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जो 'साइबर-सुरक्षा' ब्रिटेन में 'नाक की बात', वही हिंदुस्तान में 'फिसड्डी' साबित!

सन् 2013 में 'साइबर-सुरक्षा' के लिए हिंदुस्तान में बनाई गई नीति मौजूदा हालात में नाकामी का नमूना सी लगने लगी

जो साइबर-सुरक्षा ब्रिटेन में नाक की बात, वही हिंदुस्तान में फिसड्डी साबित!
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नई दिल्ली। सन् 2013 में 'साइबर-सुरक्षा' के लिए हिंदुस्तान में बनाई गई नीति मौजूदा हालात में नाकामी का नमूना सी लगने लगी है! सन् 2017 में दुनिया में 'साइबर-सुरक्षा' इंतजामों को लेकर जब हम, 23वें पायदान पर खड़े थे तब ब्रिटेन 12वें पायदान पर था।

गंभीर होते हालात के साथ साइबर-सुरक्षा के नजरिये से ब्रिटेन ने खुद को रातों-रात बदल डाला। इसका परिणाम यह हुआ कि एक-दो साल बाद ही 'साइबर-सुरक्षा' को लेकर संजीदा हुआ ब्रिटेन 12वें स्थान से पहले स्थान (वर्ष 2018 में) पर पहुंच गया। जबकि भारत एक-दो साल बाद ही 23वें स्थान को भी खो-गंवाकर औंधे मुंह 47वें पायदान पर आ गिरा।

दुनियाभर में साइबर-सुरक्षा इंतजामों से संबंधित यह और ऐसी ही अन्य तमाम सनसनीखेज जानकारियां, इंटरनेशनल टेली-कम्युनिकेशन यूनियन यानी आईटीयू (यूनाइटेड नेशंस का अभिन्न अंग) द्वारा जारी विश्वभर के ग्लोबल इंडेक्स से हासिल हुई हैं।

दुनिया में आज जिस तीव्र गति से साइबर-हमले के मामलों की संख्या बढ़ रही है, या यूं कहें कि जोखिम पैदा हुआ है, उसी अनुपात में इस जोखिम से बचने के उपाय भी तेजी से अमल में लाए-बनाए जा रहे हैं। हालांकि साइबर-सुरक्षा इंतजामों को लेकर दुनिया में मची होड़ में हिंदुस्तान कहीं किसी खास मुकाम को हाल-फिलहाल तो हासिल नहीं कर सका है। यह हम नहीं बल्कि, हिंदुस्तान और दुनियाभर के तमाम चुनिंदा साइबर-सुरक्षा विशेषज्ञ भी मानते हैं।

इस बारे में आईएएनएस ने हिंदुस्तान के मशहूर साइबर-सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. पवन दुग्गल से बात की। उन्होंने बताया, "दरअसल, इस समस्या से जूझने के लिए पॉलिसी और रणनीति दोनों ठोस बनाई जानी चाहिए। साइबर सुरक्षा उपायों से बेखबर दुनिया के तमाम देशों को तो 'पॉलिसी' और 'रणनीति' के बीच का फर्क ही नहीं मालूम होगा। साथ ही साइबर सुरक्षा को किसी मजबूत किले-सा अभेद्य बनाने के लिए लिए अच्छे-खासे बजट की भी जरूरत होती है। दुनिया के अन्य देशों की तुलना में जिसका भारत में काफी अभाव है। यह मेरा अपना मत है।"

पवन दुग्गल ने आगे कहा, "साइबर सुरक्षा पर हिंदुस्तान को अभी बहुत ज्यादा और संजीदा होकर काम करने की जरूरत है। ब्रिटेन से हम भारत के साइबर-सुरक्षा इंतजामों और बजट की तुलना करें, तो हम कहीं नहीं टिकते हैं। यह अलग बात है कि सन् 2017 में देश में हेल्थ-मेडिकल की ऑनलाइन-सर्विसेज पर हुए बेहद खतरनाक साइबर हमले के बाद 'अलर्ट' ब्रिटेन ने, साइबर-सुरक्षा समस्या को ही सर्वोपरि माना था। इसीलिए ब्रिटेन ने आज साइबर हमले से निपटने की तैयारियों में जुटे दुनिया के तमाम देशों की भीड़ में, खुद को सबसे अलग पहले पायदान पर ला खड़ा किया है।"

साइबर-सिक्योरिटी इंडेक्स से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, दुनिया में जिस तेज गति से साइबर असुरक्षा का खतरा बढ़ रहा है, उस अनुपात में सुरक्षा के इंतजाम नहीं हो पा रहे हैं। इसके गवाह साइबर हमलों के आंकड़े हैं। साइबर सिक्योरिटी को मजबूत बनाने के लिए तकनीकी प्रबंधन बेहद जरूरी है। ब्रिटेन में तो साइबर सिक्योरिटी प्रबंधन की पढ़ाई के लिए बाकायदा सैकड़ों की तादाद में संस्थान भी खोले गए हैं।"

एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन में औसतन हर 50 सेकेंड में एक साइबर-हमला होता है। साइबर सुरक्षा में लग रही इसी खतरनाक सेंध को रोकने के लिए सन् 2016 में ब्रिटेन ने इस मद में सर्वाधिक बजट पारित किया था। 5 साल के लिए (वर्ष 2016 से 2020 तक) पारित यह अनुमानित बजट 19 बिलियन पौंड (यानि करीब 174 अरब रुपये) था।

देश के एक अन्य मशहूर साइबर-सुरक्षा विशेषज्ञ ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर आईएएनएस से कहा, "दरअसल, हमारे यहां साइबर-सुरक्षा मामले से जुड़े तमाम इंतजामियों की भीड़ है। भीड़ से साइबर सुरक्षा अभेद्य नहीं हो सकती। इसके लिए धन और तकनीकी प्रबंधन जरूरी है। रहा सवाल साइबर सुरक्षा के बजट का, बजट तो है मगर वो कितना-कितना किस-किस मद में और कहां-कहां तितर-बितर हुआ खर्च हो रहा होगा, इसकी जानकारी चुनिंदा लोगों को ही होगी।"

उन्होंने कहा, "ऐसे में भारत को साइबर-सुरक्षा पर होने वाले संभावित खतरों से बेहद सतर्क होकर आज से ही चलना पड़ेगा। वरना ऐसा भी नहीं है कि साइबर सुरक्षा के हमलावरों की नजर हिंदुस्तान के कथित ढीले साइबर-सुरक्षा इंतजामों पर न हो। वे सिर्फ तलाश में हैं तो एक अदद मौके की!"


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