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कोविड-19 के दौरान वर्चुअल व खुले कोर्ट का सिस्टम विरोधाभासी नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सर्वोउच्च न्यायालय ने कहा है कि पारंपरिक खुली अदालत प्रणाली और नए जमाने की वर्चुअल कोर्ट प्रणाली एक-दूसरे की विरोधाभासी नहीं है

कोविड-19 के दौरान वर्चुअल व खुले कोर्ट का सिस्टम विरोधाभासी नहीं : सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्ली। सर्वोउच्च न्यायालय ने कहा है कि पारंपरिक खुली अदालत प्रणाली और नए जमाने की वर्चुअल कोर्ट प्रणाली एक-दूसरे की विरोधाभासी नहीं है, वो भी खासकर कोविड-19 महामारी के इस दौर में। मामलों की सुनवाई की मौजूदा प्रथा का बचाव करते हुए मामलों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ले जाने को लेकर दिए गए एक बयान में, शीर्ष अदालत ने कहा कि पारंपरिक खुली अदालत प्रणाली और नए युग की आभासी अदालत प्रणाली एक-दूसरे की विरोधी नहीं हैं।

अदालत ने कहा, "इसके विपरीत, दोनों प्रणालियां निश्चित रूप से सह-अस्तित्व में हो सकती हैं, बल्कि मौजूदा परिस्थितियों में यह गुणात्मक रूप से न्याय प्रदान कर सकती हैं।"

शीर्ष अदालत ने संस्थागत आवश्यकता पर जोर देते हुए यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि इस अभूतपूर्व परि²श्य के सामने न्याय का प्रशासन चरमरा नहीं सकता। हाल ही में, मामलों को लेने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्रणाली की आलोचना हुई है, क्योंकि यह खुली अदालतों की अवधारणा का पालन नहीं करता है।

अदालत अभी अत्यंत आवश्यक मामलों पर ही सुनवाई कर रही है। शीर्ष अदालत ने लॉकडाउन के दौरान अपने प्रदर्शन का समर्थन करते हुए कहा कि 1 मई से पहले 22 दिन तक सुनवाई की, जिसमें 116 बेंचों को इकट्ठा किया गया। इसमें रिव्यू पिटीशन के 73 बेंच शामिल थे। शीर्ष अदालत ने कहा कि इनमें 297 कनेक्टेड मामलों के अलावा 538 मामलों को उठाया गया।

इस दौरान वकीलों ने कई मुद्दों को लेकर शिकायत की।

अपने 38-पृष्ठ के बयान में शीर्ष अदालत ने कहा, "वर्तमान महामारी के तहत परिस्थितियों को देखते हुए, आभासी न्यायालयों की प्रणाली को न्याय के प्रशासन के लिए पवित्रता के सिद्धांतों की अवहेलना नहीं कहा जा सकता है और न ही यह 'ओपन कोर्ट' प्रणाली की आवश्यकताओं का पालन करने में विफल है।"

शीर्ष अदालत ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे कई विकसित देशों ने पहले ही आभासी अदालत की प्रणाली अपना ली है लेकिन आउटपुट के मामले में भारत उनसे आगे है।

ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट ने 5 फरवरी से 29 अप्रैल तक 18 मामलों का फैसला किया। बयान में कहा गया कि अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट ने 24 फरवरी से 27 अप्रैल के बीच 28 मामलों का फैसला किया।


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