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किम् आश्चर्यम ? : यक्ष-युधिष्ठिर वार्ता

सभी प्रश्नों का यथोचित उत्तर प्राप्त होने से प्रसन्न यक्ष ने युधिष्ठिर से अगला प्रश्न पूछा -'गणतंत्र दिवस क? अर्थात गणतंत्र दिवस क्या है

किम् आश्चर्यम ? : यक्ष-युधिष्ठिर वार्ता
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- विनोद कुमार

इस राष्ट्रोत्सव के दौरान कर्मचारी, अधिकारी, पदाधिकारी विधि व्यवस्था को लेकर तत्परता दिखाने में जुट जाते हैं। बैठक, विशेष बैठक, आपात बैठक, अनिवार्य बैठक, अपरिहार्य बैठक, शांति समिति की बैठक का एक सत्र समाप्त होता नहीं कि दूसरा सत्र प्रारंभ हो जाता है।

सभी प्रश्नों का यथोचित उत्तर प्राप्त होने से प्रसन्न यक्ष ने युधिष्ठिर से अगला प्रश्न पूछा -'गणतंत्र दिवस क? अर्थात गणतंत्र दिवस क्या है?'
दार्शनिक, तार्किक और वैज्ञानिक प्रकृति वाले प्रश्नों से इतर लोकतांत्रिक प्रश्न सुनकर युधिष्ठिर आश्चर्यचकित हो यक्ष की ओर देखने लगा। लंबी सांस ली, फिर मुस्कुराते हुए बोला- हे यक्षराज ! सवाल जितना लघु है इसके उत्तर की प्रकृति उतनी ही दीर्घ है। बहरहाल, गणतंत्र दिवस का आशय आर्यावर्त भूखंड पर आयोजित होने वाले ऐसे लोकतांत्रिक महोत्सव से है, जो जन, गण और गणमान्य द्वारा विगत सात दशकों से समारोहपूर्वक मनाया जा रहा है। इस राष्ट्रोत्सव के दौरान कर्मचारी, अधिकारी, पदाधिकारी विधि व्यवस्था को लेकर तत्परता दिखाने में जुट जाते हैं। बैठक, विशेष बैठक, आपात बैठक, अनिवार्य बैठक, अपरिहार्य बैठक, शांति समिति की बैठक का एक सत्र समाप्त होता नहीं कि दूसरा सत्र प्रारंभ हो जाता है।मेटा उपभोक्ताओं द्वारा टिकट साइज फोटो और देशभक्ति शायरी से ओतप्रोत तिरंगा व्हाट्सएप्प स्टेटस से फेसबुक स्टोरी तक फहराया जाने लगता है। रक्त से फेफड़ा तक हीमोग्लोबिन की बजाय नेशनलोबिन प्रोटीन का निर्बाध प्रवाह होने लगता है। इस दिन रेलवे स्टेशनों पर एयरपोर्ट सदृश सुरक्षा व्यवस्था का पुख्ता इंतजाम देखने को मिल जाता है।

भारत माता सहित चाचा, बापू को याद कर जय-जयकार करने और नारा लगाने वाले नौनिहाल और स्कूली बच्चें जलेबी और चाकलेट की आस में एक सप्ताह पूर्व से देशभक्ति गीतों पर अपनी प्रतिभा प्रदर्शन के रिहर्सल में जुट जाते हैं।

जलेबी,बुंदी बेचने वाला हलुवाई, तिरंगा सिलने वाला दज़ीर्, विद्यालय के शिक्षक आदि के दैनिक गतिविधियों में मानसिक रूप से गणराज्य के प्रति आस्था और भौतिक रूप से कार्य बोझ में समानुपातिक वृद्धि देखने को मिल जाती है।

शुभकामना संदेश के बीच अखबारों के मुखपृष्ठ से संपादकीय पृष्ठ तक राष्ट्रीय भावनाओं से अभिप्रेरित आलेख स्थान छेक लेता हैं। जन सरोकार से जुड़े समाचार की बजाय पत्रकार बंधु राष्ट्रीय पर्व शुभकामना संदेश विज्ञापन का टारगेट पूरा करने हेतु विज्ञापन दाता की तलाश में जुट जाता है।

इस दिवस पर पाठकों द्वारा समाचार पत्र के प्रथम पृष्ठ से आखिरी पृष्ठ तक प्रकाशित विज्ञापनों के बीच समाचार को ढूंँढने का असफल प्रयास किया जाता है।
तीन रंगों से सराबोर लोगो वाले न्यूज़ चैनलों पर शहीदों के विशेष कार्यक्रम, राष्ट्र धर्म की वार्ता और राष्ट्र धर्म पर वार्ता से संबंधित देशभक्ति व राष्ट्रीयता वाला खुशफहमी का संचार चहुंँओर प्रसारित होने लगता है। भ्रष्टाचार, अत्याचार, महंगाई, बेरोज़गारी आदि दुनियादारी की बजाय देशदारी पर चर्चा होने लगती है। चैनलों का प्राइम टाइम पड़ोसी मुल्कों की अपेक्षा स्वराष्ट्र को ताकतवर सिद्ध करने की? बहसबाज़ी और हो हल्ला में निकल जाता है।

मनोरंजन चैनल पर बोर्डर, हिंदुस्तान की कसम,आँखें, शहीद,कर्मा, उपकार आदि फिल्मों का प्रसारण और पुनर्प्रसारण होने लगता है। टेम्पो और बसों में द्विअर्थी अश्लील या भोजपुरी गीतों की बजाय 'मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरे देश की धरती, ऐ मेरे वतन के लोगों,कर चले हम फिदा...' आदि गीत गूँजायमान होने लगती है।
विभिन्न सरकारी विभागों के बीच परेड और विभागीय उपलब्धि के प्रदर्शन की होड़ लगी रहती है।

माननीय से लेकर छुटभैया नेता तक राष्ट्र गान को याद करने एवं झंडोत्तोलन के औपचारिकता की तैयारी में भिड़ जाते हैं। चुनावी वायदों और सरकारी योजनाओं का कागज़ी शिलान्यास करने वाले जननायक जाति और कौम के मोह से परे झंडोत्तोलन स्थल अथवा मंचों से राष्ट्रीयता से प्रेरित नारों का उद्घोष करते दिख जाते हैं। नौनिहाल से नौकरी पेशा तक, ग्राम प्रधान से गणराज्य प्रधान तक विधि-विधान से इस उत्सव में सहभागिता दिखाने लगते हैं। विशुद्ध राष्ट्रीय विचारों से मिश्रित आक्सीजन राष्ट्र मंडल में व्याप्त होने लगता है। उपरोक्त घटनाक्रम का समूहन ही गणतंत्र दिवस है।

युधिष्ठिर के ज्ञान की प्रशंसा करते हुए यक्ष ने आखिरी प्रश्न पूछा- किम् आश्चर्यम अर्थात आश्चर्य क्या है?
युधिष्ठिर विनम्रता से - जनै:, गणै:, तथाकथितै: महानुभावै: च गणतन्त्रदिवसस्य स्वातन्र्त्यदिनस्य च अवसरे राष्ट्रियभक्ति: आचरिता भवति, ये च स्वस्य भ्रष्टप्रथाभि: देशम् रिक्तं कृतवन्त:, कलङ्कितं च कृतवन्त:। तत् एव आश्चर्यम्। अर्थात भ्रष्ट आचरणों से देश को खोखला और कलंकित करने वाले जन, गण और तथाकथित गणमान्यों द्वारा गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राष्ट्रीय भक्ति का प्रदर्शन किया जाता है। यही आश्चर्य है।


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