श्रीमानजी को लगभग मना कर दिया...
श्रीमानजी को पहली बार किसी मामले में मना नहीं किया गया है। इससे पहले भी जनता ने उन्हें लगभग मना ही कर दिया था

- भूपेन्द्र भारतीय
श्रीमानजी को पहली बार किसी मामले में मना नहीं किया गया है। इससे पहले भी जनता ने उन्हें लगभग मना ही कर दिया था। लेकिन वे माने नहीं और उन्होंने लोकतंत्र की कसमें खा खाकर जनता को मना लिया था। जितनी बार जनता ने मना किया श्रीमान फिर नाक रगड़ते हुए जनता के दरबार में पहुंच जाते। भविष्यवाणियां करते। वादे करे, प्रायोजित थप्पड़ खाते, भोलेपन के सारे करतब दिखाते, ऐसे में जनता फिर मान जाती ! लोकतंत्र में जनता भोली जो ठहरीं।
वैसे लगभग मना करने की कला का आविष्कार श्रीमानजी ने ही किया है। वे इस कला का प्रयोग अपनी राजनीतिक दुकान चलाने के लिए समय समय पर करते आये हैं। इसमें जनता भी फंसी ओर उनके प्रतिद्वंद्वी भी। यहां तक कि उन्होंने इस कला से अपने ही दल के कई स्वघोषित राज्यसभा सदस्यों को लगभग मना करते हुए घर बिठा दिया । धीरे धीरे रे मना वाली गति से उन्होंने अपने दल को अपने शीशमहल तक ही सीमित कर लिया। जो महल में आता उसे धीर धीरे लगभग मना ही करते जाते। जो नहीं मानता उसे शीशमहल में ही पुरस्कृत कर देते। महिलाओं तक को लगभग मना कर देते ! ऐसे में स्थिति यह आ गई कि पूरा शीशमहल खाली हो गया। सि$र्फ उनका लगभग होना बचा था जो वह भी किनारे पर ही आ गया था।
भारतीय राजनीति के इतिहास विषय में आगे यह ?लगभग मना कर दिया' का एक अलग से पाठ रहेगा। श्रीमानजी की राजनीतिक कला व नीति को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाऐगा। श्रीमानजी से जब जब पूछा गया विकास कहाँ हो रहा है तो उनका जवाब रहता, 'बस लगभग दिखने ही वाला है।' उन्होंने तो विश्व स्तर की शिक्षा का मॉडल भी लगभग तैयार ही कर लिया था। उसे विज्ञापनों के माध्यम से कुछ क्षेत्रों में लागू भी किया। श्रीमान विज्ञापनों में भी लगभग प्रतिदिन दिख ही जाते है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में उन्होंने लगभग सबको चौंका ही दिया। स्वास्थ्य केंद्र व मरीजों के बीच लगभग किसी तरह का कोई संबंध ही नहीं बनने दिया। जनता श्रीमानजी की अब लगभग वाली गोलियों के सेवन से बीमार होना ही बंद हो गई। घर बैठे ही लगभग सारा विकास हो रहा था। श्रीमान जी ने लगभग मना करने की तिकड़म में जेल यात्रा तक की। जेल में भी बैठकर वे किसी भी आरोप के ना होने का जनता को लगभग मना करते रहे और पौष्टिक आमों उदरस्थ करते रहते। वो तो जनता की नाक तक श्रीमान के विकास का यमुना नदी का पानी लगभग आ गया तो जनता ने भी उन्हें इस चुनाव में लगभग मना करने का मन बना ही लिया।
इससे पहले जब भी श्रीमान से जनता विकास पर प्रश्न करती हैं। वे केंद्र सरकार का सहारा लेकर जनता से कम बजट का बहाना बनाकर लगभग मना लेते। श्रीमानजी लगभग हर महीने अपने स्वास्थ्य लाभ के लिए यात्राएं करते रहे और जनता के स्वास्थ्य के लिए लगभग मना कर देते। जरूरी कार्यों की फाईलों व केंद्र सरकार से लगभग समान दूरी बनाकर चलने में श्रीमान जी का कोई तोड़ नहीं है। श्रीमान कब लगभग राजनीति का मफलर बाँध ले और कब खाँसने लग जाए, इस पर शीशमहल में रहने वाले अन्य सदस्य भी टीका-टिप्पणी नहीं कर सकते हैं।
इस बार श्रीमान जी की लगभग वाली चालें नहीं चली। पहले उन्हें साथी दलों ने लगभग मना किया, अब जनता ने भी उन्हें लगभग मना ही कर दिया। आखिर जनता की पूर्ण जीत हुई। श्रीमानजी इस बार लगभग के फेर में जनता को नहीं फंसा पाए। वे स्वयं लगभग के फेर में फंस गए, श्रीमानजी ने भी किसे छोड़ा था जो वे ना फंसते। आगे लगता है कि लगभग मना करने वाली चाल अन्य किसी प्रदेश में उपयोग की जाऐगी। पहले अपने ही दल के किसी सदस्य को लगभग नीति से कुर्सी से उतारा जाएगा और एक बार फिर किसी दूसरे शीशमहल की पठकथा लगभग मना करने वाली शैली में लिखी जाएंगी...!


