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बुंदेलखंड का एक गांव, जहां नहीं होता है होलिका दहन

बुंदेलखंड के सागर जिले का हथखोह एक ऐसा गांव है, जहां होली का जिक्र आते ही लोग डर जाते हैं, क्योंकि एक किवदंती उन्हें याद आ जाती है

बुंदेलखंड का एक गांव, जहां नहीं होता है होलिका दहन
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सागर। देश के लगभग हर हिस्से में होली जलाई जा रही है, मगर बुंदेलखंड के सागर जिले का हथखोह एक ऐसा गांव है, जहां होली का जिक्र आते ही लोग डर जाते हैं, क्योंकि एक किवदंती उन्हें याद आ जाती है। वे होलिका का दहन ही नहीं करते। यहां होली की रात आम रातों की तरह होती है।

सागर जिले के देवरी विकासखंड के हथखोह गांव में होलिका दहन को लेकर न तो उत्साह है और न ही किसी तरह की उमंग। गांव के सरपंच वीर भान बताते हैं, "किवदंती है कि दशकों पहले गांव में होलिका दहन के दौरान कई झोपड़ियों में आग लग गई थी। तब गांव के लोगों ने झारखंडन देवी की आराधना की और आग बुझ गई।"

स्थानीय लोग मानते हैं कि यह आग देवी की कृपा से बुझी थी, लिहाजा होलिका का दहन नहीं किया जाना चाहिए। यही कारण है कि कई पीढ़ियों से उनके यहां होलिका दहन नहीं होता है।

गांव के बुजुर्ग धनु सेन बताते हैं कि उनकी उम्र 85 वर्ष हो गई है, मगर उन्होंने गांव में कभी भी होलिका दहन नहीं देखा। उन्होंने कहा, "लेागों को लगता है कि होली जलाने से झारखंडन माता कहीं फिर नाराज न हो जाएं, इसलिए होलिका दहन नहीं किया जाता है।"

वह आगे बताते हैं, "होलिका दहन भले नहीं होता, मगर यहां के लोग होली खूब खेलते हैं।

झारखंडन माता मंदिर के पुजारी बलराम ठाकुर बताते हैं, "गांव के लोगों के बीच यह चर्चा है कि देवी ने साक्षात दर्शन दिए थे और लोगों से होली न जलाने को कहा था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। दशकों पहले यहां होली जलाई गई थी, तब बड़ी संख्या में मकान जल गए थे, और लोगों ने जब झारखंडन देवी की आराधन की, तब आग नियंत्रित हुई थी।"

ठाकुर कहते हैं, "यहां के लोगों की आराध्य हैं झारखंडन देवी। यहां लोग अपनी मन्नत पूरी करने विविध धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। लोगों की मनोकामना भी देवी के आशीर्वाद से पूरी होती है। लोग अपने बच्चों का मुंडन कराने भी आते हैं।"


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