चलो फिर से शुरू करें
लगातार साहित्य लेखन से जुड़ी सुधा ओम ढींगरा अपने नवीन कहानी संग्रह 'चलो फिर से शुरू करें' के साथ पाठकों के सम्मुख उपस्थित हुई हैं

- सुधा ओम ढींगरा
लगातार साहित्य लेखन से जुड़ी सुधा ओम ढींगरा अपने नवीन कहानी संग्रह 'चलो फिर से शुरू करें' के साथ पाठकों के सम्मुख उपस्थित हुई हैं। लंबे समय से प्रवास में रहने के कारण सुधा जी के साहित्य में प्रवासी भारतीयों को मुखर रूप से देखा जा सकता है। उनसे जुड़े पारिवारिक रिश्तों व अन्य समस्याओं को कहानी के केंद्र में रखकर, भारत व प्रवासी संदर्भों के बीच पुल का काम भी करती है और पाठकों को वहाँ के परिवेश से परिचित भी करवाती है, जिनकी जानकारी हमें यहाँ बैठे नहीं होती।
'वे अजनबी और गाड़ी का सफर' कहानी में एक ऐसे विषय से अवगत करवाती है, जिसे अक्सर फिल्मों व सीरियलों में देखा जाता है। दो भारतीय पत्रकार युवतियों ने एक चीनी युवती को यूरोपीय पुरुष के साथ रेलगाड़ी में जाते देखा परन्तु वह लड़की बहुत तकलीफ में प्रतीत हो रही थी। उन दोनों युवतियों ने किस होशियारी व सर्तकता से उस लड़की को ड्रग माफिया से मुक्त करवाया, वह कहानी पढ़ने से ही पता लगता है। यह कहानी हमें अपने और अमरीकी तंत्र व पत्रकारिता के बीच के अंतर को दर्शाती है। वहाँ एक युवती पत्रकार के एक मैसेज पर सिक्योरिटी ऑफिसज़र् द्वारा 'हयूमन ड्रग बॉम्ब' के तहत उठायी जा रही उस चीनी लड़की को उस पूरे गैंग से मुक्त करवा लिया गया।
अंधविश्वास केवल एशिया व भारत में ही सर्वोपरि नहीं, बाहर के देश भी इसके प्रभाव से मुक्त नहीं। वहाँ भी ग्रामीण क्षेत्र हमारे समान ही पिछड़े हुए, कई प्रकार के दुरावों व पाप-पुण्य के बीच उलझे हुए हैं। इसी कारण जब अगाध सुंदरी ड्यू स्मिथ ने गौरव मुखी को अपने जीवन के काले अतीत के बारे में बताया तो एक बार वह यकीन न कर पाया। उसे यह जानकर अत्यन्त हैरानी हुई कि डयू के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ, जैसाकि किसी भी सुंदर लड़की को जवान होने पर बुरी नीयत और दुष्कर्म से गुज़रना पड़ सकता है परन्तु माँ-बाप ने अपने धर्माधिकारी के चरित्र पर संदेह न किए जाने के अपने रूढ़िवादी और अंधविश्वासी व्यवहार को निभाया। जबकि ड्यू उस दुष्कर्म के कारण एच आई वी वायरस की लपेट में आ गयी। अपनी मेहनत व योग्यता के बल पर वह एक बड़ी कंपनी में उच्च पद पर पहुँच गयी, उसके पास सब कुछ था परन्तु उसकी सुंदर नीली आँखें उदास बेनूर थी, जिसके पीछे का रहस्य आज गौरव को समझ में आया था। इसलिए ड्यू उससे शादी नहीं करना चाहती थी क्योंकि वास्तविक जीवन में ऐसा करना संभव नहीं था। इस बीमारी का इलाज सारी उम्र करना पड़ता है। बाहर के देशों में ऐसी बीमारी के मरीज़ ज़्यादा है परन्तु इसके बाद भी वे जीवन में आगे बढ़ते हैं, समाज उन्हें उस प्रकार से नहीं दुत्कारता, जिस प्रकार का व्यवहार हमारे यहाँ परिवार व समाज द्वारा किया जाता है।
'वह ज़िन्दा है...' कहानी अस्पताल की उस वास्तविकता को दर्शाती है, जिसमें अल्ट्रासाउंड करने वाली नर्स कीमर्ली ने जब एकदम सपाट तरीके से गर्भवती कविता से कह दिया कि 'मिसेज़ सिंह युअर बेबी इज़ डेड।' ऐसा सुनते ही कविता के शरीर की गति वहीं रुक गई। फिर जो हुआ, वह बहुत ही दर्दनाक था। कविता के शरीर के गतिहीन हो जाने से मृत बच्चे को बहुत मुश्किल से उसके शरीर से बाहर निकाला गया। कविता की केवल साँसें से चल रही हैं जबकि वह अपना मानसिक संतुलन खो चुकी है क्योंकि दो बार गर्भपात हो जाने के बाद यह तीसरा मौका ही उसे माँ बना सकता था परन्तु नर्स द्वारा बिना किसी भावनात्मक अंदाज़ के, प्यार या फुसला कर कहने की बजाय सच को पत्थर की तरह उसके दिल पर दे मारा। जिसे कमज़ोर कविता सहन नहीं कर पायी। पति के कार को पार्क करके वापस आने तक के कुछ मिनटों में ही उस दंपत्ति की ज़िदगी उजड़ गयी। अब पति अस्पताल के मैनेजमेंट से मानवता की लड़ाई लड़ रहा है । उसका तर्क बस इतना ही है कि 'वह सच बोलने के खिलाफ नहीं पर सच को बोला कैसे जाए!' यह बात विदेशियों को हमसे सीखने की आवश्यकता है। अच्छी बात, अच्छी सलाह जहाँ से भी मिले, उसे सीख लेने में कोई बुराई नहीं। इससे आगे बढ़ने में मदद मिलती है।
'भूल-भुलैया' भी कुछ इसी प्रकार के अंतर को बयान करती है। भारतीयों के वाट्सएप ग्रुपों में लगातार इस प्रकार संदेश आ रहे थे कि एशियाई लोगों को अकेले-दुकेले देख कर, अगवा कर लिया जाता है और उन्हें मॉल्स के बड़े ट्रकों में उठा ले जाकर, उनके मानवीय अंग निकाल लिए जाते है। इन संदेशों से घबरायी सुरभि ने जॉगिंग करते हुए एक पार्क में उसका पीछा करते एक पुरुष-स्त्री को उसी गैंग का समझ लिया और अपने बचाव के लिए पुलिस को फ़ोन कर दिया। पुलिस ने आकर उसकी गलतफहमी दूर की कि ये सारी अफवाहें हैं और वे स्त्री-पुरुष उसकी सहायता के लिए उसके साथ-साथ आ रहे थे। जिस घटना के कारण ऐसी अफवाहें फैलने लगी, वह एक गलती के कारण घटी और तभी खत्म भी हो गई परन्तु उस एशियन महिला ने बात का बतंगड़ बना कर, अटेंशन लेने के लिए कुछ का कुछ बना दिया। डिज़ीटल मीडिया की सुख-सुविधा ने हमारा जीवन आसान किया है, उस पर बढ़ती निर्भरता हमें बेआराम करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही।
भावनात्मक स्तर की बात करें तो संग्रह की बहुत सारी कहानियों में इसे प्रमुखता से देखा जा सकता है, जिसमें भारतीय पारिवारिक मूल्यों की अधिकता समायी हुई है। 'कभी देर नहीं होती' में ददिहाल के लाडले नंदी को माँ और ननिहाल के प्रभाव में आनंद में बदलना पड़ा। ननिहाल की चालाकी और तेज़-तर्रार भरे व्यवहार के कारण आनंद और उसके छोटे भाई को बचपन से ही दादा-दादी के प्यार व ममत्व भरे माहौल से दूर होना पड़ा। सब कुछ समझने के बावजूद उसके पापा ने मम्मी और ननिहाल के आगे चुप्पी साध ली ताकि बच्चों की परवरिश पर कोई बुरा असर न पड़े। जब इतने वर्षों के बाद अमरीका के एक शहर में रहते हुए उसकी बुआ ने 'नंदी' कह कर पुकारा, तो वह इतने वर्षों के लंबे अंतराल के बाद उसी माहौल व अपनेपन से भर उठा। अंग्रेज़ी के दो शब्द हैं, जो संबंधों के लिए प्रयोग किए जाते हैं 'कनेक्ट' होना और 'रिलेशन' होना। परन्तु हम जानते हैं कि हर शब्द का अपना लहज़ा, टोन व संदर्भ तो होता ही है, उसकी अनुभूति भी अलग होती है। यहाँ कनेक्शन से अर्थ, संस्कारों से, भावनाओं से, अपने मूल से जुड़ा होना है, जिसमें वर्षों की दूरी भी कोई अर्थ नहीं रखती जबकि दूसरी ओर रिलेशनशिप में संबंध तब तक रहेगा, जब तक आप चाहें...! इसलिए रिश्तों में कनेक्शन होना चाहिए, रिलेशनशिप तो आती-जाती चीज़ है।
ऐसा ही कुछ 'चलो फिर से शुरू करें' शीर्षक कहानी में भी देखा जा सकता है। विदेशी महिला से विवाह कर पुत्र माँ-बाप से अलग हो गया। माँ-बाप ने भी उसकी गृहस्थी में दखल देना ठीक न समझ, उससे दूरी बनाना उचित समझा। परन्तु जब उन्हें किसी परिचित द्वारा मालूम हुआ कि मार्था, कुशल को तलाक देकर, बच्चों को उसके पास छोड़ कर चली गई।
इतना ही नहीं, वह उसके नाम पर तीन मिलियन का कज़र् ले, अपनी माँ के साथ चली गयी। यदि कुशल श्वेत अमेरिकन होता तो मार्था बच्चे साथ ले जाती परन्तु भारतीय अमेरिकन पिता के बच्चों को वह कभी स्वीकार नहीं करेगी। ऐसी मुश्किल स्थिति में कुशल को भुला दिए गए माँ-बाप ही याद आए क्योंकि उसे मालूम था कि उसके माँ-बाप ने उसे कभी भुलाया नहीं होगा। इसलिए उसने अपने पिता को फ़ोन किया और उनके पास अपने बच्चों को छोड़ कर, जीवन में एक नयी शुरूआत करने का संकल्प लिया।
कॉलेज जीवन में ऐसे कई मित्र मिलते हैं, जिनसे सारी उम्र का नाता बन जाता है और कई बार ऐसी कुछ घटनाएँ भी घट जाती हैं, जिसकी कड़वाहट जीवन में घुल कर, परिवार को भी बदनाम कर देती है। 'कँटीली झाड़ी' में डिप्टी कमिश्नर की बेटी होने के घमंड में खोयी अनुभा ने कॉलेज में अपना रौब बनाए रखा। परन्तु जब उससे अधिक योग्य और सुंदर नेहा पर उसका यह रौब न चला तो उसने नेहा को बदनाम करने की कोशिश की। यहाँ तक कि शादी के बाद किसी परिचित के घर पर मिलने पर, अनुभा ने फिर से नेहा के ड्राईवर के साथ घर से भाग जाने की बात फैला कर, ससुराल में उसकी बदनामी करनी चाही। तब नेहा ने सभी को उसकी सारी सच्चाई से अवगत करवाया कि यह उसी के साथ घटा था। नेहा को समझ आ गया कि कुछ लोग इतने विषैले व कांटों भरे होते हैं कि उनसे न केवल बच कर रहना चाहिए बल्कि उन्हें उनकी औकात भी बता देनी चाहिए ताकि उनके खतरनाक कारनामों पर लगाम लग सके।
माना जाता है कि सारा ब्रह्यांड एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है, इससे बाहर कुछ भी नहीं। इसलिए प्रकृति में कुछ भी घटने का भास, विशेषकर अप्रिय व दुखद घटने का एहसास संसार के कुछ जीवों को होने लगता है। कुछेक मनुष्यों को ऐसी अनुभूतियों का एहसास होना उनके अपने बूते की बात नहीं होती मगर कभी-कभार ऐसा होता है। ऐसी अनुभूतियों को लेकर दो कहानियाँ इस संग्रह में शामिल है। 'इस पार से उस पार' में सांची को ऐसा कुछ का एहसास अपने बचपन से ही होने लगा। उसने जब अपने परिवार व गली-मुहल्ले में एक-दो घटनाओं के बारे में घटने से पहले ही बता दिया परन्तु उसके परिवार वालों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। बल्कि उसकी इस अनुभूति को हमेशा के लिए दबा देने की कोशिश की। बरसों बाद उसने फिर एक बार अपनी सखी अनुघा को फलां समय पर सड़क पार करने से चेतावनी देकर उसे बचा लिया।
'अबूझ पहेली' नामक कहानी की मुक्ता धीर को 9/11 के हवाई जहाज़ हादसे के दृश्य कुछ दिन पहले से ही नज़र आने लगे थे। उसे बार-बार दिखायी दे रहे इस दृश्य की समझ नहीं आ रही थी। परन्तु उसका तन-मन उदास, क्लांत और निर्जीव महसूस कर रहा था। अपने पति व बेटे को बता देने के बावजूद, उसे स्वयं पर भी यकीन हो रहा था। परन्तु वर्ल्ड ट्रेड सेंटर का हादसा सच में घट गया, उसके पति व बेटे को उसकी बात पर यकीन आ गया । परन्तु इतने बरसों बाद भी मुक्ता स्वयं इस पहेली को बूझ नहीं पायी कि उसे वे दृश्य कुछ दिन पहले कैसे दिखायी देने लगे थे। वास्तव में मनुष्य विज्ञान, मेडिकल, अंतरिक्ष व तकनीकी स्तर पर कितनी भी प्रगति कर लें, प्रकृति और मन के बहुत सारे रहस्यों को समझ पाना अभी भी उसके वश की बात नहीं है। सुधा ओम ढींगरा की सारी ही कहानियाँ उसके शीर्षक 'चलो फिर से शुरू करें' को ही सार्थक करती है। मानवीय जीवन उतार-चढ़ाव का ही नाम है। इसमें हिम्म्त रखकर, डट कर चलने वाले ही जीवन की बहती धारा को पार सकते हैं।


