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बेलगावी को लेकर महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच फिर से जुबानी जंग तेज

कन्नड़ियों के लिए बेलगावी और महाराष्ट्र के लोगों के लिए कर्नाटक का सीमावर्ती जिला बेलगाम एक बार फिर सुर्खियां बटोर रहा है

बेलगावी को लेकर महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच फिर से जुबानी जंग तेज
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बेंगलुरु। कन्नड़ियों के लिए बेलगावी और महाराष्ट्र के लोगों के लिए कर्नाटक का सीमावर्ती जिला बेलगाम एक बार फिर सुर्खियां बटोर रहा है, कर्नाटक और महाराष्ट्र के नेताओं के बीत इसके स्वामित्व को लेकर जुबानी जंग तेज हो गई है।

बेलगावी जनसंख्या के हिसाब से कर्नाटक का दूसरा सबसे बड़ा जिला है। जिले में लगभग 60 प्रतिशत आबादी मराठीभाषी है, जबकि बाकी 40 फीसदी कन्नड़ हैं।

मूल रूप से बेलगाम के रूप में जाना जाने वाला मराठी-बहुसंख्यक जिला, जो ब्रिटिश काल के दौरान बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था, 1956 में कर्नाटक का हिस्सा बन गया, जब स्वतंत्र भारत में पहली बार भाषाई राज्यों का गठन किया गया था। अब महाराष्ट्र करवार, निप्पनी और लगभग 800 गांवों के अलावा बेलगाम की वापसी की मांग कर रहा है- कुल 7,000 एकड़ कर्नाटक क्षेत्र इस आधार पर कि वह मराठीभाषी क्षेत्र हैं, दूसरी तरफ इस दावे को कर्नाटक खारिज कर देता है।

सन् 1966 में केंद्र सरकार द्वारा स्थापित महाजन आयोग ने फैसला सुनाया कि बेलागवी और 247 गांवों को कर्नाटक में रखा जाए। जाहिर है, महाराष्ट्र ने रिपोर्ट को खारिज कर दिया, जबकि कर्नाटक ने इसका स्वागत किया। रिपोर्ट पर अमल होना बाकी है।

महाराष्ट्र एकीकरण समिति (एमईएस), जिसने कई वर्षो तक महाराष्ट्र में मराठी-बहुल क्षेत्रों के विलय के लिए अभियान चलाया, इस क्षेत्र में उनका दबदबा भी रहा है। एमईएस के उम्मीदवार कई निर्वाचन क्षेत्रों से कर्नाटक विधानसभा के लिए नियमित रूप से विधानसभा चुनाव जीतते रहे हैं।

एमईएस ने बेलगावी नगरपालिका को भी नियंत्रित किया। हालांकि, पिछले कई वर्षो में इसने अपना दबदबा खो दिया है और भाजपा ने बाजी मार ली है। 2007 में महाराष्ट्र ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जहां मामला लंबित है। इस बीच, कर्नाटक ने 2012 में बेलगावी में एक नए विधानसभा भवन का निर्माण किया और हर साल यहां विधानसभा का शीतकालीन सत्र आयोजित किया जाता है।

इस क्षेत्र में अक्सर कन्नड़ और मराठी कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष देखा जाता है। हालांकि, इस बार मामला थोड़ा ज्यादा ही बढ़ गया है, क्योंकि कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बीच वाक युद्ध छिड़ा हुआ है, और खास बात यह है कि दोनों भाजपा से हैं। इस समय दोनों राज्यों में भाजपा सत्ता में है। कर्नाटक में यह सत्तारूढ़ दल है और महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में एक वरिष्ठ भागीदार है। पार्टी बेलागवी नगर निगम पर भी शासन कर रही है।

नवंबर के तीसरे सप्ताह में यह मुद्दा फिर से भड़क गया, जब महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने दावों को पुख्ता करने के साथ-साथ केंद्र सरकार के साथ पैरवी करने के प्रयासों को फिर से शुरू किया। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने भी विवादित क्षेत्र में लोगों के लिए कई सामाजिक लाभ योजनाओं का विस्तार किया। महाराष्ट्र सरकार के कदमों पर प्रतिक्रिया देते हुए बोम्मई ने घोषणा की कि उनकी सरकार सर्वोच्च न्यायालय में लड़ाई के लिए तैयार है।

बोम्मई ने दोहराते हुए घोषणा की, "हमारी एक इंच भी जमीन छोड़ने का सवाल नहीं है, क्योंकि महाजन रिपोर्ट बहुत स्पष्ट है और इसे लागू किया जाना चाहिए। जैसे को तैसा कदम में कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने मांग की कि महाराष्ट्र के कन्नड़भाषी क्षेत्रों, जैसे सोलापुर को महाजन रिपोर्ट की सिफारिश के अनुसार कर्नाटक में विलय कर दिया जाए।" उन्होंने आने वाले सप्ताह में इस मामले पर चर्चा के लिए सर्वदलीय बैठक भी बुलाई है।


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