वाह रे प्राधिकरण, वित्तीय बजट से ज्यादा दो बिल्डरों पर बकाया
प्राधिकरण की वित्तीय स्थिति एक दिन में खराब नहीं हुई

नोएडा। प्राधिकरण की वित्तीय स्थिति एक दिन में खराब नहीं हुई। इसको सालो साल लग गए। अब भरपाई के तमाम प्रयास फेल होते दिख रहे है। एक ओर जहां प्राधिकरण ने अपना 2018-19 का सालाना वित्तीय बजट 4 हजार 387 करोड़ रुपए का पास किया।
वहीं महज दो बिल्डरों का बकाया ही 7200 करोड़ रुपए है। यह बिल्डर आम्रपाली व यूनीटेक है। इसके अलावा थ्री सी व ऐसे करीब एक दर्जन से ज्यादा बिल्डर है। जिनको मिलाकर प्राधिकरण का करीब 20 हजार करोड़ रुपए बकाया है। इसका सीधा असर बायर्स पर दिख रहा है। प्राधिकरण बकाया रकम जमा नहीं होने पर बिल्डर को कंपलीशन नहीं दे रहा। वहीं, बिल्डर कंगाली का हवाला दिए जा रहे है। जबकि उन्होंने बायर्स का 95 प्रतिशत तक की रकम पहले ही वसूल कर चुके है।
प्राधिकरण ने कुल आवंटन दर का 10 प्रतिशत रकम जमा कर बिल्डरों को भूखंड आवंटित कर दिए। बाकी रकम के लिए किस्ते बांध दी गई। कुछ किस्ते देने के बाद बिल्डरों ने रकम जमा करना बंद कर दिया। इसके बाद ब्याज बढ़ता चला गया। प्राधिकरण सिर्फ नोटिस जारी करता रहा। बायर्स शिकायत करते रहे लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी। वर्तमान में बिल्डरों पर प्राधिकरण का 20 हजार करोड़ रुपए का बकाया हो गया। इसे वापस करने के लिए बिल्डरों पर दवाब बनाया जा रहा है लेकिन बिल्डर कंगाली का हवाला दे रहे है। आम्रपाली के कुल सात परियोजना है। सातों का काम बंद है।
प्राधिकरण का 1200 करोड़ रुपए बकाया है। यही हाल यूनीटेक का है। उसके तीन सेक्टरों में परियोजनाएं ठप हो चुकी है। यूनीटेक का प्राधिकरण पर करीब 6000 करोड़ रुपए बकाया है। सवाल यह है कि इन बिल्डरों ने अपने बायर्स को लुभावने ऑफर दिखाकर फ्लैटों की लागत का 90 से 95 प्रतिशत तक पैसा ले चुके है। अब वह अदालतों के चक्कर काट रहे है।
शासन निर्देश के तहत एक एजेंसी द्वारा बिल्डरों का वित्तीय ऑडिट कराया गया। जिसमे 15 बिल्डरों के वित्तीय प्रस्तुतीकरण किया गया। इसमे करोड़ों रुपए के गड़बड़ की जानकारी मिली। यह पैसा बायर्स से एक परियोजना के लिए गया। लेकिन इसे दूसरे अन्य परियोजना में लगा दिया गया। इसको लेकर प्राधिकरण बिल्डरों पर सख्त कार्यवाही करने के मूड में है। वहीं, 12 अन्य बिल्डरों का प्रस्तुतीकरण मई के दूसरे सप्ताह में किया जाएगा।
हालांकि बायर्स की मांग हमेश से फोरेंसिक वित्तीय अडिट की रही। प्राधिकरण अधिकारियों की माने तो फारेंसिक ऑडिट कराने में काफी लंबा समय लग जाएगा। हमे शासन से आदेश है कि बिल्डरों की समस्या को प्राथमिकता से देखा जाए। लिहाजा वित्तीय अडिट ही कराया गया।
कंपलीशन देने में आ रही दिक्कत
प्राधिकरण अधिकारियों ने बताया कि शासनादेश के तहत मार्च के अंत तक प्राधिकरण को 12500 फ्लैटों के कंपलीशन जारी करना था। जबकि प्राधिकरण ने गत वित्तीय वर्ष में कुल 14 हजार फ्लैटों का ही कंपलीशन दे सकी। इसमे समस्या बिल्डरों द्वारा बकाया जमा नहीं करना है।
जबकि प्राधिकरण ने बिल्डरों को टावर वाइस कंपलीशन लेने के लिए भी ऑफर दिया था। बावजूद इसके एकाउंट सेक्शन में आवेदन तो है लेकिन बिल्डरों ने बकाया जमा नहीं हो सका। लिहाजा हजारों की संख्या में फ्लैटों के लिए आवेदन अटके पड़े है। अधिकारियों की माने तो बिल्डर यदि सभी दस्तावेजों के साथ प्राधिकरण आए तो एक सप्ताह में ही उन्हें कंपलीशन जारी किया जा रहा है।


