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गांव की अम्मा

अंबिका प्रसाद के स्वर्ग सिधारते ही सरस्वती किसके पास रहेगी यह एक विकट समस्या दोनों बेटों के समक्ष आ गई थी

गांव की अम्मा
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- राजेन्द्र कुमार सिंह

अंबिका प्रसाद के स्वर्ग सिधारते ही सरस्वती किसके पास रहेगी यह एक विकट समस्या दोनों बेटों के समक्ष आ गई थी। मां को कौन रखेगा। दोनों बेटों के बीच एक अंतर्द्वंद्व सा चल रहा था। लेकिन निर्णय अभी तक नहीं हो पाया था।

इसी सोचने समझने और निर्णय लेने में श्राद्ध तक का समय निकल गया। लेकिन अभी तक कुछ प्रतिफल निकल नहीं पाया।
सरस्वती अपने दोनों बेटों के मनोभाव को भली-भांति भांप कर अपना निर्णय सुनाकर दोनों के आंतरिक द्वंद्व युद्ध को समाप्त करते हुए बोली-'मुझे कहीं नहीं जाना है।मैं यही रहूंगी जब तक शरीर चल रहा है। मैं किसी पर अवलंबित नहीं होऊंगी।'

जबकि मोहल्ले के लोग यही कह रहे थे-'अब इस परिवार का नाता इस गांव से सदा-सदा के लिए टूट जाएगा।बेटे तो यहां पर आने वाले नहीं और मां जाएगी तो फिर उसका लौटना किसी मायने में संभव नहीं। अब गांव में उसका है ही कौन। जमीन के सिवाय। किंतु जब सबने सुना कि सरस्वती यही गांव में रहेगी तो चेहरों पर खुशियां तैर गई।
अगले दिन बड़ा बेटा अपने परिवार सहित जाने की तैयारी में लग गया।किंतु एक बार भी नहीं कहा कि मां चलो मेरे साथ। बड़े का देखा-देखी कुछ ऐसा ही छोटे ने भी किया।

बेटों के बेरुखे व्यवहार से सरस्वती का मन भीतर से टूट कर खंड-खंड हो गया। जिनके लालन-पालन में अपने तन के जेवर तक बेच दिए उनका ऐसा व्यवहार? दो बेटों के बीच एक मां बोझ बनकर रह गई।

बेटों को विदा होते ही सरस्वती ने अपनी सारी जमीन गांव में स्कूल बनाने के लिए दान कर दी। क्योंकि गांव में एक भी स्कूल नहीं था। तो क्यों न इस अंचल संपत्ति को नेक कार्यो में लगाया जाए।

सरस्वती की बातें सुन गांव वालों ने जी-जान से इस कार्यक्रम को पराकाष्ठा पर पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई।
अब वह दो बेटों की नहीं पूरे गांव की अम्मा है।


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