विश्व गुरु करते कुछ नहीं बस विश्व गुरु हैं!
दिल्ली केन्द्र शासित प्रदेश है। राज्य सरकार किसी की हो केन्द्र सरकार अपने उप राज्यपाल के माध्यम से चलाती है

- शकील अख्तर
दिल्ली केन्द्र शासित प्रदेश है। राज्य सरकार किसी की हो केन्द्र सरकार अपने उप राज्यपाल के माध्यम से चलाती है और जिस लूटियन जोन में मंत्रियों और सांसदों के बंगलों में पानी भरने के फोटो हैं वह इलाका नई दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (एनडीएमसी) के अन्तर्गत आता है। और एनडीएमसी पूरी तरह केन्द्र सरकार के आधीन होती है। दिल्ली में सर्दियों में प्रदूषण हो तो डेढ़ करोड़ लोग प्रभावित होते हैं। विदेशी दूतावासों सहित।
हम तो देश के एंगल से बात करते हैं। मोदी जी ने दस साल गंवा दिए। न नेहरू और इन्दिरा गांधी की तरह बड़े-बड़े काम किए। देश के नवनिर्माण के। और न ही वह अन्य काम जो आसान थे। केवल हिन्दू-मुसलमान किया मगर उससे क्या हुआ?
देश ने कौन सी तरक्की कर ली। लोगों को रोजगार मिल गए। महंगाई कम हो गई। और हिन्दू-मुसलमान क्या नफरत और विभाजन की राजनीति का अंत है? नहीं यह तो शुरूआत थी। बात उसके बाद दलित आदिवासी और ओबीसी तक आ गई है। धर्म के बाद जातियों में और फिर प्रदेशों में हर जगह नफरत और विभाजन फैल गया है।
क्रिकेट जो भारत को जोड़ता था उस तक में पहुंच गया। भारत टी-20 का वर्ल्ड कप जीता। पूरा देश खुशी से पागल हो गया। मगर जो पहले से पागल थे इसमें जाति और प्रदेश ढूंढने लगे। सूर्यकुमार यादव ने एक बहुत मुश्किल कैच पकड़ा। ठीक बाउन्ड्री पर। क्रिकेट खेले लोग जानते हैं उस गति में एक साथ दो काम करना कैच पकड़ना भी और पांव को बाउन्ड्री लाइन से बाहर जाने देने से रोकना कठिन प्रक्रिया होती है। करने से नहीं होती अपने आप जो अच्छा खिलाड़ी होता है उससे होती है। हो जाती है।
यादव ने वर्ल्ड कप जीता दिया। हेडिंग यही थी। मगर नफरत की राजनीति ने इन दिनों यादवों को निशाने पर रख लिया है। इसलिए कहा जाने लगा कि पंड्या के ओवर ने मैच जिताया। पंड्या गुजरात का है इसलिए उसे और समर्थन मिला। अच्छी बात है। सबके योगदान की चर्चा होना चाहिए। मगर सूर्यकुमार यादव ने मैच छीन लिया। असली हीरो वही है और पूरी भारतीय टीम।
1983 में भारत ने पहला वर्ल्ड कप जीता था। कपिल देव ने भी ऐसा ही अविस्मरणीय कैच लिया था। पूरी टीम की जय जयकार हुई थी। इन्दिरा गांधी का जमाना था। मगर किसी ने इन्दिरा गांधी को श्रेय नहीं दिया। इन्दिरा जी के तो लेने का सवाल ही नहीं। उन्होंने तो कभी भारत के पहले परमाणु परीक्षण, अंतरिक्ष में भारतीय यात्री राकेश शर्मा के जाने, बांग्ला देश बनाकर दुनिया का भुगोल बदलने, हरित क्रान्ति करके देश के गोदाम अनाज से भरने, राजा रानी के प्रिवीपर्स प्रिवलेज खत्म करके देश के आम आदमी को उनके बराबर खड़ा करने, बैंकों को राष्ट्रीयकरण करके उन्हें गरीबों के लिए खोलने और ऐसे ही जाने कितने बड़े-बड़े काम करने का भी कभी श्रेय नहीं लिया।
मुझे ईश्वर ने भेजा है इन कामों को करने के लिए या संसद में छाती ठोककर सब पर भारी जैसे बड़बोलेपन का तो सवाल ही नहीं उठता इसीलिए जब 1983 में भारत ने वर्ल्ड कप जीता तो देश में कहीं जाति, धर्म, प्रदेश की बात ही नहीं थी। नफरत फैलाई ही नहीं गई थी तो नफरत विभाजन की बात कोई कैसे करता? समकालीन परिस्थितियों से ही आदमी बनता है तो कपिल उस समय की मिलीजुली संस्कृति प्रेम, सद्भाव से निकले खिलाड़ी थे। कप लाने के बाद इन्दिरा जी जब उनसे मिलीं तो दोनों एक दूसरे को थैंक्यू कह रहे थे।
प्रधानमंत्री कहीं से नहीं लग रहीं थी कि वे इन खिलाड़ियों से बड़ी हैं। आज तो ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि मोदी जी की वजह से टीम जीत गई। यह नफरत और विभाजन के साथ अहंकार की राजनीति भी है। इन सबसे बचना एक बड़े नेता का काम होता है। तभी वह देश के लिए कुछ कर पाता है। नेहरू और इन्दिरा गांधी ने ऐसे ही किया था।
मगर जैसे कि हमने शुरू में लिखा कि बड़े काम तो छोड़िए दूसरे काम जो वे आसानी से कर सकते थे वह भी नहीं किए। इन दूसरे कामों में हमें हमेशा याद आता है 2 अक्टूबर 2014 को शुरू किया मोदी जी का स्वच्छता अभियान। हमने उसी दिन लिखा था इस पर। कुछ संदेहों के साथ मगर फिर भी आशावाद के साथ कि अगर मोदी जी ने इसे प्रतीकात्मकता तक ही सीमित नहीं रखा तो भारत बदल जाएगा। एक साफ सुथरा आगे बढ़ता हुआ भारत होगा। मगर हमारी राजनीतिक समझ सही निकली। हम चाहते थे कि मोदी जी उसको गलत साबित कर दें। मगर नहीं किया। जो भाजपा की राजनीति है टोकनिज्म की प्रतीकात्मकता की वही किया। झाडू के साथ नए-नए पोज, कूड़ा उठाने का अभिनय और नतीजा गदंगी और बढ़ती चली गई।
जी हां प्रतीकात्मक राजनीति का सबसे बड़ा नुकसान यह होता है जितना काम हो रहा है वह भी फिर नहीं होता। सब प्रतीकात्मकता में मतलब दिखावे में उलझ जाते हैं। और उसी को काम भी समझ लेते हैं। जो सामान्य तौर पर हो रहा होता है वह भी कम या बंद हो जाता है। इसका एक बड़ा उदाहरण महिला सुरक्षा है।
2014 में चुनाव ही यह कहकर जीते थे अब नहीं नारी पर वार अबकी बार मोदी सरकार। मगर उसके बाद क्या हुआ? खुद की पार्टी के विधायक सेंगर से लेकर सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह तक ने क्या किया? पीड़ितों का साथ किस ने दिया? उल्टा उन्हें और प्रताड़ित किया गया। मणिपुर जैसी वीभत्स नारी विरोधी घटना के बाद भी मोदी मणिपुर नहीं गए। उल्टे दूसरी जगहों के उदाहरण देने लगे कि वहां भी तो होते हैं। हाथरस दलित लड़की मर गई उसकी लाश तक घर वालों को नहीं दी। उल्टे उसके घर के सामने महीनों घरना प्रदर्शन किए गए। प्रतीकात्मकता इस तरह से मूल समस्या पर से लोगों का ध्यान हटा देती है। और नारे भाषण में उन्हें उलझा देती है।
जब इससे भी काम न चले तो उसने यह नहीं किया वह नहीं किया की तरफ लोगों का ध्यान ले जाते हैं। काम करने के छोटे होते हैं। मगर प्रतीकात्मक राजनीति करने वाले, दोष दूसरों पर डालने वाले वह सामान्य काम भी नहीं करते। उन्हें सबसे आसान लगता है पर निंदा। छिद्रान्वेष।
बरसात हर साल होती है। जलभराव की समस्या भी। मगर इस तरह की तुलनाएं कोई नहीं करता। जैसी अब देख रहे हैं। हरिद्वार से लेकर देश में कई जगह गाड़ियां डूब रही हैं। मगर मीडिया भक्त कह रहे हैं दिल्ली का हाल देखो। दिल्ली का हाल बुरा है। मगर उसका पूरा दोष केजरीवाल पर रखना और बुरा।
दिल्ली केन्द्र शासित प्रदेश है। राज्य सरकार किसी की हो केन्द्र सरकार अपने उप राज्यपाल के माध्यम से चलाती है और जिस लूटियन जोन में मंत्रियों और सांसदों के बंगलों में पानी भरने के फोटो हैं वह इलाका नई दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (एनडीएमसी) के अन्तर्गत आता है। और एनडीएमसी पूरी तरह केन्द्र सरकार के आधीन होती है।
दिल्ली में सर्दियों में प्रदूषण हो तो डेढ़ करोड़ लोग प्रभावित होते हैं। विदेशी दूतावासों सहित। मगर इसका हल करने के बदले केजरीवाल पर तोहमतें लगाना शुरू हो जाता है। अरे केजरीवाल भी आपका ही था। संघ भाजपा केजरीवाल सब ने मिलकर एक नकली आंदोलन किया था। एक मुखौटे अन्ना हजारे को सामने रखकर।
इतने ताकतवर प्रधानमंत्री जिनके बारे में मीडिया और भक्तों के साथ भाजपा के मंत्री नेता भी कहते हैं कि उन्होंने रुस युक्रेन युद्ध रुकवा दिया था। और यह तो खुद मोदी जी ने कहा कि उन्होंने रमजान में गाजा में युद्ध रुकवा दिया। उन्होंने जल निकास, दिल्ली का प्रदूषण और जिस का सबसे पहले जिक्र किया सफाई, नारी सुरक्षा जैसे काम नहीं किए। पेपर लीक तक पर बात नहीं की। नीट के पेपर लीक ने देश के स्टूडेंटों को सबसे बड़ा सदमा पहुंचाया है। इस किशोर और युवा उम्र में उन्हें संदेश गया कि देश में मेहनत और ईमानदारी से कुछ नहीं होता है। नेहरु, इन्दिरा, राजीव गांधी छात्र युवा में उत्साह भरते थे। ये छात्र युवा को निराश हताश कर रहे हैं।
कोई काम नहीं। न छोटे न बड़े। केवल बातें। पचास साल पुरानी इमरजेन्सी उससे पहले 75 साल पहले नेहरू प्रधानमंत्री कैसे बन गए। और पहले मुगल काल की अकबर ने यह यह नहीं किया। शाहजहां ने ताजमहल क्यों बनवाया? गए तो यह त्रेता युग में भी हैं कि राम को हम लाए। मगर बस दस साल में क्या किया इसी पर नहीं आते हैं। खुद को विश्व गुरु कह देते हैं। बस सब मान जाते हैं। मगर विश्व गुरु करते क्या हैं? क्या किया यह कोई नहीं पूछता?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


