दिल जीतने के लिए ईमानदार मोहब्बत
कवि पवन करण की इस किताब के बारे में जब सुना तो थोड़ा आश्चर्य हुआ कि एक खास कालखंड की महिलाओं के बारे में कविता संग्रह!

- शकील अख्तर
कवि पवन करण की इस किताब के बारे में जब सुना तो थोड़ा आश्चर्य हुआ कि एक खास कालखंड की महिलाओं के बारे में कविता संग्रह!
मगर जब पढ़ा तो लगा कि कवि ने बड़ा महत्वपूर्ण काम किया है। हमारे यहां
लिखने में हिन्दी में शोध की कोई स्थापित परंपरा नहीं है। लिखने से पहले
रिसर्च कम ही किया जाता है। लिखने के बाद उम्मीद की जाती है कि हमारी
किताब पर रिसर्च हो। और कविता के लिए रिसर्च का तो सवाल ही नहीं।
मगर पवन करण जो अच्छी कविता के लिए पहले ही नाम कमा चुके थे इस किताब में
काफी रिसर्च के साथ सामने आए हैं। लगभग दो सौ वर्षों के मुगलों के इतिहास
और उसमें स्त्रियों की भूमिका का शोध सामान्य काम नहीं है। लेकिन
ग्वालियर के कवि पवन करण इससे पहले भी प्राचीन भारतीय इतिहास से खोजकर
स्त्री शतक एक और दो ला चुके हैं। जिनमें दो सौ स्त्रियों का संघर्ष उनका
जीवन प्रतिबिंबित हुआ है।
स्त्री मुगल इस साल 2024 की उन किताबों में है जिसमें कविता को इतिहास की
पृष्ठभूमि में लिखा गया है।
जैसे कुतुलुग निगार खानम कविता का इतिहास बोध देखिए। बाबर जिनके बारे में
आज सबसे ज्यादा राजनीति हो रही है। उनकी मां।
कविता में कहती हैं-
'हिन्दुस्तान को तो हमने हासिल कर लिया बाबर
मगर अभी हमारा हिन्दुस्तानियों के दिलों को
अपना बनाना बाकी है और हम जानते हैं
कि इसके लिए हमें तलवार की नहीं
ईमानदार मोहब्बत की जरूरत होगी!'
एक औरत ही ऐसा सोच सकती है। राजा बादशाह को उस समय सिर्फ सल्तनत से मतलब
होता था। मगर एक औरत और मां के लिए सबसे बड़ी चीज दिलों की जीतना और
मोहब्बत ही होता है। तब भी अब भी।
आज जब महिला समानता, अधिकार की बात ज्यादा जोर से हो रही है। तब देखिए
कितने साल पहले एक बेगम ने जहांगीर के इंसाफ के घंटे पर सवाल खड़ा किया।
कविता इसलिए समय से बहुत आगे की चीज है कि इतिहास में भी पुराने से
पुराने जब वैल्यूज ( मूल्य) बिल्कुल अलग हुआ करती थीं तब के प्रसंग को
किस तरह आधुनिक मूल्यों से जोड़ती है।
जहांगीर की बेगम साहिबे जमाल का सवाल है-
'इंसाफ की जंजीर बजाने की इजाजत
किसी मुगलिया बेगम या शहजादी को नहीं
ये कैसी बेइंसाफी है बादशाह हुजूर
क्या मुगलिया औरतें अपने लिए
इंसाफ नहीं चाहतीं, मुगल बादशाह को
इंसाफ की शुरूआत अपनी बेगमों
और शहजादियों से करना चाहिए !'
महिला अधिकार की यह मांग, परिवार के अंदर और बादशाह से उसी की इंसाफ की
जंजीर की मिसाल देते हुए किसी क्रान्ति से कम नहीं।
कवि पवन करण अपने सामाजिक सरोकारों के लिए भी जाने जाते हैं। और जाहिर है
कि आपकी जिन्दगी का अक्स आपके लेखन में आता है। पवन करण के इससे पहले के
कविता संग्रह इस तरह मैं, स्त्री मेरे भीतर, अस्पताल के बाहर टेलीफोन,
कहना नहीं आता, कोट के बाजू पर बटन, कल की थकान, स्त्री शतक ( दो खंड) और
तुम्हें प्यार करते हुए पहले ही बहुत चर्चित हो चुके हैं। कई भाषाओं में
अनूदित भी।
यह स्त्री मुगल उनके कवि की एक और नई पहचान कराता है कि महिला चाहे जिस
युग में हो उसकी आवाज रही है, यह लेखक कवि पर है वह उसे किस तरह ढुंढ कर
लाता है। और उसे आज के संदर्भ में किस तरह पेश करता है। लड़ती हुई,
अधिकार बोध, प्रेम, जिम्मेदारी सब के साथ।


