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अमर घोड़ा

नीला घोड़ा धरती पर अपनी इच्छा से जहाँ चाहता, घूमता-फिरता। कभी फूलों की घाटी में विश्राम करता तो कभी आकाश में उड़ता

अमर घोड़ा
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- इमांत्स जेदोनिए

नीला घोड़ा धरती पर अपनी इच्छा से जहाँ चाहता, घूमता-फिरता। कभी फूलों की घाटी में विश्राम करता तो कभी आकाश में उड़ता। कुछ दिन तो उसे यह सब बहुत अच्छा लगा। लेकिन फिर वह ऊबने लगा। वह अकेला था, एकदम अकेला। किससे बातें करे? किससे कहे अपना
सुख-दु:ख।

एक बार दुनिया-भर के घोड़ों की सभा हुई। दूर-दूर से तमाम घोड़े वहाँ इक_े हुए। सबके रंग, कद-काठी और स्वभाव अलग-अलग थे। कोई सफेद, कोई काला, कोई भूरा तो कोई कत्थई।

एक सफेद अरबी घोड़ा दूसरों से बिल्कुल अलग दिखाई पड़ रहा था। वह था घोड़ों का सरदार। एकाएक वह आगे आया। जोर से हिनहिनाया, फिर बोला, ''आप सबको बहुत जरूरी सलाह के लिए बुलाया गया है। हमपर गहरा संकट आ गया है। समय रहते नहीं चेते तो हो सकता है, हमारा नामोनिशान मिट जाए।''

कुछ देर रुककर उसने फिर कहा, ''आपको मालूम ही है, विज्ञान ने यातायात की नई-नई चीजों का आविष्कार कर लिया है—रेलगाड़ी, कारें, बस, स्कूटर, साइकिल, हवाई जहाज। पहले लोग यात्रा के लिए सिर्फ घोड़े की सवारी ही पसंद करते थे, लेकिन अब हमारी उपेक्षा हो रही है। हमारी कितनी ही नस्लें खत्म हो चुकी हैं। ऐसी हालत में हमें कुछ-न-कुछ जरूर करना चाहिए।''

सभा में सन्नाटा छा गया। किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। तभी एक कत्थई घोड़े ने कहा, ''क्यों न हम एक अमर घोड़ा रच डालें। फिर तो हमारी जाति कभी नष्ट नहीं होगी न!''

यह बात सब घोड़ों को पसंद आई। पर यह किसी की समझ में नहीं आया कि अमर घोड़ा रचा कैसे जाएगा।
''क्या हमारी तरह वह भी घास खाकर पेट भरेगा?'' एक घोड़े ने पूछा, ''कैसा होगा वह?''

सफेद घोड़े ने कहा, ''मैंने सब सोच लिया है। अमर घोड़ा नीले रंग का होगा, क्योंकि नीला रंग आकाश का होता है। उसके दो पंख भी होंगे। परियों की तरह सुंदर, रंग-बिरंगे पंख। इनसे उड़कर वह कहीं भी जा सकेगा। वह केवल नीले फूल खाएगा। नीले समुद्र या गहरी झीलों का पानी पीएगा। सब उसे दूर से देखेंगे, क्योंकि वह किसी के पास नहीं जा सकेगा। किसी से बातें नहीं करेगा। कोई उसका दोस्त भी नहीं होगा।''
सभी घोड़े ध्यान से सुन रहे थे। तभी सफेद घोड़े ने फिर कहा, ''सामने दो नीली पहाड़ियाँ दिखाई दे रही हैं। उनके बीच है एक गहरी नीली झील। जो भी घोड़ा उस झील तक सबसे पहले पहुँचेगा, वही बनेगा अमर घोड़ा।''

सब घोड़े झील की ओर दौड़े; लेकिन एक दुबला, चुस्त घोड़ा वहाँ सबसे पहले पहुँचा। उसी को अमर बनने के योग्य माना गया। उसके सिर पर रंग-बिरंगे फूलों का ताज रखा गया।

उस घोड़े ने एकाएक झील में छलाँग लगा दी। और जब झील से बाहर आया तो उसका रंग नीला हो चुका था। दो खूबसूरत पंख भी उग आए थे।
घोड़ों के सरदार ने उससे कहा, ''अब तुम वह अमर घोड़ा हो, जिसपर हमारी उम्मीदें टिकी हैं। किसी के पास मत रुकना। किसी से बातें भी मत करना। जो दूसरे घोड़े खाते हैं, वह मत खाना। नहीं तो तुम भी फिर साधारण घोड़ों जैसे बन जाओगे। हाँ, अगर तुम्हें कोई दु:ख हो तो तीन बार झील की परिक्रमा करना, फिर आकाश की ओर मुँह करके हिनहिनाना। सब घोड़ों को पता चल जाएगा कि तुम मिलना चाहते हो। हम आ जाएँगे।''
नीले घोड़े ने सिर हिलाया। फिर देखते-देखते वह अदृश्य हो गया।

नीला घोड़ा धरती पर अपनी इच्छा से जहाँ चाहता, घूमता-फिरता। कभी फूलों की घाटी में विश्राम करता तो कभी आकाश में उड़ता। कुछ दिन तो उसे यह सब बहुत अच्छा लगा। लेकिन फिर वह ऊबने लगा। वह अकेला था, एकदम अकेला। किससे बातें करे? किससे कहे अपना सुख-दु:ख। धीरे-धीरे उसकी उदासी बढ़ती गई। एक दिन उसकी आँखों में आँसू छलक आए। सोचने लगा, 'ऐसी अमरता से क्या लाभ, जब कोई साथी ही न हो।'

वह बेतहाशा दौड़ता हुआ उसी झील के तट पर आया। तीन बार परिक्रमा की। फिर आकाश की ओर मुँह करके हिनहिनाया।
तभी बड़े जोर की आवाज हुई। जैसे सैकड़ों बिजलियाँ कड़की हों। जोर-जोर से घंटे बजने की आवाज सुनाई दे रही थी। सभी घोड़े दौड़े-दौड़े आए। एक जगह एकत्र हुए।
''क्या बात है? सभा बुलाने की जरूरत क्यों पड़ी?'' घोड़ों के सरदार ने पूछा।

नीले घोड़े ने अपनी सारी विपदा कह सुनाई। फिर बोला, ''मैं सबसे दूर रहूँगा, किसी से कुछ कहूँगा नहीं; तो मेरे अमर रहने से लाभ ही क्या?''
घोड़ों ने उसके दु:ख को महसूस किया। बहुत सोच-विचार के बाद निर्णय हुआ, ''ठीक है, नीला घोड़ा भोर या शाम के धुँधलके में चाहे तो बस्ती में आ सकता है। वह चाहे तो सपने में किसी से बातें कर सकता है।''

नीले घोड़े ने हिनहिनाकर खुशी जाहिर की। फिर गायब हो गया। दूसरे घोड़े भी अपनी-अपनी जगह पर लौट गए।
अब शहरों के आसपास या बाग-बगीचों में नीला घोड़ा दिखाई देने लगा। कोई पास आता तो वह एकाएक गायब हो जाता। कभी-कभार उसके खुरों के निशान दिखाई पड़ते। बाग-बगीचों में खिले नीले फूल अकसर गायब हो जाते।

एक दिन एक छोटी लड़की इनता पढ़ने के लिए घर के पासवाले बाग में चली गई। बारिश के दिन थे। इनता अपना नीले फूलोंवाला छाता भी लेकर गई थी।
छाता एक ओर रखकर इनता पढ़ने बैठ गई। वह जोर-जोर से कहानियों की किताब पढ़ रही थी। कुछ देर बाद उसने किताब बंद की। छाता उठाकर चलने लगी, तभी उसका ध्यान छाते के रंग पर गया। छाता बदरंग हो चुका था। उसपर बने नीले फूल गायब थे।

इनता हैरान रह गई। घर आई तो उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। माँ ने कहा, ''लगता है, यह नीले घोड़े का काम है। वह नीले फूल खाता है न!''
पर इनता को किसी भी तरह संतोष नहीं हुआ। रोती-रोती वह सो गई। सपने में उसे नीला घोड़ा दिखाई दिया। बोला, ''क्षमा करना, इनता, मैंने तो यों ही खेल-खेल में तुम्हें चौंकाने के लिए ऐसा किया था। पर तुम बुरा मान गईं। दरअसल मैं तुमसे बातें करना चाहता था। बताना चाहता था, तुम जो कहानियाँ जोर-जोर से पढ़ रही हो, उन्हें मैंने भी सुना था। बेहद अच्छी लगीं।''

''अरे, तुम तो बोल भी सकते हो!'' इनता ने कहा और सपने में ही हँस पड़ी।
''बातें करोगी मुझसे?''

इनता ने स्कूल, घर और कहानियों की किताबों के बारे में ढेरों बातें अमर घोड़े को बताईं। घोड़े ने भी उसे दुनिया-भर की कहानियाँ सुनाईं। वह सारी दुनिया घूम चुका था। बहुत कुछ जानता था। फिर वह हिनहिनाया और गायब हो गया।
सुबह इनता उठी तो उदास नहीं थी।


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