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निजी अंतरिक्ष यान उड़ाने की तैयारी में भारतीय कंपनी एलएंडटी

भारत का लक्ष्य अगले दस सालों में देश के वाणिज्यिक अंतरिक्ष क्षेत्र का मूल्य 44 अरब डॉलर तक बढ़ाना है. देश में दशकों तक इसरो ही अंतरिक्ष क्षेत्र में अकेले काम करती रही लेकिन हाल के सालों में निजी कंपनियां भी सक्रिय हुईं

निजी अंतरिक्ष यान उड़ाने की तैयारी में भारतीय कंपनी एलएंडटी
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भारत का लक्ष्य अगले दस सालों में देश के वाणिज्यिक अंतरिक्ष क्षेत्र का मूल्य 44 अरब डॉलर तक बढ़ाना है. देश में दशकों तक इसरो ही अंतरिक्ष क्षेत्र में अकेले काम करती रही लेकिन हाल के सालों में निजी कंपनियां भी सक्रिय हुईं.

भारतीय कंपनी लार्सन एंड टुब्रो ने कहा है कि वह एयरोस्पेस क्षेत्र में अपने कारोबार का विस्तार करने की योजना बना रही है. कंपनी ने यह इरादा ऐसे समय में जताया है जब भारत आयात पर अपनी निर्भरता कम कर रहा है और अर्थव्यवस्था में निजी कारोबारों की भूमिका बढ़ा रहा है.

लार्सन एंड टुब्रो, राजस्व के हिसाब से भारत के रक्षा उद्योग में सबसे बड़ी निजी कंपनी है. वित्त वर्ष 2024 में इसके मातहत प्रिसिजन इंजीनियरिंग एंड सिस्टम्स यूनिट का कुल राजस्व 4,610 करोड़ रुपये था, जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 41 प्रतिशत अधिक था.

स्पेस टेक में निजी कंपनियों की बढ़ती भूमिका

तमिलनाडु के कोयंबटूर स्थित लार्सन एंड टुब्रो के कारखाने में सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ साझेदारी में एक ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) का निर्माण किया जा रहा है. यह भारत का पहला निजी तौर पर निर्मित पीएसएलवी है. यह पीएसएलवी देश की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रक्षेपण कार्यक्रम में बहुत अहमियत रखता है.

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इसके अलावा, लार्सन एंड टुब्रो अन्य इसरो अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए भी उपकरण बना रहा है. देश में निजीकरण के लिए अनुकूल माहौल का लाभ उठाते हुए, इसकी योजना एयरोस्पेस क्षेत्र में अपने कारोबार का विस्तार करने की है. भारत में निजी व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए विदेशी निवेश पर प्रतिबंधों में ढील दी गई है.

इस बारे में लार्सन एंड टुब्रो के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अरुण रामचंदानी ने रॉयटर्स से कहा, "हमारे पास उच्च तकनीक विनिर्माण, महत्वपूर्ण प्रणालियों और उत्पादन बढ़ाने में दशकों का अनुभव है. यही विशेषज्ञता एयरोस्पेस में भी लागू होती है."

उन्होंने आगे कहा कि वैश्विक लॉन्च व्हीकल बाजार का मूल्य अगले दस सालों में 160 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है. इस बीच, भारत सरकार का लक्ष्य इसी अवधि में देश के वाणिज्यिक अंतरिक्ष क्षेत्र का मूल्य 44 अरब डॉलर तक बढ़ाना है. शोध फर्म डोम कैपिटल द्वारा फरवरी में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र का मौजूदा वैल्यू करीब 13 अरब डॉलर है.

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अंतरिक्ष कार्यक्रम में बड़ी भूमिका निभाना चाहता है भारत

एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति बनना भारत की बड़ी महत्वकांक्षाओं में से है. यह भी उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से प्रतिबंधों में ढील दिए जाने और निजी कंपनियों को प्रक्षेपण सेवाएं देने की अनुमति दिए जाने के बाद विदेशी कारोबारी भी उनमें रुचि लेंगे. अगर ऐसा होता है तो भारत में वाणिज्यिक अंतरिक्ष क्षेत्र में वैसी ही वृद्धि देखने को मिलेगी जैसी यूरोप और अमेरिका में देखी गई है.

अरुण रामचंदानी ने रॉयटर्स को बताया कि पहला निजी तौर पर निर्मित पीएसएलवी बूस्टर इस साल के मध्य तक प्रक्षेपित होने की उम्मीद है, लेकिन इसके लिए अभी तक कोई अंतिम तारीख तय नहीं की गई, प्रत्येक पीएसएलवी की लागत 30 अरब डॉलर है.

रामचंदानी ने कहा, "जाहिर है, जब हम इस तरह का कारोबार शुरू करते हैं तो हमारी नजर वैश्विक बाजार पर भी होती है."


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