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ललित सुरजन की कलम से युद्ध नहीं, शांति चाहिए

युद्ध की क्या कीमत चुकाना पड़ती है, इस बारे में बात करने से हम कतरा रहे हैं। भारत उपमहाद्वीप में स्थायी शांति कैसे स्थापित हो सकती है, इस पर बात करने में हमारी कोई दिलचस्पी दिखाई नहीं देती

ललित सुरजन की कलम से युद्ध नहीं, शांति चाहिए
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'युद्ध की क्या कीमत चुकाना पड़ती है, इस बारे में बात करने से हम कतरा रहे हैं। भारत उपमहाद्वीप में स्थायी शांति कैसे स्थापित हो सकती है, इस पर बात करने में हमारी कोई दिलचस्पी दिखाई नहीं देती।

दोनों प्रमुख राजनीतिक दल आरोप-प्रत्यारोप में अपनी शक्ति जाया कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी पुलवामा और बालाकोट की घटनाओं का हर तरह से राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है, तो दूसरी ओर कांग्रेस की कोशिश है कि ऐसा न होने दिया जाए। इस बीच अधिकतर राजनीतिक दल अपनी-अपनी सुविधा से इस पूरे घटनाचक्र पर टिप्पणियाँ कर रहे हैं।

स्वाभाविक रूप से प्रधानमंत्री सबसे ज्यादा गरज रहे हैं। उन्होंने अभिनंदन की रिहाई की घोषणा के तुरंत बाद जो टीका की वह वांछित नहीं थी। उन्होंने कहा कि यह तो पायलट प्रोजेक्ट है, असली खेल तो इसके बाद होगा।'

(देशबंधु में 07 मार्च 2019 को प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2019/03/blog-post.html


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