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समान नागरिक संहिता पर क्या सोचता है भारत का मुसलमान

भारत में समान नागरिक संहिता को लेकर बीते कुछ हफ्तों से तीखी बहस छिड़ी हुई है. मुस्लिम धार्मिक और सामाजिक संगठन इसको लेकर विरोध दर्ज करा रहे हैं. राजनीति से अलग मुसलमानों के मन में यूसीसी को लेकर क्या चिंता और डर है.

समान नागरिक संहिता पर क्या सोचता है भारत का मुसलमान
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जून के महीने में 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) पर देश की जनता और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों से 30 दिनों के भीतर राय मांगी थी. आम जनता, धार्मिक संगठन और सार्वजनिक संस्थानों को यूसीसी पर 14 जुलाई तक अपनी राय देने का समय दिया गया है.

यूसीसी को लेकर समाज के अलग-अलग तबकों से अलग-अलग प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं. मुस्लिम समाज भी इस मुद्दे पर गंभीर नजर आ रहा है और लगातर बैठकें कर यूसीसी की चिंताओं पर चर्चा कर रहा है.

बुधवार को लखनऊ में इसी मुद्दे पर ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड की एक बैठक हुई जिसमें फैसला लिया गया कि यूसीसी के विरोध में जनसमर्थन जुटाया जाएगा. बोर्ड ने विधि आयोग की ओर से यूसीसी पर मांगी राय पर ज्यादा से ज्यादा आपत्तियां दर्ज करवाने का अभियान शुरू करने का फैसला किया है. बोर्ड की तरफ से आयोग को बिंदुवार आपत्तियां भेजी गई है.

बोर्ड के महासचिव मोहम्मद फजलुर्रहीम मुजद्दीदी ने एक बयान में कहा कि देश में यूसीसी को लागू करने का माहौल बनाया जा रहा है. बोर्ड का कहना है कि "सिर्फ आदिवासियों को ही नहीं बल्कि हर धार्मिक अल्पसंख्यक को ऐसे कानून के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए."

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मुसलमान क्या सोचते हैं

सामाजिक कार्यकर्ता और औद्योगिक अनुसंधान संस्थान के पूर्व मुख्य वैज्ञानिक गौहर रजा कहते हैं कि यूसीसी पर देश घबराया हुआ है, अलग-अलग फिरके डरे हुए हैं. रजा ने डीडब्ल्यू से कहा, "भारतीय जनता पार्टी का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि आठ बजे रात को नोटबंदी कर दी, रात को उन्होंने तालाबंदी की घोषणा कर दी, बिना बहस किए, बिना बातचीत किए जो लोकतंत्र का अहम हिस्सा होता है, जिसके बाद किसी चीज पर सहमति बन जाए तो उसे अमल किया जाता है. तो लोग (यूसीसी पर) डरे हुए हैं. ये एक दिन (यूसीसी पर बिल) संसद में लाएंगे और शाम को वोट करवा लेंगे."

रजा ने ध्यान दिलाया कि यूसीसी पर मसौदा नहीं है और दूसरा यह डर है कि इसे संसद में एक दिन के नोटिस में लाकर पास कराया भी जा सकता है.

"यूसीसी पर सब डरे हुए हैं"

रजा का कहना है कि यह सब लोकतंत्र के ऊपर सीधा हमला है. मुस्लिम समाज में यूसीसी पर चिंताओं के सवाल पर रजा कहते हैं, "यह सिर्फ मुसलमानों का मसला नहीं है. यह मुसलमानों का भी मसला है. उन्होंने कहा, "लेकिन यह मुसलमानों का मसला नहीं है. इसलिए नहीं है कि अगर कोई यूनिफॉर्मिटी लाई जाए, यूसीसी का मतलब यह है कि हम एक ऐसा कानून पास करें जो सब पर लागू हो. अगर उसमें खास तौर से संपत्ति का बंटवारा, औरतों के अधिकारों की बात हो, शादी किस तरह से होगी, कौन सी शादी जायज है और कौन सी शादी नाजायज है ये फैसले हों, अगर ये फैसले लिए जा रहे हैं तो इसमें यूनिफॉर्मिटी संभव नहीं है, इसलिए सब डरे हुए हैं."

रजा का कहना है कि मुसलमानों के मुकाबले ज्यादा बड़ी प्रतिक्रियाएं आदिवासियों में दिखाई दे रही है और साथ ही पूर्वोत्तर राज्यों में भी ऐसी प्रतिक्रियाएं हैं. पटना की जामा मस्जिद के इमाम मोहम्मद असद कासमी कहते हैं देश को यूसीसी की जरूरत नहीं है और अगर कोई ऐसा कानून आता है जो इस्लामी कानून से अलग होगा तो वे उसे नहीं मानेंगे.

डीडब्ल्यू से बात करते हुए कासमी ने कहा, "अगर कानून इस्लाम के कानून या कुरान से टकराएगा तो हम उस कानून को नहीं मानेंगे. हां, अगर इससे नहीं टकराएगा तो हम उसे जरूर मानेंगे और मानते आ भी रहे हैं. अल्लाह के कानून के टकराव में हम नहीं जाएंगे. हम उस पर अमल नहीं करेंगे." उन्होंने बताया कि यूसीसी ने जो राय लोगों से मांगी उस पर वे लोग ऐतराज के लिए दस्तखत मुहिम चला रहे हैं.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि "समान नागरिक संहिता अनावश्यक, अव्यावहारिक और देश के लिए बेहद हानिकारक है." उन्होंने कहा कि सरकार इस अनावश्यक कार्य में देश के संसाधनों को बर्बाद करके समाज में अराजकता पैदा ना करें.

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भारत में कैसे लागू हो पाएगा यूसीसी

रजा कहते हैं कि उत्तर भारत में हिंदू समाज में सात फेरे लगाकर शादी हो जाती है जबकि दक्षिण भारत में गले में हार डालकर शादी होती है. यहां तक कि कई प्रांतों में गोत्र देखकर शादी होती है. वहीं दक्षिण में मामा से भांजी की शादी हो सकती है. ये सारी बहस ऐसी हैं जो हिंदुओं को भी उतना ही परेशान कर रही हैं.

रजा का कहना है कि भारत अभी भी लोकतंत्र है और मुसलमानों को यह नहीं कहा जा सकता कि आप बोलिए मत, चुप रहिए, ये गलत होगा. उनका कहना है कि यूसीसी के मुद्दे पर मुसलमानों को बोलना चाहिए और अपनी राय रखनी चाहिए.

वहीं कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि मुसलमानों को इस मुद्दे पर बहुत परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे सभी प्रभावित होंगे.

"सभी धर्म होंगे प्रभावित"

जामिया मिल्लिया इस्लामिया में इस्लामिक स्टडीज के प्रोफेसर और पद्म श्री अख्तरुल वासे ने डीडब्ल्यू से कहा समान नागरिक संहिता किसी एक धर्म की समस्या नहीं है बल्कि इसका संबंध सभी धर्मों से है. इसलिए मुसलमानों को इस पर गैर जरूरी प्रतिक्रिया देने से बचना चाहिए.

प्रोफेसर वासे ने कहा कि 2018 में विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था और कहा था कि भारत में विविधता का जश्न मनाया जाना चाहिए और उसका सम्मान किया जाना चाहिए.

दिल्ली के एक कारोबारी रियाज खान सवाल करते हैं कि आखिर यूसीसी लाने का मकसद क्या है. वे कहते हैं, "यूसीसी का मुद्दा वैसा ही जैसा सीएए और एनआरसी का था, उसका नतीजा कुछ नहीं निकला बल्कि लोग उसमें उलझ गए." रियाज कहते हैं जैसे सीएए और एनआरसी ने लोगों में भ्रम पैदा किया उसी तरह से यूसीसी भी लोगों में भ्रम पैदा कर रहा है.

लोकसभा चुनाव के पहले यूसीसी का मुद्दा गर्म

जानकार कहते हैं कि बीजेपी यूसीसी का मुद्दा उछालकर 2024 के लोकसभा चुनाव और उससे पहले होने विधानसभा चुनावों में राजनीतिक लाभ लेना चाहती है.

वरिष्ठ पत्रकार यूसुफ अंसारी ने डीडब्ल्यू से कहा, "दरअसल महंगाई और बेरोजगारी जैसे बुनियादी मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए बीजेपी यूसीसी के मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देकर पेश कर रही है. 2018 में ही विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यूसीसी की ना तो देश में जरूरत है और ना ही इसे लागू कर पाना संभव है फिर पांच साल में ऐसा क्या हो गया कि बीजेपी को यूसीसी इतना महत्वपूर्ण लगने लगा है."

21वें विधि आयोग ने साल 2018 में पारिवारिक कानून में सुधार पर एक परामर्श पत्र जारी किया था. जिसमें यह कहा गया था कि "इस स्तर पर एक समान नागरिक संहिता का निर्णय ना तो आवश्यक है और ना ही वांछनीय है."

सत्ताधारी बीजेपी के घोषणापत्र में यूसीसी का मुद्दा हमेशा से रहा है और इस बार वह इस पर बहुत जोर दे रही है. क्योंकि उसके पहले के वादे करीब-करीब पूरे हो गए हैं. जैसे जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लेना और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण.

अंसारी कहते हैं यूसीसी बीजेपी के तीन अहम मुद्दों में से एक है. पहले के वादे पूरे हो चुके हैं और अब यूसीसी की बारी है. उन्होंने कहा, "जैसा कि चर्चा है कि संसद के मानसून सत्र में मोदी सरकार यूसीसी का बिल संसद में पेश कर सकती है, अगर वह इसे संसद में पास भी करा लेती है तो अपने वोटर को संदेश देने में कामयाब रहेगी कि उसने अपने तीनों मुख्य वादे पूरे कर दिए हैं. अगर संसद में पास नहीं भी कराती है सिर्फ पेश भी करती है तो भी वही संदेश देगी कि बीजेपी अपने कोर मुद्दों से बिल्कुल भी पीछे नहीं हटी है बल्कि उन्हें लागू करना चाहती है."

27 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक भाषण में यूसीसी का समर्थन किया था और कहा कि आज इसके नाम पर लोगों को भड़काया जा रहा है. मोदी ने कहा, "एक घर दो कानून से नहीं चल सकता तो देश कैसे चल पाएगा. भारत के संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार की बात कही गई है. समान नागरिक संहिता पर बीजेपी भ्रम दूर करेगी."

अंसारी का कहना है कि जब से बीजेपी अस्तित्व में आई है तब से वह इस मुद्दे पर जनता से वोट मांग रही है इसमें कुछ भी गलत नहीं है. हालांकि वह ये भी कहते हैं कि यूसीसी को लागू करने से पहले जिस राजनीतिक समझ और जिस व्यापक विचार विमर्श की जरूरत थी उसे पूरा नहीं किया जा रहा.

उन्होंने कहा, "सांप्रदायिक रंग देकर उसे लागू करने की जो कोशिश हो रही है वह देश के लिए खतरनाक साबित हो सकती है."

भारत में फिलहाल अभी शादी, तलाक, उत्तराधिकारी और संपत्ति जैसे मामलों पर सभी धर्मों के अपने-अपने कानून हैं. सरकार ने यूसीसी को लेकर अपना प्रस्ताव पेश नहीं किया है लेकिन आशंका जताई जा रही है कि अगर यूसीसी लागू हो जाता है तो सभी धर्मों को मानने वालों के लिए एक समान कानून होगा.


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