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क्या मायने हैं पीएफआई पर बैन के

कई दिनों से पीएफआई से जुड़े ठिकानों पर छापों के बाद केंद्र सरकार ने पीएफआई और उसके कई सहयोगी संगठनों पर बैन लगा दिया है.

क्या मायने हैं पीएफआई पर बैन के
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केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा छापे गए एक असाधारण राजपत्र के अनुसार प्रतिबंध सिर्फ पीएफआई ही नहीं बल्कि उसके सभी सहयोगी संगठनों पर भी लागू होगा. इनमें रीहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, नैशनल कन्फेडरशन ऑफ ह्यूमन राइट्स आर्गेनाईजेशन, नेशनल विमेंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एमपावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल शामिल हैं. बैन पांच साल के लिए रहेगा.

प्रतिबंध यूएपीए की धारा तीन की उप-धारा एक के तहत लगाया गया है. मंत्रालय के अनुसार पीएफआई और उसके सहयोगी संगठन गैर-कानूनी गतिविधियों में संलिप्त रहे हैं, जो "देश की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के प्रतिकूल हैं और जिससे शांति तथा सांप्रदायिक सदभाव का माहौल खराब होने और देश में उग्रवाद को प्रोत्साहन मिलने की आशंका" है.

राजपत्र में कहा गया है कि पीएफआई और उसके सहयोगी संगठन "सार्वजनिक तौर पर एक सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक संगठन के रूप में कार्य करते हैं लेकिन वो गुप्त एजेंडा के तहत समाज के एक वर्ग विशेष को कट्टर बनाकर लोकतंत्र की अवधारणा को कमजोर करने की दिशा में कार्य करते हैं."

यह भी कहा गया है कि पीएफआई के कुछ संस्थापक सदस्य सिमी के नेता रहे हैं और इसके अलावा पीएफआई का संबंध जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश से भी रहा है. ये दोनों संगठन प्रतिबंधित संगठन हैं. सरकार का मानना है कि पीएफआई के आईसिस जैसे वैश्विक आतंकवाद समूहों के साथ "संपर्क के कई उदाहरण हैं."

केंद्र सरकार के इस कदम के बाद अब देश भर में पुलिस और अन्य कानूनी एजेंसियों को पीएफआई और इन संगठनों के सदस्यों को गिरफ्तार करने का, संगठनों के बैंक खातों को फ्रीज कर देने का और संपत्ति जब्त करने का अधिकार मिल गया है. अब से इन संगठनों की सदस्यता लेना भी एक अपराध माना जाएगा, जिसके तहत अलग अलग हालात में दो साल जेल, या आजीवन कारावास, यहां तक की मृत्युदंड का भी प्रावधान है.

सिर्फ सदस्यता ही नहीं बल्कि इन संगठनों से किसी भी तरह के संबंध पाए जाने पर भी दो साल जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है. इन संगठनों की वित्तीय रूप से किसी भी तरह की मदद करने को भी अब अपराध माना जाएगा.

पीएफआई के राजनीतिक संगठन माने जाने वाले एसडीपीआई पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. एसडीपीआई के 2009 में एक राजनीतिक दल के रूप में स्थापना हुई थी और उसके बाद इस दल ने कई राज्यों में स्थानीय निकायों से लेकर लोक सभा तक के लिए चुनावों में हिस्सा लिया है. केरल में तो 2020 में एसडीपीआई ने स्थानीय निकाय चुनावों में करीब 100 सीटें जीत ली थीं.


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