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बालासोर तिहरे रेल हादसे से हम क्या सीखेंगे?

2 जून को उड़ीसा के बालासोर में तिहरी ट्रेन दुर्घटना के सदमे और भयावहता से भारत धीरे-धीरे उबर रहा है। इस हादसे में 278 लोग मारे गए हैं और 1,000 से अधिक लोग घायल हो गए हैं

बालासोर तिहरे रेल हादसे से हम क्या सीखेंगे?
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- जगदीश रत्तनानी

पुराने लोगों, पुरानी चीजों, परंपराओं के लिए एक संदिग्ध तिरस्कार है और नए के लिए आकर्षण तथा उत्सुकता है जो असमान रूप से बढ़ रहे देश की कई वास्तविकताओं की उपेक्षा करता है। भारत के भविष्य को एक ऐसे विकास मॉडल की आवश्यकता होगी जो इस मॉडल से बहुत अलग है जिसे पाने के लिए हम एक्सीलेटर दबा रहे हैं जबकि इस गति पर ब्रेक लगाने का समय आ गया है।

2 जून को उड़ीसा के बालासोर में तिहरी ट्रेन दुर्घटना के सदमे और भयावहता से भारत धीरे-धीरे उबर रहा है। इस हादसे में 278 लोग मारे गए हैं और 1,000 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। आपदा के कारण या कारणों की जांच शुरू हो रही है जिसके संदर्भ में देश को सरकार से कु छ कठिन सवाल पूछने चाहिए जो शुरू तो रेलवे से होंगे लेकिन सिर्फ रेलवे तक समाप्त नहीं हो सकते हैं। ये सवाल उस विचार, उद्देश्य और वास्तव में विकास के दर्शन के बारे में पूछने के एक व्यापक कैनवास तक फैल जाएंगे जिसने एक छोर पर राजनीतिक पूंजी और उच्च तकनीक, विश्वस्तरीय बुलेट ट्रेन प्रौद्योगिकी में अन्य निवेश है तथा दूसरे छोर पर खराब रखरखाव, दुर्घटना-संभावित लगभग सुस्त बुनियादी ढांचा है।

अधिकारियों ने कहा है कि यह हादसा सिंग्नलिंग सिस्टम में 'जानबूझकर छेड़छाड़' की वजह से हो सकता है। यह बयान घटना से ध्यान हटाने की एक त्वरित कार्रवाई हो सकती है। इस बयान की कांग्रेस अध्यक्ष तथा पूर्व रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने उचित और जमकर आलोचना की है। उन्होंने महत्वपूर्ण सवालों का एक पूरा सेट ही सामने रखा है। खड़गे द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखा खुला पत्र एक बड़े दिशा निर्देशक दृष्टिकोण की ओर इशारा करता है जो भारतीय रेलवे की वर्तमान स्थिति की जड़ में है। इन रिपोर्टों में यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि रेलवे अधिकारियों का कहना है कि इस हादसे में उन्हें कुछ विशिष्ट संकेत मिले हैं इसलिए इस जांच में सीबीआई को शामिल किया गया है। रिपोर्टों के अनुसार उनका कहना है कि इस हादसे के कथित बड़ी सिग्नलिंग त्रुटि बिना किसी छेड़छाड़ के नहीं हो सकती थी इसलिए उन्होंने इस छेड़छाड़ की तलाश के लिए सीबीआई को शामिल किया है। रेलवे बोर्ड (परिचालन एवं कारोबार विकास) की सदस्य जया वर्मा सिन्हा ने रविवार को कहा, 'सिग्नल प्रणाली में बाहरी छेड़छाड़ हो सकती है।'

विडंबना यह है कि 2 जून को ही 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन 2047 को लागू करने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने पर केंद्रित' दो दिवसीय चिंतन शिविर समाप्त हुआ था और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसकी अध्यक्षता की थी। इस चिंतन शिविर में रेलवे का पूरा शीर्ष नेतृत्व मौजूद था। शिविर में लगभग 400 लोग उपस्थित थे। चिंतन शिविर का उद्देश्य प्रति वर्ष अधिक ट्रैक (नई लाइन, जीसी और मल्टी-ट्रैकिंग), प्रति दिन उच्च लोडिंग, 50 प्रतिशत मार्गों पर 160 किमी प्रति घंटे की गति हासिल करना तथा शून्य परिणामी दुर्घटनाओं को प्राप्त करना व सीआरओ एवं एमआरओ में 90 फीसदी की कमी हासिल करने के लिए नए उपायों और तरीकों को खोजने पर विचार करना था। दो दिवसीय चिंतन शिविर में विभिन्न मुद्दों एवं नए भारत के निर्माण में रेलवे के योगदान को और बढ़ाने के बारे में विचार-विमर्श किया गया। रेलवे में सीआरओ और एमआरओ आम तौर पर मवेशियों तथा अतिक्रमण करने वाले व्यक्तियों के कुचलने के मामलों का उल्लेख करते हैं।

यह सच है कि बैठक में सुरक्षा के मुद्दे पर भी चर्चा की गई। कहा जाता है कि मंत्री ने सुरक्षा और नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर जोर दिया है, लेकिन बैठक का जोर फैन्सी परियोजनाओं में भारी निवेश की ओर रहा। उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में रेलवे को 2.40 लाख करोड़ रुपये का परिव्यय प्रदान किया गया था जो 2022-23 में दिए गए 1.40 लाख करोड़ रुपये से काफी अधिक था। यह एक दशक में नौ गुना उछाल था। वैसे इसका बड़ा हिस्सा वंदे भारत ट्रेनों की नई पाइपलाइन के विस्तार के लिए था जिसकी गति को अब भारत के आगे बढ़ने का प्रतीक बताया जा रहा है। वंदे भारत ट्रेनों में से पहली का उद्घाटन करते हुए मोदी ने कहा था- 'देश अब रुकने वाला नहीं है, देश ने अब अपनी गति पकड़ ली है। पूरा देश वंदे भारत की गति से आगे बढ़ रहा है और आगे ही बढ़ता रहेगा।'

भारतीय रेलवे को निश्चित रूप से नई तकनीक, तेज ट्रेनों और अधिक सुविधाओं की आवश्यकता है परन्तु विकास की यह कहानी एक सिरे पर चिंताजनक है क्योंकि यह भारत के एक बड़े हिस्से को भी पीछे छोड़ देता है जहां ये निवेश नहीं पहुंचेंगे, जहां सेवाओं में सुधार नहीं होगा। कुछ ट्रेनें कभी भी अपने गंतव्य तक नहीं पहुंचेंगी क्योंकि वे पटरी से उतर गईं और उनमें सवार यात्रियों की मौत हो गई।

प्रगति की दिशा में आगे बढ़ने वाले कदमों की आलोचना आवश्यक नहीं है लेकिन इस विकास मॉडल में विकास के तरीके और उद्देश्य पर महत्वपूर्ण सवाल उठाने जरुरी हैं। 'इंडिया शाइनिंग' की कहानी को विशाल बहुमत ने कभी पसंद नहीं किया क्योंकि विकास और स्मार्ट तकनीक तथा नई सेवाओं की पूरी कहानी इसी से जुड़ी है जो अभी भी धीमी हैं। यह 'इंडिया शाइनिंग' अभियान था जिसका मास्टरमाइंड भाजपा का अभिजात वर्ग और एक विज्ञापन एजेंसी थी। यह एक ऐसा अभियान था जिसके बारे में माना जाता है कि इसकी वजह से 2004 के चुनावों में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था।

हम एक ऐसे भारत में रहते हैं जहां शहरों में हवाई अड्डे चमक रहे हैं लेकिन इनसे केवल थोड़ी दूर स्थित रेलवे स्टेशनों का रखरखाव बहुत खराब है। बस सेवाओं का बुनियादी ढांचा तो और भी कमजोर है- भारत के दूरदराज के हिस्सों तक पहुंचने के लिए खटारा बसें एकमात्र साधन हैं। किसी भी सरकार ने दूरदराज के गांवों में रहने वाले लोगों को जोड़ने के लिए कभी भी अच्छी बस सेवा प्रदान करने की परवाह नहीं की है। इसी तरह सरकारी भूमि पसंदीदा फैंसी निजी स्कूलों और स्पेशिलिटी हॉस्पिटल को दी जाती है जो अक्सर आम नागरिक के बजट से बाहर होते हैं।

लाभकारी मॉडल उन सेवाओं में भी सबसे अधिक निकलते हैं जो सस्ती, सुलभ, उपलब्ध, गुणवत्ता और मानकों में स्वीकार्य होनी चाहिए। कार की तुलना में हवाई अड्डे से गंतव्य तक पहुंचने के लिए बस लेना आसान होना चाहिए। निजी अस्पतालों की तुलना में सार्वजनिक अस्पतालों में इलाज कराना आसान होना चाहिए। हमारे नागरिकों को सार्वजनिक स्कूलों की ओर आकर्षित किया जाना चाहिए न कि वातानुकूलित कक्षाओं वाले निजी स्कूलों की ओर। भारत के दूरस्थ कोनों में पहुंचने वाली ट्रेनें पहले सुरक्षित होनी चाहिए, उन्हें समय पर चलाना चाहिए और उसके बाद सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। यदि इस क्रम को उलट दिया जाता है तथा चुनिंदा जेबों को लाभ मिलता है तो विकास की कहानी अधिक दरारें पैदा करेगी जो घर को कमजोर, अस्थिर कर देगी और नींव को हिला देगी। कमजोर घरों के आसपास की विकास की गति नींव को और कमजोर करेगी।

इनमें से किसी में भी नयापन नहीं है। बहरहाल, इन दिनों इसमें एक नया मोड़ आ गया है। इसमें निश्चितता का भाव है, पुराने लोगों, पुरानी चीजों, परंपराओं के लिए एक संदिग्ध तिरस्कार है और नए के लिए आकर्षण तथा उत्सुकता है जो असमान रूप से बढ़ रहे देश की कई वास्तविकताओं की उपेक्षा करता है। भारत के भविष्य को एक ऐसे विकास मॉडल की आवश्यकता होगी जो इस मॉडल से बहुत अलग है जिसे पाने के लिए हम एक्सीलेटर दबा रहे हैं जबकि इस गति पर ब्रेक लगाने का समय आ गया है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेट : दी बिलियन प्रेस)


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