जल बिरादरी ने जारी किया घोषणापत्र,राजनैतिक दलों से पर्यावरण की रक्षा की मांग
जल बिरादरी ने अपना घोषणा पत्र जारी करते हुए राजनैतिक दलों से नदियों, पर्यावरण व जंगलों के संरक्षण की मांग की

नई दिल्ली। जल बिरादरी ने अपना घोषणा पत्र जारी करते हुए राजनैतिक दलों से नदियों, पर्यावरण व जंगलों के संरक्षण की मांग की है। घोषणापत्र में तालाबों के संरक्षण के लिए अलग से नीति बनाने की मांग की गई है।
घोषणापत्र में कहा गया है, कि चुनाव में जनता के असली मुददे गायब हैं, वर्तमान में 362 से अधिक जिले सूखे से प्रभावित हैं, 16 राज्यों में जल संकट की समस्या गहराती जा रही है, देश की 90 फीसद छोटी नदियां सूख गई हैं, सिर्फ बरसात के दौरान ही उनमें जल का प्रवाह रहता है। देश की प्रमुख नदियों की भी स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है करोड़ों की आस्था का प्रतीक गंगा आज पहले से और अधिक प्रदूषित हुई है। यह बात नीरी ने अपनी रिर्पोट में उजागर की है। गंगा में ’नमामि गंगे जैसी परियोजनाओं से सिर्फ सुन्दरीकरण का कार्य किया गया है। भारत में आवश्यकता से अधिक बिजली का उत्पादन हो रहा है फिर भी नदियों पर बिजली उत्पादन के लिए बांध बनाए जा रहे है, जबकि वर्षा जल के संचयन के लिए कोई कारगर उपाय नहीं किये जा रहे है। भारत में तालाबों की संस्कृति खत्म हो रही है, हजारो-हजार साल पुराने तालाब देखरेख के अभाव में नष्ट हो रहे है।
महाराष्ट्र जैसे राज्य जहां आजादी के बाद से सबसे अधिक सिंचाई के बांधों का निर्माण किया, आज यह राज्य गम्भीर सूखे के संकट से जूझ रहा है। यहां 36 जिलो में से 26 जिले की 151 तालुकाओं को महाराष्ट्र सरकार ने सूखा घोषित किया है जबकि हालत अन्य जिलों के भी खराब है। इसी तरह से केरला, कर्नाटक, तमिलनाडू, आंन्ध्रप्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड समेत अन्य प्रदेशों के भी कई जिले सूखे से प्रभावित है।
घोषणापत्र में कहा गया है, कि किसी भी राजनैतिक दल ने अपने घोषणा पत्र में पानी, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन के वास्तविक मुददो के ऊपर ध्यान नहीं दिया है, सिर्फ मुददों को छूने की कोशिश की है। गंगा के वास्तविक मुददे घोषणा पत्रों से गायब है। किसी भी राजनैतिक दलों के द्वारा भविष्य रक्षा हेतु पर्यावरण की चिंता दिखायी नहीं दे रही है। भारतीय आस्था, संस्कृति और प्रकृति रक्षा की दुहाई देने वाले दलों ने “गंगा” जो हमारी सभ्यता, संस्कृति, धर्म, एकता-अखंडता का जाप करने वाले तीन संत, जो कि धर्म व संस्कृति की रक्षा में जुटे थे, एवं गंगा जी की अविरलता हेतु गंगा सत्याग्रह कर रहे थे, उन्हें जान से मरवा दिया है, एक को गुम करवा दिया है, एक आज 167 दिन से आमरण उपवास पर है, उनकी गुहार सुनी नहीं जा रही है। विपक्ष ने भी गंगाजी पर मौन धारण कर रखा है। घोषणापत्र में मांग की गई है, कि पर्यावरण संरक्षण के लिए एक सशक्त कानून बनाने की आवश्यकता है जिसकी अनुपालना के लिए स्वतंत्र, सशक्त प्राधिकरण की स्थापना की जाए।
भारत में वन कानून को पुनः परिभाशित करने, स्थानीय समुदायों को वनों तथा वन संसाधनों का संरक्षक बनाया जाए। भारत में तालाबों की समद्ध संस्कृति रही है तालाबों को बचाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण के लिए एक स्वतंत्र ईकाई का गठन कर अधिकार सम्पन्न बनाया जाए, जो तालाबों के संरक्षण के लिए पूर्ण जबावदेह हो।


