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अयोग्यता का पैमाना क्या है

वायनाड से सांसद रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ट्विटर में अपने परिचय में डिस्क्वालिफाईड एमपी यानी अयोग्य सांसद लिख दिया है

अयोग्यता का पैमाना क्या है
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वायनाड से सांसद रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ट्विटर में अपने परिचय में डिस्क्वालिफाईड एमपी यानी अयोग्य सांसद लिख दिया है। 23 मार्च को सूरत के सत्र न्यायालय ने राहुल गांधी को 2019 में दिए गए एक भाषण में आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई और 24 मार्च को जनप्रतिनिधि कानून के तहत लोकसभा से राहुल गांधी की सदस्यता रद्द कर दी गई। अमूमन धारणा यही है कि सरकारी कामकाज में थोड़ा वक्त लगता है। एक मेज से दूसरी मेज तक फाइल पहुंचती है, सारे नियमों की पड़ताल होती है और तब जाकर कोई आदेश पारित होता है। लेकिन राहुल गांधी को संसद से बाहर निकालने की सारी प्रक्रिया एक दिन के भीतर पूरी कर ली गई। 23 मार्च की दोपहर को दोषी ठहराए जाने के बाद 24 मार्च की दोपहर तक वे सांसद रहने के पात्र भी नहीं रहे।

कांग्रेस ने इस सारे घटनाक्रम को राजनैतिक बदला बताया, तो भाजपा ने अपने बचाव में फिर से कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा किया। सवाल किए जा रहे हैं कि क्या राहुल गांधी के लिए अलग नियम-कानून बनेंगे। जो कुछ हुआ, वह अदालत का फैसला है, और कांग्रेस इस पर सवाल उठा रही है। भाजपा का यह तर्क आधा सच है, जो झूठ से कहीं अधिक खतरनाक होता है। अदालत ने राहुल गांधी को दोषी ठहराया और सजा दी, यह सच है।

लेकिन यह भी सच है कि राहुल गांधी ने जिन लोगों का नाम अपने उस बयान में लिया था, जिस पर मोदी समाज की भावनाएं आहत करने, ओबीसी का अपमान करने का आरोप लगाया, उन लोगों में से किसी ने भी राहुल गांधी पर मामला दर्ज नहीं कराया। नीरव मोदी, ललित मोदी देश से बाहर हैं और नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, और इनमें से किसी ने श्री गांधी पर मानहानि का मामला दर्ज नहीं किया। यह मुकदमा किया पूर्णेश मोदी ने, जो भाजपा के विधायक और मंत्री रह चुके हैं। पूर्णेश मोदी ने भी पिछले साल इस मामले में गुजरात हाईकोर्ट से स्टे ले लिया था, लेकिन इस साल 16 फरवरी को फिर से इस मामले पर सुनवाई शुरु हुई।

संयोग ये है कि 7 फरवरी को राहुल गांधी ने संसद में अडानी-मोदी रिश्तों पर कड़ी टिप्पणी कर कुछ ऐसे सवाल किए थे, जिन पर जवाब देने में भाजपा को कठिनाई हुई। सूरत की अदालत में मामले की सुनवाई शुरु होते ही एक महीने के भीतर फैसला भी आ गया और इसमें जो अधिकतम सजा हो सकती है, उतनी यानी 2 साल की सजा राहुल गांधी को हुई। सब कुछ कानूनन हुआ, यह भाजपा की दलील है। भाजपा को इतिहास के उन पन्नों को भी पलटना चाहिए, जब इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में आपातकाल की घोषणा संवैधानिक प्रावधानों के तहत ही की गई थी, लेकिन भाजपा अब भी हर साल आपातकाल की बरसी मनाती है, इंदिरा गांधी पर लोकतंत्र को गिरवी रखने का आरोप लगाती है। अगर आपातकाल के फैसले को राजनैतिक नजरिए से देखा जा सकता है, तो राहुल गांधी के प्रकरण को क्यों नहीं देखा जा सकता, यह सवाल अब सियासी मंच पर आ चुका है।

राहुल गांधी ने संसद से निष्कासन के अगले दिन ही प्रेस कांफ्रेंस की। इसमें कोई अनूठी बात भी नहीं है, क्योंकि वे अपने राजनैतिक करियर में लगातार ही प्रेस कांफ्रेंस करते रहे हैं। पत्रकार उन्हें घेरने की कोशिश करें, उनका मजाक उड़ाएं, उन्हें जबरन फंसाने के लिए आड़े-तिरछे सवाल पूछें, राहुल गांधी ने इनमें से किसी भी बात को प्रेस कांफ्रेंस न करने का बहाना नहीं बनाया। वे हिंदी में सहज नहीं हैं, अंग्रेजी में हैं, फिर भी वे अक्सर दोनों भाषाओं में सवालों के जवाब देते हैं। बहरहाल, इस प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने फिर यही बात कही कि वे अडानी प्रकरण पर सवाल पूछना जारी रखेंगे, किसी कीमत पर पीछे नहीं हटेंगे। अपनी बातों और बयानों से राहुल गांधी बार-बार यह जतला चुके हैं कि वे किसी तरह के दबाव में नहीं आने वाले, किसी कार्रवाई, किसी फैसले से डरने नहीं वाले, अपने बोले की हर कीमत वे चुकाने तैयार हैं। भाजपा तक उनकी यह निडरता का संदेश शायद पहुंच चुका है, लेकिन उसे ग्रहण करने में कहीं कोई असुविधा हो रही है। इसलिए भाजपा अब भी राहुल गांधी को किसी न किसी तरह निशाने पर ले ही रही है। शनिवार को उनकी प्रेस कांफ्रेंस के बाद फिर से भाजपा की ओर से रविशंकर प्रसाद पत्रकारों के सामने उपस्थित हुए और फिर से राहुल गांधी को कोसने का सिलसिला चल निकला।

देश में इस वक्त अभूतपूर्व महंगाई का सामना जनता कर रही है, बेरोजगारी की समस्या का कोई हल नहीं दिख रहा, सड़कों और घरों, दोनों जगह लड़कियां असुरक्षित हैं, जाति-धर्म की खाई अनेकता में एकता वाले भारत में बढ़ती जा रही है, चीन से खतरा अपनी जगह बरकरार है, यानी छोटे-बड़े कई तरह के संकटों से देश गुजर रहा है और सत्ताधारी पार्टी होने के नाते इस वक्त भाजपा के पास इन मुद्दों को सुलझाने के अलावा जरा भी वक्त नहीं होना चाहिए कि वह विपक्षी पार्टी के एक सांसद पर उसे जाया कर सके। लेकिन आलम ये है कि संसद में कई जरूरी विधेयक बिना किसी चर्चा के पारित हो गए, बाकी समस्याओं पर कहीं कोई सार्थक चर्चा हो नहीं रही है। और राहुल गांधी पर बड़े से लेकर छुटभैये नेता तक सब बयानबाजी करने में लगे हैं।

राहुल गांधी ने तो अब खुद ही अपने आगे अयोग्य सांसद लिख दिया है। इससे शायद भाजपा तक यह संदेश पहुंचे कि एक अयोग्य सांसद पर अपनी ऊर्जा खर्च न करके सार्थक कामों की ओर ध्यान दे। पर सवाल ये कि अब राजनीति में योग्यता और अयोग्यता का पैमाना क्या होगा। क्या सत्ता सुख भोग रहे सारे सांसद योग्य हैं, जो देश की जनता को जीवन का उच्च स्तर उपलब्ध नहीं करा पा रहे। जो महंगाई, बेरोजगारी का हल नहीं ढूंढ सके। जो युवाओं, महिलाओं, छात्रों, दलितों, अल्पसंख्यकों, किसानों, मजदूरों की समस्याओं को सुलझा नहीं पा रहे हैं। कौन योग्य है, कौन अयोग्य, यह कैसे तय होगा।


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