीनों को वे अपना बताते हैं जांच करने पर पता चलता है कि वे उनकी हैं ही नहीं।' प्रज्ञा का आरोप था कि 'वक्फ़ बोर्डों की आड़ में माफ़िया पनप रहे हैं।' धर्म को जब राजनीति से मिलाया जाएगा तो कुछ ऐसा ही विमर्श तैयार होगा जिसमें नफ़रत और हिंसा का प्राधान्य होगा; और फिर लोकतंत्र कोई पौराणिक आख्यान तो है नहीं जिसमें वरदान या श्राप की कोई भूमिका हो।


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