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क्लाइमेट चेंज पर अपनी जि़म्मेदारी से पीछे न हटें पश्चिमी देश

विकसित देशों ने सदियों से जो विकास किया, वह पर्यावरण की कीमत पर हुआ। जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज जैसी घटना सिर्फ कुछ वर्षों में नहीं होती

बीजिंग। विकसित देशों ने सदियों से जो विकास किया, वह पर्यावरण की कीमत पर हुआ। जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज जैसी घटना सिर्फ कुछ वर्षों में नहीं होती। इसके लिए अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा व ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को कम जि़म्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। आज के दौर में जितने भी प्रभावी वैश्विक ग्रुप हैं, उन सब में पश्चिमी ताकतों का मजबूत प्रतिनिधित्व है। ऐसे में वे बार-बार अपनी जिम्मेदारी विकासशील व छोटे देशों पर डालते रहते हैं। पेरिस समझौते से अमेरिका का पीछे हट जाना और ऑस्ट्रेलिया द्वारा बार-बार आनाकानी किए जाने से पता चलता है कि ये देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कितने गंभीर हैं।

वहीं चीन व भारत जैसे विकासशील देश कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं। चीन बार-बार विभिन्न मंचों से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आगे आने का आह्वान करता रहा है। पिछले दिनों आयोजित जलवायु महत्वाकांक्षा शिखर सम्मेलन में चीन ने अपने स्वैच्छिक योगदान को बढ़ाने का ऐलान किया। जानकार कहते हैं कि चीन जिस तरह से जलवायु परिवर्तन के वैश्विक निपटारे के लिए काम कर रहा है, उसकी सराहना करनी होगी। चीन लगातार हरित व कम कार्बन उत्पादन पर जोर देता रहा है।

उसका कहना है कि वह साल 2030 तक प्रति यूनिट जीडीपी में कार्बन डाइआक्साइड का उत्सर्जन 2005 के मुकाबले 65 प्रतिशत से अधिक घटाएगा। वहीं नॉन फॉशिल एनर्जी का अनुपात 25 फीसदी पहुंचाने का लक्ष्य भी चीन ने रखा है।

इसके साथ ही सितंबर महीने में आयोजित 75वीं यूएन महासभा में चीन ने कार्बन उत्सर्जन शिखर और कार्बन तटस्थता को लेकर अपना विजन पेश किया था। जैसा कि हम जानते हैं कि चीन एक अरब 40 करोड़ से अधिक आबादी वाला देश है, वहीं भारत की आबादी व भूभाग भी बहुत बड़ा है। ऐसे में अगर चीन व भारत जलवायु परिवर्तन पर गंभीर रुख अपनाते हैं तो उसका पूरे विश्व पर व्यापक असर पड़ेगा।

अब हम यहां तमाम मुद्दों पर अमेरिका का साथ देने वाले ऑस्ट्रेलिया की बात करते हैं। हालांकि ऑस्ट्रेलिया ने 2015 में हुई पेरिस महासभा में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा में कमी लाने का वादा किया था। जिसके तहत ऑस्ट्रेलिया 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 2005 के मुकाबले 26 से 28 फीसदी घटाने की बात कही थी। लेकिन ऑस्ट्रेलिया में खनन उद्योग पर नियंत्रण नहीं किया जा रहा है। इसकी वजह प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन का खनन लॉबी के दबाव के आगे झुकना बताया जाता है। हालांकि जब भी वैश्विक स्तर पर जिम्मेदारी की बात आती है तो ऑस्ट्रेलियाई नेता दूसरे देशों पर आरोप लगाते हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन को लेकर उनमें गंभीरता नजर नहीं आती है।


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