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कैदी

दयाल ने गुप्ता से शिकायत की, 'तुमलोगों ने एकदम आना-जाना ही छोड़ दिया

कैदी
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- ज्ञानदेव मुकेश

दयाल ने गुप्ता से शिकायत की, 'तुमलोगों ने एकदम आना-जाना ही छोड़ दिया!'
गुप्ता ने मोबाइल से नजरें हटाकर कहा, 'बहुत व्यस्तता रहती है। समय कहां मिलता है!'
दयाल ने पूछा, 'भाभी जी और बच्चे कहाँ हैं?'
गुप्ता ने बताया, 'अपने-अपने कमरे में।'
दयाल भाभी जी के कमरे में गए। वे भी मोबाइल में खोई हुई थीं। आहट सुनकर उन्होंने दयाल को 'नमस्ते!' कहा। फिर मोबाइल में लौट गईं। दयाल बच्चों के कमरे में गए। वहां भी यही माजरा। दोनों बच्चे मोबाइल लिए मायावी दुनिया से चिपके थे।
दयाल ने कहा, 'बच्चो, नमस्ते!' बच्चों ने मोबाइल से ध्यान हटाकर कहा, 'अंकल, पापा के साथ ही बैठिए। हमलोग मोबाइल पर जरूरी काम निपटा रहे हैं।'
दयाल ने पूछा, 'क्या हमेशा कमरे में ही रहते हो? कभी साथ नहीं बैठते?'
एक ने जवाब दिया, 'समय कहां मिलता है! कभी-कभी खाने पर साथ बैठते हैं।'
दयाल ड्राइंगरूम में वापस गए। उन्होंने गुप्ता से कहा, 'यार, मैं अपनी शिकायत वापस ले रहा हूँ।'
गुप्ता ने हैरानी से पूछा, 'अचानक ऐसा क्या हो गया?'
दयाल ने पूछा, 'क्या तुमने कभी किसी कैदी को अपने सजा काल में किसी के घर जाते देखा है?'
गुप्ता जी ने भौंचक होकर कहा, 'नहीं! मगर यह सवाल क्यों?'
दयाल ने हताशा में कहा, 'यहां सभी कैदी हैं, जो आपस में ही नहीं मिलते, तो उनसे मैं अपने घर पर आने की उम्मीद कैसे कर सकता हूँ!'
दयाल तेजी से बाहर निकल सीढ़ियां उतरने लगे।


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