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एक किसान और दिग्गज जर्मन कंपनी के मुकदमे पर दुनिया की नजरें

जर्मनी की एक अदालत में हजारों किलोमीटर दूर से पहुंचे एक किसान के मुकदमे पर सुनवाई हो रही है

एक किसान और दिग्गज जर्मन कंपनी के मुकदमे पर दुनिया की नजरें
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दक्षिण अमेरिकी देश पेरू का एक किसान 10,500 किलोमीटर लंबी यात्रा करके जर्मनी पहुंचा है, वो भी जर्मनी की एक दिग्गज ऊर्जा कंपनी की जबावदेही तय करने.

बर्फ से चमकते सफेद धवल पहाड़ और उन पर इठलाते रुई जैसे बादल. सऊल लुसियानो लुलिया इसी नजारे के साथ बड़े हुए हैं. 8-10 साल की उम्र में लुलिया गाय चराने के लिए कोडिएंरा ब्लांका के पहाड़ों पर जाते थे. तब चरागाह के ऊपर हिमाच्छादित पर्वत और हिम से बने ठोस ग्लेशियर हुआ करते थे. आज ऐसा लगता है जैसे ग्लेशियर की सिर्फ छाती और सिर ही बचे हों. उसका ज्यादातर हिस्सा पिघल चुका है और ग्लेशियर के ठीक नीचे एक बड़ी झील बन चुकी है.

पिघल जाएंगे हिमालय के 75 फीसदी ग्लेशियर: रिपोर्ट

लुलिया का दावा है कि उनके शहर हुआरास पर इसी झील से बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है. समुद्र तल से 4,550 मीटर की ऊंचाई पर बनी ग्लेशियर झील कभी भी फट या छलक सकती है और हुआरास में तबाही ला सकती है. पेरू के इस किसान के मुताबिक, 50,000 लोग बाढ़ के इस जोखिम तले जी रहे हैं.

जर्मन बिजली कंपनी पर मुकदमा क्यों?

44 साल के लुलिया की मांग है कि जर्मन बिजली कंपनी आरडब्ल्यूई, हुआरास शहर को बाढ़ से बचाने की योजना का कुछ खर्च उठाए. आरडब्ल्यूई, दुनिया में सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाली कंपनियों में शामिल है. लुलिया ने अपने समुदाय की सुरक्षा के लिए कंपनी से 17,000 यूरो की मांग की है. उनका तर्क है कि जर्मन कंपनी बिजली बनाने के लिए जीवाश्म ईंधन इस्तेमाल करती है, जिसके चलते वह भी बाढ़ का जोखिम पैदा करने की आंशिक जिम्मेदार है.

पिछले हफ्ते पेरू की राजधानी लीमा में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए लुलिया ने कहा, "मैं कंपनी से निर्माण लागत के एक हिस्से की जिम्मेदारी लेने की मांग कर रहा हूं."

लूलिया ने पहली बार 2015 में आरडब्ल्यूई के विरुद्ध जर्मन शहर एसेन की अदालत में मुकदमा दायर किया. एसेन में आरडब्ल्यूई का मुख्यालय है. तब अदालत ने लूलिया का मुकदमा खारिज कर दिया. केस को खारिज करते हुए एसेन की अदालत ने कहा कि इस मामले में निश्चित उत्सर्जन और निश्चित नुकसान के बीच संबंध स्थापित करना नामुमकिन है.

जलवायु न्याय बनाम कॉरपोरेट जवाबदेही

एसेन कोर्ट के फैसले के साल भर बाद हाम शहर की उच्च अदालत ने लूलिया की अपील स्वीकार कर ली. कोविड महामारी के चलते सुनवाई में देरी होती रही. अब हाम की अदालत ने 17 मार्च से 19 मार्च तक सुनवाई तय की है. लूलिया खुद इस सुनवाई में मौजूद रहने वाले हैं. इस कानूनी लड़ाई में जर्मनी का एक पर्यावरण एनजीओ, जर्मनवॉच भी पेरू के इस किसान की मदद कर रहा है.

2022 में अदालत द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों की टीम पेरू के अंकाश इलाके का दौरा कर चुकी है. टीम ने वहां सबूत भी जुटाए. सुनवाई के दौरान लुलिया से पूछा जाएगा कि क्या अंकाश इलाके में उनकी संपत्ति पर बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है. यह बात साबित हुई तो अगली सुनवाई में आरडब्ल्यूई की जिम्मेदार पर सवाल उठाए जाएंगे.

लूलिया का दावा 2014 के एक शोध पर टिका हुआ है. उस शोध में दावा किया गया कि ओद्योगिक युग की शुरुआत से अब तक आरडब्ल्यूई 0.47 फीसदी वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है. आरडब्ल्यूई ने पेरू में कभी काम नहीं किया है. 1898 में स्थापित की गई ये कंपनी लंबे समय तक कोयला जलाकर बिजली पैदा करती थी. हालांकि आज आरडब्ल्यूई, सौर, पवन, गैस और कोयले से ऊर्जा की आपूर्ति करती है.

जर्मनवॉच की कानून अधिकारी फ्रांचेस्का माशा क्लाइन कहती हैं, "समय आ गया है कि आरडब्ल्यूई जैसी कंपनियां उस नुकसान की भरपाई के के लिए उचित योगदान दें, जो उनकी मदद से हुआ है."

आरडब्ल्यूई समेत कई कंपनियों की धड़कन तेज

आरडब्ल्यूई का कहना है कि लूलिया के पक्ष में फैसला आया तो इससे जर्मनी के बाहर घटने वाले पर्यावरणीय नतीजों के लिए जर्मन कानून के तहत लोगों को जिम्मेदार ठहराने का चलन शुरू हो जाएगा. कंपनी के प्रवक्ता ने कहा, "हमें लगता है कि ये कानूनन अस्वीकार्य है और इस सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे को देखने का यह गलत तरीका है."

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एक गैरलाभकारी रिसर्च संगठन, जीरो कार्बन एनालिटिक्स के मुताबिक इस वक्त दुनिया भर में क्लाइमेंट डैमेज से जुड़े 43 मामले चल रहे हैं. हाम कोर्ट में आरडब्ल्यूई का प्रतिनिधित्व कानूनी फर्म, फ्रेशफील्ड्स ब्रुकहाउज डेरिंगर कर रही है. लॉ फर्म का कहना है कि, "विवाद की कुल रकम भले ही 20,000 यूरो से कम हो. लेकिन एक परिपाटी तय होने की संभावना काफी साफ है."


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