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योडलिंग यानि आवाज में उतार चढ़ाव लाने में इंसानों से बेहतर क्यों हैं बंदर

किशोर कुमार के गानों के मुरीद आवाज में उतार-चढ़ाव लाने की उनकी कला को पहचानते हैं. इसे यॉडलिंग कहा जाता है. हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसान कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें, वो बंदरों से बेहतर यॉडलिंग नहीं कर सकते

योडलिंग यानि आवाज में उतार चढ़ाव लाने में इंसानों से बेहतर क्यों हैं बंदर
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किशोर कुमार के गानों के मुरीद आवाज में उतार-चढ़ाव लाने की उनकी कला को पहचानते हैं. इसे यॉडलिंग कहा जाता है. हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसान कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें, वो बंदरों से बेहतर यॉडलिंग नहीं कर सकते.

वैज्ञानिकों ने पाया है कि योडलिंग यानी आवाज में उतार-चढ़ाव लाने के मामले में बंदर हमेशा इंसानों से बेहतर रहेंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि बंदरों के स्वर यंत्र यानी वॉयस बॉक्स में एक 'चीप ट्रिक' छिपी है.

बंदर जब जोर से चीखते हैं और योडल करने वाले जब यॉडल करते हैं तो वो ध्वनि की नीची और ऊंची फ्रीक्वेंसी के बीच तेजी से आगे-पीछे करते हैं. इसके उलट ओपेरा गायकों को एक नोट से दूसरे नोट तक सावधानी से जाने पर नियंत्रण करना सिखाया जाता है.

दोनों के वॉयस बॉक्स में क्या है अंतर

लेकिन बंदर और योडल करने वाले इंसान आवाज में अचानक बड़ी छलांगें लगाते हैं. इसकी वजह से आवाज टूट जाती है और आवाज टार्जन की चीख जैसी सुनाई देती है. अब इंसानों और बंदरों में फर्क यह है कि योडलिंग करते समय इंसान ज्यादा से एक ऑक्टेव की छलांग लगा सकते हैं, जिससे फ्रीक्वेंसी दोगुनी हो जाती है.

लेकिन एक नए अध्ययन के मुताबिक बंदर एक बार में साढ़े तीन ऑक्टेव की छलांग लगा सकते हैं. अध्ययन के वरिष्ठ लेखक जेकब डून ने बताया कि बंदरों के स्वरयंत्र में एक 'चीप ट्रिक' होती है जिसकी वजह से वो इस मामले में हमेशा इंसानों से आगे रहेंगे. डून ब्रिटेन की एंग्लिया रस्किन यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं.

कहां गई इंसान की पूंछ

इंसानों और बंदरों दोनों के स्वरयंत्रों में एक जोड़ी वोकल फोल्ड होते हैं जिनके कंपन से ध्वनि पैदा होती है. लेकिन नया अध्ययन करने वाली रिसर्चरों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने पता लगाया है कि बंदरों के पास झिल्लियों की एक अतिरिक्त जोड़ी होती है, जिसकी बदौलत उन्हें इंसानों से कहीं ज्यादा बड़ी पिच रेंज मिल जाती है.

माना जा रहा है कि इसकी वजह से बंदरों का एक दूसरे से बातचीत करने का तरीका ज्यादा पेचीदा होता है. डून ने बताया कि ऐसा लग रहा है कि सभी प्राइमेट जीवों में यह खास टिश्यू होता है. यहां तक कि इंसानों के प्राचीन पूर्वजों में भी यह टिश्यू था.

उन्होंने आगे बताया कि ऐसा लगता है कि अपने क्रम विकास की यात्रा में किसी पड़ाव पर इंसानों ने यह झिल्लियां खो दीं. लेकिन हो सकता है यह इंसानों के लिए फायदेमंद ही रहा हो.

कैसे हुआ यह अध्ययन

डून ने समझाया कि साफ बोलने के लिए इंसानो को एक 'सुव्यवस्थित' स्वरयंत्र चाहिए था और यह झिल्लियां उसमें बाधा बनतीं. उन्होंने आगे कहा कि "अगर आप किसी प्राइमेट के स्वरयंत्र पर एक इंसानी दिमाग लगा देंगे तो वो इन झिल्लियों और वायुकोष जैसी अन्य चीजों की वजह से समझ में आने लायक ढंग से बोल नहीं पाएगा."

इस अध्ययन के लिए रिसर्चरों ने बोलीविया के ला सेंदा वेर्डे वन्यजीव अभयारण्य में कुछ बंदरों के गलों पर सेंसर डाले थे. इससे वो यह देख पाए कि ब्लैक एंड गोल्ड हाउलर बंदरों, टफ्टेड कैपुचिन बंदरों, ब्लैक-कैप्ड स्क्विरल बंदरों और पेरुवीयन स्पाइडर बंदरों के स्वरयंत्र में क्या क्या होता है.

बंदरों की क्लोनिंग से क्या होगा हासिल

डून ने बताया कि स्पाइडर बंदर को सबसे अच्छा योडल करने वाला पाया गया. वो करीब चार ऑक्टेव की छलांग लगा ले रहा था. रिसर्चरों ने मरे हुए बंदरों के स्वरयंत्रों का भी अध्ययन किया और कंप्यूटर मॉडलिंग के जरिए उनकी अलग फ्रीक्वेंसी का विश्लेषण किया.

ये स्टडी 'फिलोसॉफिकल ट्रांजैक्शंस ऑफ द रॉयल सोसाइटी बी' पत्रिका में छपी है.


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