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बिहार के तरबूज ने दी नेपाल में दस्तक

हर वर्ष बाढ़ की विभीषिका झेलने वाले बिहार के सुपौल और ‘काले हीरे’ की धरती माने जाने वाले झारखंड के रामगढ़ के तरबूज ने नेपाल के साथ साथ पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल की मंडियों पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया

बिहार के तरबूज ने दी नेपाल में दस्तक
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नयी दिल्ली। हर वर्ष बाढ़ की विभीषिका झेलने वाले बिहार के सुपौल और ‘काले हीरे’ की धरती माने जाने वाले झारखंड के रामगढ़ के तरबूज ने नेपाल के साथ साथ पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल की मंडियों पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया है ।

कृषि विज्ञान केन्द्र के दिशा निर्देशन में पहली बार इन दोनों स्थानों पर वैज्ञानिक ढंग से की गई तरबूज की खेती ने लॉक डाउन के बावजूद अपने स्वाद , रंग और आकार प्रकार के कारण गर्मी के इस मौसम में नेपाल के लोगों के दिलों में विशेष जगह बना ली ।

अटारी पूर्वी क्षेत्र के निदेशक अंजनी कुमार ने बताया कि अगात तरबूज की फसल के कारण किसानों को नेपाल और पश्चिम बंगाल की मंडियों में बहुत अच्छा मूल्य मिला जिससे उनका मनोबल बढ़ा है और इसकी आगे की खेती जारी रखने की प्रेरणा मिली है ।

डॉ कुमार ने बताया कि हर वर्ष कोसी नदी की बाढ़ की विभीषिका झेलने वाले सुपौल जिले के किसान मुश्किल से एक फसल ले पाते थे । वैज्ञानिकों ने वहां की जमीन को तरबूज की खेती के लिए उपयुक्त पाया और किसानों को इसकी खेती के लिए प्रेरित किया । इसके बाद करीब 850 एकड़ जमीन में इसकी खेती की गई ।

जनवरी में तरबूज के मिर्च 66 , स्टार 30और मैक्सिमो 63 किस्मों को लगाया गया । मार्च के अंत में किसानों को फल मिलने शुरू हो गये और उनकी आपूर्ति सुपौल से सटे नेपाल के हिस्सों में की जाने लगी । नेपाल के औद्योगिक नगर विराट नगर तक तरबूज भेजे गये जिनका मूल्य 15 रुपये किलो तक मिला ।

डॉ कुमार ने बताया कि किसानों ने एक हेक्टेयर में 250 क्विंटल तक तरबूज की फसल ली जिससे उन्हें 80 हजार रुपये तक का लाभ हुआ ।

रामगढ़ कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक दुष्यंत कुमार राघव ने बताया कि कोयला उत्पादन के लिए विख्यात इस क्षेत्र में किसान केवल धान की एक फसल लेते थे । कुछ किसान छिटपुट रूप से सब्जियों की फसल ले लेते थे ।

डॉ राघव ने बताया कि किसानों को सामूहिक रूप से तरबूज की हाइब्रिड किस्म की खेती करने को प्रेरित किया गया और करीब 500 एकड़ में इसकी खेती की गई । प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल तरबूज की पैदावार ली गई । यहां के किसानों को तरबूज का मूल्य पांच रुपये से पंद्रह रुपए प्रति किलो तक मिला ।

सिंचाई की सुविधा के कारण यहां पैदा हुआ तरबूज तीन से पांच किलो तक का हुआ जिसकी बिक्री पश्चिम बंगाल के बाजारों में की गयी। लॉकडाउन के पहले यहां के किसानों को बहुत अच्छा मूल्य मिला लेकिन इसके बाद उन्हें परेशानी हुई। हजारीबाग जिला प्रशासन के सहयोग से किसानों को वाहन का सहयोग मिला और संचार के विभिन्न माध्यमों से मंडी व्यवस्था को मजबूत किया गया ।

डॉ राघव ने बताया कि धान से पहले तरबूज की फसल से अतिरिक्त आय होने से किसान न केवल उत्साहित हैं बल्कि वे आगे और वैज्ञानिक ढंग से खेती कर युवा वर्ग को भी इससे जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं ।


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