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लखनऊ में अवैध कब्जों के कारण घट रहे जल निकाय

तेजी से शहरीकरण के साथ राज्य की राजधानी लखनऊ ने अपने जल निकायों (तालाब, झील, कुएं व पूल इत्यादि) का 46 फीसदी खो दिया है

लखनऊ में अवैध कब्जों के कारण घट रहे जल निकाय
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लखनऊ। तेजी से शहरीकरण के साथ राज्य की राजधानी लखनऊ ने अपने जल निकायों (तालाब, झील, कुएं व पूल इत्यादि) का 46 फीसदी खो दिया है। इनमें से ज्यादातर कचरे और सीवरेज से भी प्रदूषित हैं। राज्य सरकार और सर्वोच्च न्यायालय ने जल निकायों पर भूमि कब्जाने और निर्माण को रोकने के लिए कई हस्तक्षेप किए हैं। मगर इसके बावजूद स्थिति नियंत्रण में नहीं है।

अतिक्रमण के बाद से अधिकारी इस मुद्दे पर बोलने के लिए तैयार नहीं हैं और हमेशा ही राजनेताओं ने उनका समर्थन भी किया है। जिला मजिस्ट्रेट ने भी कॉल का उत्तर नहीं दिया।

लखनऊ नगर निगम द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, शहर में 1952 में कुल 964 तालाब थे, मगर 2006 में यह संख्या घटकर महज 494 रह गई।

नगर निगम के भूमि रिकॉर्ड में कहा गया है कि सन् 1952 में शहर में कुल 964 तालाब थे, मगर 2006 में इनकी संख्या घटकर 494 रह गई।

सरोजनी नगर क्षेत्र जहां 14 जल निकायों का अतिक्रमण किया गया है, उसमें समाजवादी पार्टी के नेता शारदा प्रताप शुक्ला को 'बड़ी मछली' कहा जाता है। उनकी कुछ अवैध रूप से निर्मित इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया था, मगर कुछ महीनों के बाद ये दोबारा खड़ी कर दी गईं।

लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) के एक अधिकारी ने कहा, "हर बार जब हम अतिक्रमणों को ध्वस्त करने की कोशिश करते हैं तो हमें भारी राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ता है और मामला शांत हो जाता है।"

सर्वोच्च न्यायालय ने 2006 में कहा था कि प्राकृतिक झीलों और तालाबों का संरक्षण सबसे बुनियादी मौलिक आधार है। मगर इस संबंध में लखनऊ के आधिकारिक रिकॉर्ड से गंभीर तस्वीर सामने आ रही है।

तालाब और पूल बारिश के पानी को इकट्ठा करने में मददगार होते हैं और क्षेत्र में भूजल स्तर को भी बढ़ाते हैं। मगर लखनऊ के मुख्य शहरी क्षेत्र में जल निकाय काफी हद तक विलुप्त हो गए हैं। इस समय गोमती नदी के हालात भी दयनीय हैं।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के अनुसार, पिछले कुछ वर्षो में गोमती का प्रवाह 35 से 40 प्रतिशत तक कम हुआ है।

शहर के एक पर्यावरण कार्यकर्ता अशोक शंकरम ने 2014 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 37 जल निकायों के अतिक्रमण के खिलाफ एक याचिका दायर की। इसके बाद अदालत ने एलडीए और नगर निगम से जवाब मांगा, मगर उन्हें सिर्फ प्रारंभिक उत्तर ही मिल पाया।

इस संबंध में एक अन्य जनहित याचिका पिछले सप्ताह उच्च न्यायालय में दायर की गई थी।

सूत्रों का कहना है कि अवैध अतिक्रमण के हाथों एक लाख से अधिक जल निकायों को खो दिया है। इस संबंध में योगी सरकार द्वारा भी इन्हें बचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।


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