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बांग्लादेश के बदलते हालात में भारत के लिए क्या विकल्प हैं

बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार गिर जाएगी इसकी उम्मीद ना हसीना को थी ना भारत को. भारत इस अप्रत्याशित घटनाक्रम के आगे मजबूर है, लेकिन उसे एक नई रणनीति पर काम करना होगा. ऐसे में आखिर क्या विकल्प हैं भारत के सामने?

बांग्लादेश के बदलते हालात में भारत के लिए क्या विकल्प हैं
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बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार गिर जाएगी इसकी उम्मीद ना हसीना को थी ना भारत को. भारत इस अप्रत्याशित घटनाक्रम के आगे मजबूर है, लेकिन उसे एक नई रणनीति पर काम करना होगा. ऐसे में आखिर क्या विकल्प हैं भारत के सामने?

बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने मोहम्मद यूनुस को इस सरकार का नेता नियुक्त कर दिया है. अन्य सदस्यों के नामों पर विमर्श चल रहा है और जल्द ही उनकी भी घोषणा हो सकती है.

राष्ट्रपति संसद भंग कर चुके हैं और देश के संविधान के मुताबिक तीन महीनों के अंदर चुनाव हो जाने चाहिए. यानी अगले तीन महीने भारत को अंतरिम सरकार के साथ ही अपने संबंध बनाने होंगे. क्या यह भारत के लिए आसान होगा? कई जानकारों का मानना है कि भारत के लिए यह एक बड़ी चुनौती है.

क्या भारत ने हसीना का कुछ ज्यादा साथ दे दिया?

बांग्लादेश में भारत के पूर्व उच्चायुक्त रीवा गांगुली दास का मानना है कि बांग्लादेश में जो हुआ वो अप्रत्याशित था. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "बांग्लादेश में सरकार के गठन के बाद से ही अशांति थी, छात्र खुश नहीं थे, प्रदर्शन हो रहे थे. लेकिन किसी ने यह कल्पना नहीं की थी कि आंदोलन इतनी जल्दी यह रूप ले लेगा."

लेकिन अब भारत के सामने कैसी चुनौती है? वरिष्ठ पत्रकार नीलोवा रॉयचौधरी का मानना है कि भारत के सामने ज्यादा विकल्प नहीं हैं, क्योंकि बीते सालों में भारत सरकार ने शेख हसीना का कुछ ज्यादा ही साथ दे दिया था.

नीलोवा ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "भारत ने अपने सारे अंडे शेख हसीना की टोकरी में रख दिए थे. अब उसे अपने आप को उस स्थिति से बाहर निकालना होगा, सभी मोर्चों पर अपने संबंधों को बढ़ाना होगा लेकिन शांत रह कर स्थिति पर नजर भी बनाए रखनी होगी."

नीलोवा ने आगे कहा, "भारत के सामने फिलहाल तो यही विकल्प होगा कि अभी जो भी सरकार बांग्लादेश में बन रही है उसके साथ संबंध स्थापित करे. भारत को अपने पत्ते इस तरह से खेलने होंगे कि उसे बांग्लादेश के लोगों के दोस्त के रूप में देखा जाए."

अगली सरकार का क्या होगा रवैय्या

लेकिन कुछ जानकारों की राय इससे अलग है. भारत के रक्षा मंत्रालय के संस्थान मनोहर परिकर इंस्टिट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस की रिसर्च फेलो स्मृति पटनायक का मानना है कि भारत के पास विकल्प मौजूद हैं.

उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "कुछ लोग कह रहे हैं कि अवामी लीग के चले जाने के बाद भारत के पास अब कोई विकल्प नहीं हैं, लेकिन मैं इस बात से सहमत नहीं हूं.... ऐसा तो नहीं है कि भारत के बांग्लादेश में किसी दूसरी सरकार से या किसी दूसरी पार्टी से कोई संबंध नहीं रहे हैं. दोनों देशों के अपने अपने राष्ट्रहित हैं और सिर्फ प्रशासन बदल जाने से राष्ट्रहित नहीं बदलता है."

लेकिन नीलोवा इस बात से सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि भारत ने धीरे धीरे बीएनपी से अपने संबंध खत्म कर लिए थे. उन्होंने यह भी बताया कि यूनुस के मनमोहन सिंह के साथ अच्छे संबंध थे, लेकिन हसीना के कार्यकाल में जब यूनुस के खिलाफ जांच शुरू की गई और उन्हें जेल में बंद करने की कोशिश की गई तो भारत ने इसके खिलाफ कभी कुछ नहीं कहा.

2011 में शेख हसीना की सरकार ने यूनुस द्वारा शुरू किए गए ग्रामीण बैंक की गतिविधियों की जांच शुरू की. जांच शुरू होने के कुछ ही दिनों में सरकार ने यूनुस को बैंक से निकाल दिया. उसके बाद एक एक कर उनके खिलाफ कई तरह के मुकदमे दायर किए गए.

यूनुस: भारत को माफ नहीं कर पाएंगे

जनवरी, 2024 में बांग्लादेश की एक अदालत ने इन्हीं में से एक मामले में यूनुस को छह महीने जेल की सजा भी सुनाई, लेकिन बाद में उन्हें जमानत मिल गई. यूनुस को दोषी ठहराए जाने के फैसले को कई लोगों ने विवादास्पद कहा था, लेकिन भारत उनमें शामिल नहीं था.

यूनुस ने कुछ ही दिनों पहले इंडियन एक्सप्रेस अखबार को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि बांग्लादेश में बीते दिनों जो कुछ हुआ उस पर जब भारत ने यह कहा कि यह "बांग्लादेश का आंतरिक मामला है" तो उन्हें दुख हुआ. उनका कहना था कि कूटनीति में इस तरह के मामलों पर सिर्फ "आतंरिक मामला" से ज्यादा कहने के लिए काफी "समृद्ध शब्दावली" है.

यूनुस ने यह भी कहा कि उनके देश में चुनाव पारदर्शी तरीके से नहीं हुए थे और भारत ने इसके बारे में कुछ नहीं कहा और इसके लिए "हम भारत को माफ नहीं कर सकते." भारत ने यूनुस पर या उनके बयानों पर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है.

बांग्लादेश में भारत की पूर्व उच्चायुक्त वीना सीकरी ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस अखबार को बताया कि भारत और कई देशों ने इन चुनावों में अपने आब्जर्वर भेजे थे और उनमें से किसी को भी चुनावी प्रक्रिया में कोई कमी नजर नहीं आई.

सीकरी ने यह भी कहा कि प्रदर्शनों के दौरान हस्ताक्षेप करने का भारत के पास कोई आधार नहीं था और अगर भारत हस्तक्षेप करता तो बांग्लादेश में भारत-विरोधी दंगे हो जाते.

भविष्य पर भी नजर

लेकिन नीलोवा मानती हैं कि आंदोलन के दौरान छात्रों और अन्य प्रदर्शनकारियों को यह लगने लगा था कि भारत हसीना की सिर्फ मदद ही नहीं कर रहा है, बल्कि वह कुछ हद तक उन चीजों के लिए जिम्मेदार है जो हसीना कर रही हैं.

उन्होंने बताया, "तो इस समय बांग्लादेश के लोगों के बीच भारत की छवि काफी नकारात्मक बनी हुई है. इसलिए इस समय भारत को काफी शांत ही रहना चाहिए."

उनकी राय है कि इस समय भारत की कोशिशें बांग्लादेश के नए प्रशासन की जिस तरह से भी हो सके उस तरह से मदद करने के इर्द गिर्द केंद्रित होनी चाहिए, लेकिन वह भी संभल कर.

उन्होंने सुझाया, "बांग्लादेशी सेना और मौजूदा सेना प्रमुख से भारत के अच्छे संबंध हैं. भारत को इस समय बहुत संभल कर आगे बढ़ना चाहिए और अनावश्यक सांप्रदायिक रवैय्या नहीं अपनाना चाहिए."

भारत सरकार की तुरंत होने वाले घटनाक्रम से आगे के हालात पर भी नजर रहेगी. स्मृति का कहना है कि तीन महीने बाद क्या होगा यह कोई कह नहीं सकता है क्योंकि हो सकता है दोबारा चुनाव हों तो अवामी लीग भी चुनाव लड़े.

उन्होंने कहा, "इसलिए अवामी लीग सत्ता में वापस भी आ सकती है, मैं इस संभावना को नकारूंगी नहीं. शेख हसीना पहले भी लंबे समय तक बांग्लादेश में नहीं थीं, लेकिन अवामी लीग इस वजह से खत्म तो नहीं हुई. ठीक वैसे ही जैसे खालिदा जिया के लंबे समय तक जेल में रहने के बावजूद बीएनपी खत्म नहीं हुई. हमें दोनों पार्टियों की सामाजिक जड़ों को समझना चाहिए."


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