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सौ रुपये

मेरा नाम शफी था लेकिन मैंने मुहम्मद रफी लिखा। मैं टैक्सी वाले का चुकता करने लगा। इतने में किसी ने आ के मेरे शाने पर-जोर से हाथ मारा और कहा: कहो मेरे यार,बड़े टैक्सी में घूम रहे हो आज

सौ रुपये
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- कृष्ण चन्दर

मेरा नाम शफी था लेकिन मैंने मुहम्मद रफी लिखा। मैं टैक्सी वाले का चुकता करने लगा। इतने में किसी ने आ के मेरे शाने पर-जोर से हाथ मारा और कहा: कहो मेरे यार,बड़े टैक्सी में घूम रहे हो आज। मेरा दोस्त इसहाक था। एक खोजे के मकान के एक तंग से कमरे में रहता है लेकिन इस की महबूबा मुहम्मद अली रोड और कराफोर्ड मार्कीट के नाके पर एक अच्छे होटल में रहती है। मैंने देखा है बड़ी ख़ूबसूरत औरत है, बड़े बड़े सेठों के पास जाती है। ये इसहाक इस से पहले उस के पास ड्राइवर था। इसहाक को यह काम पसंद नहीं आया और वो इस से अलग हो गया। वो इस को अपने धरे पर लाना चाहती है और ये उस को अपने तरीके पर रखना चाहता है। दोनों में हमेशा लड़ाई
होती है।

मैंने सौ रुपये का काम किया था। मुझे सौ रुपये मिलने चाहिए इसलिए मैंने सेठ से बात की।
सेठ ने कहा : सोलह तारीख़ को आना।
मैं सोलह तारीख़ को गया।

सेठ वहां नहीं था। इस का बूढ्ढा मैनेजर मुझसे बड़ी शफकत से कहने लगा: तुमने सौ रुपये का काम किया है,तुमको बराबर सौ रुपये मिलेंगे । मगर सेठ यहां पर नहीं है कल आना।

मैंने पूछा:अगर सेठ कल भी यहां नहीं हुआ तो?

मैनेजर बोला: तो मैं इंतिजाम कर रखूँगा,तुम फिक्र ना करो तुम्हारा पैसा तुमको मिल जाएगा।
मुझे गुस्सा आया। मैं हिसाब कर चुका था। मैनेजर उसे दस बार चैक कर चुका था फिर भी कहीं गलती निकल आती है मगर मैं कुछ ना कह सका क्योंकि मैनेजर का लहजा बहुत नरम था। इसलिए मैंने भी नरमी से कहा : मेरा हिसाब तो बहुत साफ है।

इतना कह कर मैंने अपनी ख़ाकी पतलून की जेब से एक मेला पुजार् निकाला और मैनेजर के साथ ग्यारवें दफा तफसीलात चैक करने बैठ गया।
मैनेजर ने कहा : हाँ हिसाब ठीक है, अच्छा कल आना।
दूसरे दिन मैं फिर सेठ के दफ्तर गया।

आज दफ्तर में सेठ मौजूद नहीं था ,मैनेजर भी गायब था।
मैनेजर का अस्सिटैंट चिन्धयाई हुई आँखों से एक सिंगल चाय अपने सामने रखे कुछ सोच रहा था।
आहिस्ता से बोला : तुम यहां बैठ जाओ मैनेजर अभी आता होगा। इस से बात कर लेना।
मैं एक कुर्सी पर साढ़े दस बजे से लेकर पौने दो बजे तक बैठा रहा। मैनेजर आ गया।

मुस्कुराते हुए बोला : तुम्हारा काम हो गया है, मगर चैक मिला है सौ रुपये का और अब पौने दो बज चुके हैं और दो बजे बैंक बंद होता है और बैंक यहां से दो मील दूर है और कल छुट्टी है और परसों इतवार है।

मैंने मायूसी से कहा : हाँ। मैनेजर मुसर्रत से हाथ मिलते हुए बोला। मैंने बेहद रुखाई से कहा : चैक मुझे दे दो।

पाँच मिनट और चैक लेने में गुजर गए क्योंकि चैक पर मेरा नाम गलत लिखा हुआ था मुहम्मद शफी के बजाय मुहम्मद रफी लिखा हुआ था।
चैक लेकर बाहर आया तो दो बजने में पौने दो मिनट थे किसी सूरत पैदल चल के बैंक नहीं पहुंच सकता । सौ रुपये का चैक मेरे हाथ में था मगर अभी कागज का पुरजा था। उसे रूपयो में तबदील करने के लिए बैंक तक पहुंचना जरूरी था। दो बजे से पहले सिर्फ एक ही सूरत हो सकती थी : टैक्सी।

मैंने बैठते हुए कहा। कालबादेवी रोड के नाके पर चलो और जरा तेज चलो। जब कालबादेवी नाके पर पहुंचा तो दो बजने में दो मिनट थे। मगर बैंक कालबादेवी रोड पर नहीं था, गो चैक पर ये लिखा था मगर बैंक कालबादेवी रोड के नाके पर नजर ना आया।

हार कर मैंने एक पंजाबी सुख हारमोनियम बनाने वाले की दुकान में घुस गया। आइए आइए क्या चाहिए आपको?

मैंने कहा : सरदार मुझे बाजा नहीं चाहिए, बैंक का पता चाहिए चैक पर तो लिखा है कालबादेवी रोड और यहां कहीं नहीं मिलता। सरदार जी ने मुस्कुरा कर कहा : बादशाहो! वो बैंक साथ वाली गली में है, इधर से घूम क्रिस्टा बाजार से इस तरफ पुराने चांदी वाले मंदिर के पास।

मैंने सरदारजी का शुक्रिया भी अदा नहीं किया भागा वापिस टैक्सी के पास, जब बैंक पहुंचा तो दो बज कर चार मिनट थे। उसूलन मेरा चैक क्लर्क को नहीं लेना चाहिए था मगर मालूम होता है कि क्लर्क चैक पढ़ने के अलावा चेहरा पढ़ना भी जानता था। उसने ख़ामोशी से चैक मुझसे ले लिया। फिर उल्टा कर के देखा, मुझसे कहने लगा : इस पर दस्तख़त करो।

मेरा नाम शफी था लेकिन मैंने मुहम्मद रफी लिखा। मैं टैक्सी वाले का चुकता करने लगा। इतने में किसी ने आ के मेरे शाने पर-जोर से हाथ मारा और कहा : कहो मेरे यार,बड़े टैक्सी में घूम रहे हो आज। मेरा दोस्त इसहाक था। एक खोजे के मकान के एक तंग से कमरे में रहता है लेकिन इस की महबूबा मुहम्मद अली रोड और कराफोर्ड मार्कीट के नाके पर एक अच्छे होटल में रहती है। मैंने देखा है बड़ी ख़ूबसूरत औरत है, बड़े बड़े सेठों के पास जाती है। ये इसहाक इस से पहले उस के पास ड्राइवर था। इसहाक को यह काम पसंद नहीं आया और वो इस से अलग हो गया। वो इस को अपने धरे पर लाना चाहती है और ये उस को अपने तरीके पर रखना चाहता है। दोनों में हमेशा लड़ाई होती है।

मैंने इसहाक से पूछा : मुझे भूख लगी है, कुछ खाओगे?

वो बोला : हाँ भूखा तो मैं भी हूँ, चलो फीरोजे कबाबीए की दुकान पर। फीरोजे कबाबीए की दुकान से फारिग हो कर इसहाक ने मुझसे दस रुपये उधार लिए और अपने रस्ते पर चला गया। ऐसा दोस्त जो दुनिया में मेरे सिवा किसी से उधार ना ले कहाँ मिलता है ? मुझे इसहाक की दोस्ती पर फख़र है। इस वक्त इसहाक से मिलकर मेरा जी हल्काफुल्का हो गया। जेब में रुपये थे और अभी घर जाने को जी ना चाहता था। इसलिए हॉर्न बी रोड़ पर हो गया।

हॉर्न बी की दुकानें मुझे बहुत पसंद हैं। शाम को घर जाने से पहले मैं अक्सर हॉर्न बी रोड के नुमाइशी दरीचे देखा करता हूँ। मैंने जेब में हाथ डाल कर नए नए करकरे नोटों को थपथपाया और बड़ी शान से ऐवान ऐंड फ्रीजर के दरीचों के सामने आ खड़ा हुआ। आह! किस कदर ख़ूबसूरत कमीज थी। मेरा तो जी मचल गया,मैंने अपनी कमीज के फटे हुए कालर को सहलाया। कमीज के दाम थे सिर्फ तीस रुपये इस से तिगुने रुपये उस वक्त मेरी जेब में थे, मैं कमीज ख़रीद सकता था मगर कुछ और बेहतर देखने की ख़ातिर आगे चला गया।

अगले दरीचे में ख़ूबसूरत साबुन थे, झाग वाले, स्पंज और तौलिए जिन्हें देखकर ख़ुद ब ख़ुद नहाने की ख़ाहिश पैदा होती थी। ये सब मैं ख़रीद सकता था। आगे चलता चलता बहुत सी दुकानें देखता भालता मैं जगदम्बा लाल पायल की दुकान पर पहुंच गया। यहां नुमाइशी दरीचे में कैमरे पड़े थे जिन्हें मैं ख़रीद सकता था। कैमरे ख़रीद के मैं इन फर्नीचरों की तस्वीर ले सकता था जो पुराने थे। मैंने सोचा ये कैमरा लेकर मैं इसहाक के पास जाऊँगा और इस से कहूँगा : चल, आज तेरी और तेरी महबूबा की इक_ी तस्वीर लेंगे। कैमरे के साथ जादू बैन पड़ी थी जिसमें देखने से तस्वीरें बिलकुल अपनी गहराई के साथ नजर आती हैं। बचपन में एक बढ़िया एक बड़ी सी जादू बैन हमारे मुहल्ले में लाया करती थी और हम लोग एक पैसा देकर तमाशा देखते थे। इस जादू बेन को देखकर मेरा दिल-ख़ुशी से काँपने लगा। काउंटर पर मैंने एक नौजवान से पूछा : ये जादू बैन कितने की है? साढ़े पैंतीस रुपये।

नौजवान बड़ी ख़ूबसूरत कमीज पहने था। उसने मेरी तरफ निगाह उठा कर एक ख़ूबसूरत लड़की की तरफ देखा जो अभी अभी दुकान में दाखिल हुई थी। वो उस की तरफ मुतवज्जा हो गया और एक मैले चेहरे वाला, जो गालिबन इसका अस्सिटैंट था, मेरी तरफ आ गया।

मैंने कहा : जादू बैन मुझे दिखाओ। उसने जादू बीन में एक मुदव्वर फीता रखकर मेरे हाथ थमा दिया और मुझसे कहा : इसे घुमाते जाओ, यूं स्विच दबाकर ,नई नई तस्वीरें तुम्हारे सामने आती जाएँगी। मैंने बटन आन किया : टारजन हाथी पर सवार सामने से चला आ रहा था। मैंने बटन दबा दिया। टारजन आबशार में छलांग लगा रहा था। नीचे मगरमच्छ कितने ख़ौफनाक मालूम हो रहे थे, मैंने बटन दबा दिया। फूलों के गजरे ,फूलों के हार और फूलों के लहंगे पहने हुए हवाई जजीरे की लड़कीयां नाच रही थीं। मैंने बटन दबा दिया।

साहिल की रेत पर शराब और फल और बिस्कुट और खाने की चीजें एक शफ़्फाफ तश्तरी में पड़ी थीं और एक औरत रेत पर आँखें बंद किए बैठी थी। इस का मुँह मेरे इस कदर करीब थ कि मैंने जल्दी से बटन दबा दिया।

मैंने कहा : ये जादू बैन तो बहुत अच्छी है ,मेरे बचपन की जादू बैन से हजार दर्जे बेहतर है,कितने में दोगे? वो मुस्कुराए बगैर बोला : साढ़े पैंतीस रुपये की जादू बैन आती है, मुद्दो रंगीन तस्वीरों वाले फतीले एक दर्जन उस के साथ लेना पड़ेंगे। दस रुपये के ये होंगे, सेल्ज टैक्स उस के इलावा पच्चास के ऊपर रकम जाएगी। मैं जब हाथ डाल कर दस दस के नए कर करे नोटों को थपथपाया। आपको यकीन नहीं आएगा।

लेकिन ये बिलकुल सच्च है कि इस से पहले मेरे दिल में जादू बैन के सिवा और कोई तस्वीर ना थी।लेकिन नोटों को हाथ लगाने से एक दम मुझे धचका सा लगा और बहुत सी तस्वीरें बटन दबाए बगैर मेरे सामने घूम गईं । एक बच्चा फटी हुई कमीज पहने गली के फर्श पर बैठा है और रो रहा है। मैंने पहचाना मेरा बच्चा था। एक औरत की शलवार का पायँचा दूसरे पायंचे से ऊंचा है। इस की ओढ़नी से इस के सर के उलझे हुए बाल बाहर निकलते हुए नजर आ रहे थे । मैं समझ गया कि एक आदमी दरवाजे पर खड़ा है।

इस की सूरत हर लम्हा बदलती जाती है। इस का गुस्सा हर लम्हा बढ़ता जाता है। कभी ये मालिक मकान का मैनेजर बन जाता है। कभी दूध वाले सेठ का नौकर। कभी बिजली वाली कंपनी का ओहदेदार। कभी पानी वाले दफ्तर का। मैंने बटन दबा दिया : अब मेरे सामने घर के फर्श पर एक ख़ाली तश्तरी पड़ी थी जिस पर एक गिलास औंधा पड़ा हुआ है। नोट मेरी जेब से बाहर निकले, फिर वहीं हाथ रह गए।

ख़ूबसूरत क्लर्क ,ख़ूबसूरत लड़की को कैमरा बेच कर काउंचर पर वापिस आ गया। मैं जल्दी से घूम कर दुकान से वापिस जाने लगा। बाहर जाते-जाते मैं जानता था कि वो क्लर्क मुझ पर हंस रहा है। मैंने अच्छी तरह दाँत पीस लिए,अच्छी तरह जेबों में हाथ डाल कर नोटों को अपनी गिरिफत में ले लिया और नुमाइशी दरीचों से निगाह उठा कर सीधा बोरी बंदर की तरफ चलने लगा। चलते चलते महसूस हुआ कि जैसे किसी ने मुझसे शदीद धोका किया है,किसी ने मुझे सौ रुपये देकर दो सौ छीन लिए हैं। किसी ने जोर से मेरे मुँह पर चपत मारी है।

किसी ने मेरे हर नोट पर लिख दिया है, तुम्हारे लिए नहीं। मेरे कदम भारी होते गए और मैंने महसूस किया कि मेरी मेहनत का हर नोट उदासी की एक लंबी जंजीर है,जिसे मैं ख़ुद अपने हाथों से खींच रहा हूँ। बोरी बंदर पहुंच कर यका-य़क मैंने फैसला किया कि मैं आज गाड़ी से अपने घर वापिस नहीं जा सकता। आज पैदल ही बोरी बंदर से साईन जाऊँगा। बहुत रात गए मैं थका मांदा अपने घर लौटा। मेरी बीवी मुतफक्किर थी और मेरा इंतिजार कर रही थी लेकिन जब उसने नोट देखे तो ख़ुश हो गई। इसलिए वो मेरी उदासी का मतलब ना समझ सकी। बोली: लेकिन ये क्या बात है, तुम आज ख़ुश होने की बजाय उदास हो? मैंने चारपाई पर बैठते हुए कहा : जान-ए-मन !आज मुझे पता चला है कि ये दुनिया बूढ़ी हो चुकी है और मुझे ऐसी दुनिया चाहिए जो बच्चों की तरह मुस्कुरा सके। वो बोली : मैं नहीं समझी तुम क्या कह रहे हो।

मैंने कहा : जान-ए-मन ! मैं कह रहा हूँ कि अब पुराने फर्नीचर पर वार्निश करने से काम नहीं चलेगा।अब नया फर्नीचर लाना होगा।


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