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क्या है अंतरराष्ट्रीय सागर समझौता, जिसमें बीस साल लगे

इतिहास में पहली बार दुनिया के अधिकतर देश इस बात पर सहमत हो गए हैं कि महासागरों के अंतरराष्ट्रीय जल में जैव विविधता को बचाए जाने की जरूरत है. इस समझौते के लिए दस साल से मोलभाव हो रहा था.

क्या है अंतरराष्ट्रीय सागर समझौता, जिसमें बीस साल लगे
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संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सागर समझौते पर सहमति बन गई है. इस ऐतिहासिक समझौते से उन इलाकों में महासागरीय जैव विविधता के संरक्षण में कानूनों की गैरमौजूदगी के कारण चली आ रही बाधाओं को हटाने में मदद मिलने की उम्मीद है, जो किसी देश की सीमा में नहीं आते.

न्यूयॉर्क में दो हफ्ते तक चली बातचीत के बाद समझौते पर सहमति का ऐलान हुआ है. इससे पहले 1994 में महासागर कानून संधि हुई थी जिसके तहत जैव विविधता की परिभाषा को स्पष्टता मिली थी.

अंतरराष्ट्रीय सागर समझौता उस इलाके में जैव विविधता की देखभाल पर केंद्रित है जो किसी देश की जलीय सीमा से बाहर होता है. अंग्रेजी में हाई सीज़ के नाम से जाने वाले इस इलाके को कानून के तहत लाने पर चर्चा बीस साल से चल रही थी. लेकिन इन चर्चाओं की राह में हमेशा असहमतियों के रोड़े अटकते रहे.

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आखिरकार यूएन सदस्य देश एक समझौते पर सहमत हुए जो धरती के करीब आधे हिस्से पर लागू होगा. जॉर्जटाउन में रहने वाली जीवविज्ञानी रेबेका हेल्म ने कहा, "विश्व में असल में दो ही चीजें हैं जो सबकी साझी हैं – वातावरणऔर महासागर. महासागरों की ओर यूं तो कम ध्यान जाता है जबकि वे हमारे ग्रह का आधे से ज्यादा हिस्सा हैं और ग्रह की सेहत के लिए उनकी सुरक्षा महत्वपूर्ण है.”

ऐतिहासिक मौका

अमेरिका स्थित प्यू चैरिटेबल ट्रस्ट के निकोला क्लार्क न्यूयॉर्क में हो रही बातचीत पर लगातार नजर बनाए हुए थे. महासागर विशेषज्ञ क्लार्क कहते हैं कि इस संधि का बहुत लंबे समय से इंतजार था और यह "पीढ़ी में एक बार मिलने वाला मौका है, जो जैवविविधता के लिए एक बड़ी जीत है.”

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इस संधि के तहत एक नई संस्था बनाई जाएगी जो महासागरीय जीवन के संरक्षण का प्रबंधन करेगी और अंतरराष्ट्रीय जल में संरक्षित क्षेत्रों की पहचान कर उन्हें स्थापित करेगी. क्लार्क कहते हैं कि यूएन बायोडाइर्सिटी कॉन्फ्रेंस में पृथ्वी के 30 प्रतिशत जल और थल के संरक्षण का लक्ष्य हासिल करना बेहद महत्वपूर्ण है.

जर्मनी की पर्यावरण मंत्री स्टेफी लेमके ने कहा कि यह ऐतिहासिक समझौता अंतरराष्ट्रीय जलीय जीवन की सुरक्षा की दिशा में एक अहम सफलता है. उन्होंने कहा, "पहली बार अंतरराष्ट्रीय सागरों के लिए हमने एक बाध्यकारी समझौता किया है जिन्हें अब तक बहुत कम सुरक्षा हासिल थी. पृथ्वी के 40 प्रतिशत से ज्यादा हिस्से में अब लुप्तप्राय प्रजातियों और उनके प्राकृतिक आवासों की पूर्ण सुरक्षा आखिरकार संभव हो गई है.”

समुद्री गतिविधियों की निगरानी

इस संधि के तहत महासागरों पर व्यापारिक गतिविधियों के प्रभाव का आकलन करने के लिए नियम तय किए गए हैं. वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर नामक संगठन क साथ काम करने वाली महासागरीय प्रबंधन विशेष जेसिका बैटल कहती हैं, "इसका अर्थ है कि अंतरराष्ट्रीय जल में जो भी गतिविधियां होंगी उनका आकलन होगा. बिना पूर्ण आकलन के कोई गतिविधि नहीं हो सकेगी.”

डॉल्फिन, व्हेल और समुद्री कछुओं जैसे कई जलीय जीव सालाना एक जगह से दूसरी जगह की यात्रा करते हैं और राष्ट्रीय सीमाओं को पार करते हुए अंतरराष्ट्रीय समुद्र से गुजरते हैं. उन जीवों की सुरक्षा और समुद्री जीवन पर निर्भर इंसानी समूहों की सुरक्षा अब तक अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है क्योंकि कोई नियम कायदे उपलब्ध नहीं थे. बैटल कहती हैं, "यह समझौता कई क्षेत्रीय संधियों को आपस में जोड़ने में सहायक होगा ताकि विभिन्न प्रजातियों के सामने मौजूद खतरों से निपटा जा सके.”

गैर-लाभकारी संस्था इंटरअमेरिकन एसोसिएशन फॉर इनवायर्नमेंटल डिफेंस की कार्यकारी निदेशक ग्लैडिस मार्टिनेज कहती हैं कि यह सुरक्षा समुद्री तट के निकट की जैव-विविधता और अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी मददगार साबित होगी. उन्होंने कहा, "सरकारों ने दुनिया के दो तिहाई महासागरों की कानूनी सुरक्षा और उनके साथ जलीय जैव विविधता व तटीय समुदायों की आजीविकाओं को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया है.”

अब सवाल यह है कि इस संधि का लागू कैसे किया जाएगा. इसका औपचारिक अनुमोदन भी अभी बाकी है, जिस पर कई पर्यावरणीय समूहों की निगाह होगी.


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