क्या है पेड़ों का संदेश?
पेड़, हमें जीवन भर कुछ न कुछ देते रहते हैं। फल, फूल, पत्ते, हवा, छाया इत्यादि। अगर हमारे घर के आसपास पेड़ हैं, तो वो हमें सुकून व शांति देते हैं

- बाबा मायाराम
पेड़ों का महत्व सर्वविदित है। उनका स्वभाव देने का है। फल, फूल, पत्तियां, छाया तो देते ही हैं। मशहूर लेखक शेल सिल्वरस्टाइन की किताब गिविंग ट्री है, जिसकी हिन्दी में प्रस्तुति अरविंद गुप्ता ने की है। यह पुस्तिका बहुत ही प्रेरणादायक है। इसमें पेड़ जीवन भर क्या देता है, इसकी कहानी है। पेड़ औषधियों के काम आते हैं। नीम इनमें से एक है। नीम बहुत ही उपयोगी पेड़ है।
पेड़, हमें जीवन भर कुछ न कुछ देते रहते हैं। फल, फूल, पत्ते, हवा, छाया इत्यादि। अगर हमारे घर के आसपास पेड़ हैं, तो वो हमें सुकून व शांति देते हैं। विशेषकर, जब हम तनाव में होते हैं, परेशान होते हैं, तब पेड़ों की ओर जाते हैं, वे हमें राहत देते हैं। आज मैं इस कॉलम में पेड़ों के बारे में बात करना चाहूंगा, जिससे पेड़ और पर्यावरण को समग्रता में समझा जा सके।
बचपन से ही मेरा पेड़ों के साथ करीबी का नाता रहा है। घर के आसपास मधुकामिनी, इमली, नीम बेर, बील, करंज के पेड़ थे। पक्षियों के चहचहाने से ही सुबह की शुरूआत होती थी। दिन भर ठंडी हवा बहती रहती थी। गर्मी के दिनों में मधुकामिनी के फू लों की मीठी खुशबू हर तरफ होती थी। नीम के पत्ते हिलते रहते थे। इनकी शाखाओं पर पक्षी झूला झूलते थे और गाना गाते रहते थे।
पिछले कुछ सालों से मुझे देशभर में घूमने का मौका मिला है, जहां भी जाता हूं, पेड़, पहाड़, नदियां अपनी ओर खींचती ही हैं। मैं ऐसे लोगों व समुदायों से भी मिला हूं, जिन्होंने पेड़ लगाने व बचाने का काम किया है।
हमारे जिले नर्मदापुरम(मध्य्प्रदेश) में ही काकड़ी नामक गांव, जो कुछ साल पहले ही नया बसा है, विस्थापित आदिवासी गांव है, उसे वहां के लोगों ने हरा-भरा कर लिया है। यहां जो पेड़ लगाए गए हैं, उनमें आम, अमरूद, नींबू, कटहल, जामुन, छीताफल, आंवला, पपीता, मुनगा, महुआ इत्यादि पेड़ शामिल हैं। बांस, सागौन और केवलार भी हैं। सभी लोग पौधों की देखरेख करते हैं। उनमें पानी व गोबर खाद देते हैं और जरूरत पड़ने पर गुड़ाई करते हैं। यह सब गांव की एकता से ही संभव हुआ है।
उत्तराखंड में सामाजिक कार्यकर्ता विजय जड़धारी, जो चिपको आंदोलन से भी जुड़े रहे हैं, उन्होंने उनके गांव जड़धार में उजड़े जंगल को घने जंगल में बदल दिया है। इस काम में उन्हें गांव को पूरा सहयोग मिला है। इससे वहां के सूख चुके जलस्रोत भी फिर से पानीदार हो गए हैं। यह टिहरी-गढ़वाल जिले में है। उनके गांव में गया हूं, उनके साथ इस जंगल में घूमा हूं।
विजय जड़धारी बताते हैं कि टिहरी-गढ़वाल की चंबा-मसूरी पट्टी में पहले अच्छा और सुंदर जंगल था। इस गांव में भी था। पहाड़ के ढलानों से हरियाली की चादर हटने से बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बना रहता था। यहां के कई सदाबहार जलस्रोत सूख गए थे, तब गांववाले चिंतित हो उठे। इक_े होकर सोचने लगे, और वनों के जतन में जुट गए।
वे आगे बताते हैं कि जड़धार गांव के लोगों ने मिलकर तय किया कि जंगल को बचाया जाए। इसके लिए एक वन सुरक्षा समिति बनाई गई। जंगल से किसी भी तरह के हरे पेड़, ठूंठ, यहां तक कि कंटीली हरी झाड़ियों को काटने पर रोक लगाई गई। कोई भी व्यक्ति यदि अवैध रूप से हरी टहनी या झाड़ी काटता है तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा, ऐसा तय किया गया।
कुछ समय के लिए पशु चरने पर भी रोक लगाई गई। कोई व्यक्ति वनों को किसी प्रकार नुकसान न पहुंचाए, यह सुनिश्चित किया गया। यह काम गांव की जरूरतों को ध्यान में रखकर किया गया जिसमें जरूरत पड़ने पर थोड़ा बहुत फेरबदल किया जा सके। जंगल की रखवाली के लिए वन सुरक्षा समिति ने दो वनसेवक नियुक्त किए, जिन्हें गांववाले पैसे एकत्र कर कुछ आंशिक मानदेय देने लगे। जो पैसा जुर्माने से एकत्र होता उसे वनसेवकों को मानदेय के रूप में दे दिया जाता। हालांकि मानदेय की राशि कम थी, फिर भी वनसेवकों ने यह काम अपना समझकर किया।
इससे सूखे पानी के जलस्रोत फिर फूट पड़े, सदानीरा हो गए। ये सदाबहार जलस्रोतों से ही साल भर गांवों को पीने का पानी मिलता है। चौड़ी पत्ती के जंगल बारिश के पानी का स्पंज हैं। वे पानी को सोखकर रखते हैं। जहां ऐसे जंगल होते हैं वहां जलस्रोत सदानीरा होते हैं। पानी छन छन, कल कल बहता रहता है। इसके अलावा, कई वन्य प्राणियों ने भी इस जंगल को अपना आशियाना बना लिया है। भालू, सेही, बघेरा, तेंदुआ, बारहसिंघा, हिरण, जंगली सुअर, बंदर आदि यहां प्राय: दिखते हैं। हिरणों की टोलियां बिचरती रहती हैं।अब इस जंगल को देखने व समझने के लिए काफी लोग आते हैं। इसमें बड़ी संख्या में पक्षी भी हैं।
इन दिनों वृक्ष खेती का भी प्रचलन बढ़ रहा है। कुछ समय पहले मैं महाराष्ट्र के अमरावती जिले के रवाला गांव गया था। वहां गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता बसंत फुटाणे ने वृक्ष खेती का काफी अच्छा प्रयोग किया है। उनके खेत में संतरा के 500 पेड़ हैं। इसके अलावा, आंवला, रीठा, बेर, भिलावा, महुआ, दक्खन इमली, इमली, तेंदू, अगस्त, अमलतास, मुनगा, कचनार, चीकू, अमरूद, जामुन,सीताफल, करौंदा, पपीता, बेल, कैथ, इमली, रोहन, नींबू, नीम इत्यादि के फलदार व छायादार पेड़ हैं। वृक्ष खेती के तो और भी कई प्रयोग हैं।
पेड़ों का महत्व सर्वविदित है। उनका स्वभाव देने का है। फल, फूल, पत्तियां, छाया तो देते ही हैं। मशहूर लेखक शेल सिल्वरस्टाइन की किताब गिविंग ट्री है, जिसकी हिन्दी में प्रस्तुति अरविंद गुप्ता ने की है। यह पुस्तिका बहुत ही प्रेरणादायक है। इसमें पेड़ जीवन भर क्या देता है, इसकी कहानी है।
पेड़ औषधियों के काम आते हैं। नीम इनमें से एक है। नीम बहुत ही उपयोगी पेड़ है। गांवों में चोट लगने पर इसका लेप लगाया जाता है। नीम की दातौन तो करते ही हैं। बीमारियों से बचने के लिए भी इसकी पत्तियों को चबाया जाता है। मेरे पिताजी प्राय: इसकी कोमल पत्तियों को चबाया करते थे, कहते थे इससे बीमारियों से बचाव होता है।
इसकी पत्तियों को अनाज के साथ मिलाकर रखा जाता था,माना जाता है कि इससे कीटों से बचाव होता है। पक्षी भी इसकी निबौलियों को चाव से खाते हैं। इसी प्रकार, आम तो फल देता ही है, बहुत घनी छाया भी देता है। बबूल भी काफी उपयोगी है। इसकी पत्तियां बकरियां खाती हैं।
पेड़ों के आसपास की मिट्टी में कई तरह के जंतु होते हैं। कीड़े-मकोड़ों का भी वास होता है। इन पेड़ों के आसपास कुकुरमुत्ते (मशरूम) भी उगते हैं। इनमें से कई बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। ये कई आकारों व रंग के होते हैं। इन सबका आश्रयस्थल पेड़ों के आसपास ही होता है।
बच्चों का पेड़ों के साथ खास रिश्ता होता है। जब पेड़ों में फल-फूल होते हैं, तो वे उनके आसपास मंडराते रहते हैं। वे फल तो खाते ही हैं, उन पर चढ़कर खेल खेलते हैं। उनकी शाखाओं से झूला झूलते हैं। टहनियों व पत्तों से खिलौना बनाते हैं। घर बनाते हैं। बच्चों के साथ उनकी स्मृतियां सदैव रहती हैं।
यह कहा जा सकता है कि पेड़ों का एक संदेश है, जो उनकी यात्रा में छिपा है। उनके बीज, पौधे, तने, फल, फूल में छिपा है। वह उसका जीवन बिना विचलित हुए जीता है। सभी झंझावातों से जूझते हुए जीता है। जब हम दुखी होते हैं तो सहारा देता है।
कुल मिलाकर, पेड़ों से साफ हवा मिलती है, फल, फूल और पत्ते मिलते हैं और हरियाली होती है। जलवायु बदलाव के दौर में पेड़ों व हरियाली से वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैस सोखने की क्षमता बढ़ती है। यह जलवायु बदलाव कम करने का तरीका है। जैविक खेती में ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन है ही नहीं, दूसरी ओर मिट्टी बेहतर होती है। अनुकूलन व शमन का पक्ष भी है। जलवायु बदलाव के दौर में अधिक विकट व अचानक बदलाव वाले मौसम का सामना करने की क्षमता इसमें होती है। यानी पेड़ लगाना, जल संरक्षण, हरियाली बढ़ाने और नए फलदार पेड़ लगाने का काम बहुत महत्वपूर्ण व उपयोगी है।
लेकिन यह भी देखने में आया है कि अब पेड़ कम हो रहे हैं। उनकी कटाई हो रही है। इसलिए अब जरूरी हो गया है कि पेड़ों को लगाया जाए। क्या हम इस दिशा में आगे बढ़ना चाहेंगे?


