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गहरे सागर में ऑक्सीजन की खोज पर उठ रहे सवाल

2024 में एक खोज में दावा किया गया था कि धातुओं से बने कुछ पत्थर गहरे सागर में ऑक्सीजन बनाते हैं. लेकिन अब कई वैज्ञानिक इस खोज पर सवाल उठा रहे हैं

गहरे सागर में ऑक्सीजन की खोज पर उठ रहे सवाल
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2024 में एक खोज में दावा किया गया था कि धातुओं से बने कुछ पत्थर गहरे सागर में ऑक्सीजन बनाते हैं. लेकिन अब कई वैज्ञानिक इस खोज पर सवाल उठा रहे हैं.

इस खोज के बारे में विस्तार से जुलाई, 2024 में 'नेचर जियोसाइंस' पत्रिका में बताया गया था. इसने धरती पर जीवन की शुरुआत से जुड़ी पुरानी अधारणाओं पर सवाल उठाया था और गहन वैज्ञानिक बहस को जन्म दिया था.

यह खोज मरीन इकोलॉजिस्ट एंड्रू स्वीटमैन ने मेक्सिको और हवाई के बीच स्थित प्रशांत महासागर के बड़े इलाके 'क्लैरियन क्लिपर्टन जोन' में की थी. खोज के मुताबिक समुद्र की सतह के चार किलोमीटर नीचे सी फ्लोर पर कई धातुओं वाली कुछ गांठें हैं जिनमें मैंग्नीज, निकेल और कोबाल्ट जैसी धातुएं हैं, जिनका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरियों में किया जाता है.

खोज में कहा गया था कि संभव है कि आलू के आकार की यह गांठें बिजली के इतने करंट बना रही हैं जो समुद्री पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में बांट सकती हैं. इस प्रक्रिया को इलेक्ट्रोलिसिस कहा जाता है.

खोज विस्फोटक थी और वैज्ञानिक समुदाय में कई लोगों ने या तो इस पर आपत्ति जताई या नतीजों से सिरे से नकार ही दिया. जुलाई, 2024 से लेकर अभी तक पांच अकैडमिक पेपर समीक्षा और छपने के लिए भेजे जा चुके हैं जिनमें स्वीटमैन की खोज को नकारा गया है.

क्यों है वैज्ञानिकों को संदेह

जर्मनी के जियोमार हेमहोलत्स सेंटर फॉर ओशन रिसर्च में बायोजियोकेमिस्ट माथियास हैकेल, स्वीटमैन के बारे में कहते हैं, "उन्होंने अपने विचारों और अवधारणा का स्पष्ट सबूत पेश नहीं किया."

हैकेल आगे कहते हैं, "शोध के छपने के बाद कई सवाल बचे हुए हैं. अब जरूरत है कि वैज्ञानिक समुदाय इससे मिलते-जुलते प्रयोग करे और या तो इसे सही साबित करे या गलत."

फ्रांस के नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर ओशन साइंस एंड टेक्नोलॉजी 'आईफ्रेमर' में जियोकेमिस्ट्री के शोधकर्ता ओलिवियेर रूहेल ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि "इन नतीजों पर बिल्कुल भी सहमति नहीं है."

उन्होंने बताया कि "गहरे समुद्र से सैंपल लेने में हमेशा चुनौती रहती है". उन्होंने यह भी कहा कि हो सकता है कि जो ऑक्सीजन पाई गई वो मापने के उपकरणों में फंसे "हवा के बुलबुले" हो सकते हैं.

उन्हें इस बात पर भी संदेह है कि गहरे सागर में मिलने वाली लाखों साल पुरानी कुछ गांठें, अभी भी पर्याप्त मात्रा में बिजली के करंट पैदा कर रही हैं, जबकि "बैटरियां में बिजली जल्दी खत्म हो जाती है."

उन्होंने सवाल उठाया, "यह कैसे संभव है कि एक गांठ, जो खुद ही बहुत धीमी गति से बनती है, बिजली का करंट पैदा करने की क्षमता बनाए रख सकती है."

खनन कंपनी से मिली थी फंडिंग

स्वीटमैन की खोज ने इस पुरानी अधारणा पर भी सवाल उठाया कि धरती पर जीवन तब संभव हुआ जब प्राणियों ने फोटोसिंथेसिस के जरिए ऑक्सीजन बनाना शुरू किया. इसके लिए सूरज की रोशनी की जरूरत होती है.

उस समय इस शोध के साथ जारी की गई एक प्रेस रिलीज में स्कॉटिश एसोसिएशन फॉर मरीन साइंस ने कहा था कि यह "खोज जीवन की शुरुआत पर सवाल उठाती है." पर्यावरणविदों ने कहा था कि गहरे समुद्र में ऑक्सीजन की मौजूदगी दिखाती है कि इतनी गहराई में जीवन के बारे में हम कितना कम जानते हैं.

उनका कहना था कि इससे उनकी इस जिरह को बल मिलता है कि गहरे सागर में खनन के अस्वीकार्य इकोलॉजिकल जोखिम हैं. हालांकि स्वीटमैन के दावे के पीछे जो शोध था उसकी आंशिक रूप से फंडिंग कनाडा की एक कंपनी ने की.

'द मेटल्स कंपनी' नाम की यह कंपनी गहरे समुद्र में खनन करती है और वह इस तरह के काम के इकोलॉजिकल असर का मूल्यांकन करना चाहती थी. कंपनी ने भी स्वीटमैन और उनकी टीम के अध्ययन की कड़ी आलोचना की है और कहा है कि इसमें "प्रणाली संबंधी दोष" हैं.

स्वीटमैन ने एएफपी को संकेत दिया कि वो एक औपचारिक प्रतिक्रिया तैयार कर रहे हैं. उनका कहना है कि, "वैज्ञानिक लेखों के मामले में इस तरह का आगे बढ़ना और फिर पीछे जाना काफी सामान्य है और इससे विषय-वस्तु आगे बढ़ती है."


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