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आखिर क्या है एलओसी अर्थात लाइन आफ कंट्रोल अर्थात नियंत्रण रेखा

एलओसी अर्थात नियंत्रण रेखा आज विश्व में सबसे अधिक खतरनाक मानी जाती

आखिर क्या है एलओसी अर्थात लाइन आफ कंट्रोल अर्थात नियंत्रण रेखा
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जम्मू :814 किमी लम्बी एलओसी अर्थात नियंत्रण रेखा आखिर है क्या? जो पिछले 72 सालों से न सिर्फ खबरों में है बल्कि जीवित जंग के मैदान के रूप में भी जानी जाती है। सचमुच यह कोई सीमा है या फिर जमीन पर खींची गई एक लकीर जो दो देशों को बांटती है। जी नहीं, नदी, नालों, गहरी खाईयों, हिमच्छादित पहाड़ों और घने जंगलों को जमीन पर खींची गई कोई इंसानी लकीर बांट नहीं सकती।

यही कारण है कि पाकिस्तान और भारत के बीच चार युद्धों के परिणाम के रूप में जो सीमा रेखा सामने आई वह मात्र एक अदृश्य रेखा है जो न सिर्फ जमीन को बांटती है बल्कि इंसानी रिश्तों, इंसान के दिलों को भी बांटने का प्रयास करती है।

जम्मू प्रांत के अखनूर सेक्टर में मनावर तवी के भूरेचक गांव से आरंभ हो कर करगिल में सियाचिन हिमखंड से जा मिलने वाली एलओसी अर्थात नियंत्रण रेखा आज विश्व में सबसे अधिक खतरनाक मानी जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता होगा जिस दिन दोनों पक्षों में गोलाबारी की घटना न होती हो। यही कारण है कि इसे विश्व में जीवित जंग के मैदान के रूप में भी जाना जाता है। रोचक बात यह है कि कहीं भी सीमा का कोई पक्का निशान नहीं है कि जिसे देख कर कोई अंदाज लगा सके कि आखिर सीमा रेखा है कहां।

कई जगह घने चीड़ व देवदार के वृक्षों ने सीमा को इस तरह से घेर कर रखा है कि सूर्य की किरणें भी सीमा पर नजर नहीं आती। इसी तरह करगिल से सियाचिन तक बर्फ से ढके पहाड़ साल के बारह महीनों मानव की पहुंच को कठिन बनाते हैं। सीमा की अगर किसी को पहचान है तो उन सैनिकों को, जो विषम परिस्थितियों में भी सीमा पर नजरें जमाए हुए हैं। उनकी अंगुलियां ही यह बता सकने में सक्षम हैं कि आखिर एलओसी है कहां जो अदृश्य रूप में कायम है और पूरे विश्व में चर्चा का विषय है। अधिकतर लोग समझ नहीं पाते कि भारत पाक एलओसी व भारत पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा में अंतर क्या है।

दरअसल भारत पाक एलओसी वह सीमा है जिसे सही मायनों में युद्धविराम रेखा कहा जाना चाहिए। दोनों देशों की सेनाएं इस रेखा पर एक दूसरे के आमने सामने हैं और युद्ध की स्थिति हर पल बनी रहती है।और यही अदृश्य रेखा जिसे एलओसी अर्थात लाइन आफ कंटोंल या नियंत्रण रेखा का नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि एक ओर पाकिस्तानी सेना का नियंत्रण है तो दूसरी ओर भारतीय सेना का।

लेकिन यह सच्चाई है कि उन लोगों पर दोनों ही सेनाओं में से किसी का भी नियंत्रण नहीं है। उनके आधे रिश्तेदार पाकिस्तान में हैं तो आधे भारत में। यही कारण है कि एलओसी के आर-पार आने-जाने वालों का जो सिलसिला 1947 के बंटवारे के उपरांत आरंभ हुआ था वह अनवरत रूप से जारी है।

इस अदृश्य रेखा रूपी एलओसी का दुखद पहलू यह है कि यह हमेशा ही आग उगलती रहती है जिसमें कमी तो नहीं आई है पिछले 72 सालों के भीतर मगर तेजी हमेशा ही आती रही है। इसी तेजी का अंग कभी छोटे हथियारों से की जाने वाली गोलीबारी है तो कभी बड़े तोपखानों से की जाने वाली गोलाबारी।

इसी दुखद पहलू का परिणाम किसी और को नहीं बल्कि एलओसी की परिस्थितियों से जूझ रहे आम नागरिकों को जूझना पड़ता है। विश्व में यही एक ऐसी सीमा रेखा है दो देशों के बीच जहां स्थिति पर नियंत्रण करना किसी भी देश की सेना के बस की बात नहीं है क्योंकि उबड़-खाबड़ पहाड़, गहरी खाईयां, घने जंगल आदि सब मिल कर जिन भौगोलिक परिस्थितियों की भूल भुलैइया का निर्माण करते हैं उन पर सिर्फ हिन्दुस्तानी सेना ही काबू पाने में कामयाब हुई है।

हालांकि पाकिस्तानी सेना भी एलओसी पर नियंत्रण रखती है लेकिन उसे इतनी कठिनाईयों का सामना इसलिए नहीं करना पड़ता है क्योंकि उसके अग्रिम ठिकानों से सड़क मार्ग और मैदानी क्षेत्र अधिक दूर नहीं हैं तो साथ ही में वह किसी प्रकार की तस्करी तथा घुसपैठ की समस्या से दो-चार इसलिए नहीं हो रही क्योंकि वह आप ही इन्हें बढ़ावा देती रही है


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